साथियों... नमस्कार...
‘आज़ादी’ के दीवाने तो बहुत थे मगर, ऐसा कोई नहीं
कि उसने गुलामी में रहते हुये ही खुद को ‘आज़ाद’ घोषित कर दिया हो ये काम तो सिर्फ
‘पंडित चंद्रशेखर आज़ाद’ ही कर सके जिन्होंने अपने नाम के साथ ‘आजाद’ लगाकर अपनी
मंशा ज़ाहिर कर दी कि जब जीवन उनका तो फिर उस पर इख़्तियार किसी और का प्रकृति के भी
खिलाफ़ हैं तो ऐसी स्थिति में किसी भी इंसान को ये हक़ नहीं कि वो किसी को अपना दास
बनाकर रखे लेकिन उन्होंने देखा कि वे अकेले नहीं उनके साथ अनेक हमवतन भी उन
फिरंगियों के गुलाम हैं जो इस देश में आये तो थे व्यापार की खातिर लेकिन जब यहाँ
का वैभव और लोगों का भोलापन देखा तो नीयत बदल गयी और ऐसा जाल बिछाया कि अनजाने में
सब उनके चंगुल में फंस गये जिससे बहर निकलते-निकलते एक लंबा अरसा लगा व अनगिनत
लोगों को अपने जान गंवानी पड़ी तब कहीं जाकर ये देश आज़ाद हुआ जिसे हम सब भोग रहे
हैं पर, वो जिन्होंने इसे पाने के लिये अपना जीवन कुर्बान कर दिया जब आज के लोगों
को अपनी जान की कीमत पर हासिल की गयी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते देखते होंगे तो
न जाने क्या सोचते होंगे कि अपनी जरा-भी परवाह न करते हुये जिन लोगों के लिये शहीद
हो गये वे उसकी अहमियत समझ ही न रहे बल्कि एक बार फिर इस देश को उसी दिशा में लेकर
जा रहे उस पर गाफ़िल इस कदर कि अहसास भी नहीं जरा...
इस बार भी दुश्मन हमारे सामने हैं जिसे हम देख
भी पा रहे लेकिन उसके बावज़ूद भी खुद उसकी गिरफ्त में फंसते जा रहे कि वो पराये
नहीं अपने ही हैं उस पर शिंकजा भी कोई चुभने वाली बेड़ियाँ नहीं बल्कि तमाम सुविधा
रूपी वो अदृश्य जंजीरें हैं जिन्हें कि हम फ़िलहाल अपनी खुशकिस्मती समझ रहे लेकिन
जिस दिन उनकी वजह से सब कुछ होते हुये भी लाचार हो जायेंगे तब समझेंगे कि हर बैठे-बैठे
हर चीज़ हासिल होना, उंगलियों पर सारी दुनिया को घूमाना या एक क्लिक पर हाथों पर
मनचाही चीज़ मिल जाना ये सब भी बंधन हैं जिनकी वजह से प्रकृति से नाता टूट गया,
स्वाभाविकता को भूल गये, दायरों में सिमट गये और तो और सरकार मोबइल, लैपटॉप और नेट
भी मुफ्त में बांटकर युवा वर्ग को इस तरह से नकारा बना रही कि उसे अहसास भी नहीं
हो भी क्यों जब बिना कीमत चुकाये हर चीज़ मिल रही लेकिन इसकी कीमत किस तरह वसूली जा
रही ये नहीं देख रहा कोई कि इन सब गेजेट्स में देश की युवा शक्ति को व्यस्त कर देश
के वे तथाकथित शासक अपनी चाल चलने में लगे उस पर तमाम तरह कि निःशुल्क योजनायें भी
लागू कर दी क्योंकि वे जानते कि जब भी युवा जागा उसने क्रांति की हैं तो उसे
भरमाये रखो ताकि वो कोई सवाल न पूछे न ही ऊँगली उठाये इसलिये पांचों उँगलियाँ और
दिमाग सब कुछ इन यंत्रों में खपा दिया...
ऐसी स्थिति में देश के नवजवानों को इन युवा
शहीदों से प्रेरणा लेनी चाहिये जिन्होंने बिना किसी के बताये ही ये जान लिया कि
गुलामी की हवाओं में जीने से मरना बेहतर हैं तो अपनी अंतिम साँस तक वो गुलामी की
जंजीरों से खुद को मुक्त कराने लड़ते रहे जिसका नतीज़ा कि आज हम आज़ादी की खुली हवा
में साँस ले रहे... ऐसे ही एक युवा ‘चंद्रशेखर’ की आज जयंती हैं जिन्होंने बालपन
में ही अपने नाम के साथ ‘आज़ाद’ लगा अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया तो हम भी जाने
कि आज हमारे देश की उन्नति के लिये क्या जरुरी जिसे कर हम वापस ‘विश्वगुरु’ बन
सकते हैं... देश की कुल जनसंख्या का लगभग ८०% युवा वर्ग जो अगर, दिग्भ्रमित हुआ तो
इतिहास की पुनरावृति को रोकना मुश्किल होगा अतः इन वीर जवानों की कहानियों को
सिर्फ दोहराये नहीं इनसे सबक लेकर अपने जीवन में बदलाव लाने का भी प्रयत्न करें जो
इन दिवस का उद्देश्य... ‘आज़ाद’ की तरह हम सब भी आज़ाद बनकर उनका ऋण चुकाने का
प्रयत्न करें ये संकल्प ही उनके जन्मदिवस की सर्वोत्तम सौगात होगी... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२७ फरवरी २०१७
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