शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-४२ : ‘वसंतोत्सव बनाम वैलेंटाइन डे के सात दिन’ ‘पांचवा दिन – प्रॉमिस डे’ !!!

साथियों... नमस्कार...


‘वादा’ सिर्फ दो अक्षर या एक शब्द नहीं बल्कि एक अनुबंध हैं दो दिलों का एक करार जीवन भर का जिसे केवल इसलिये नहीं करना चाहिये कि कोई दिन विशेष इसके लिये निर्धारित कर दिया गया हैं बल्कि जब तक हम खुद इसके लिये पूर्णरूप से तैयार न हो हमें किसी से महज़ इसलिये कि उसे प्रभावित कर सके या उसको अपना साथी बना सके कोई भी ऐसी बात नहीं कहना चाहिये जिसे वो एक वचन की तरह अपने मन में बिठा ले जबकि हम जानते हो कि हमने तो अपनी बातों की वजनदारी बढ़ाने इस तरह के जुमलों का प्रयोग किया कि उसे हम पर विश्वास हो फिर हम अपना मतलब सिद्ध कर उससे पीछा छुड़ा ले जैसा कि अमूमन देखा जा रहा कुछ शब्द जो अपने आप में इतने पवित्र व भरोसेमंद कि लोग अपना स्वार्थ पूरा करने इनका सहारा लेते जबकि अगला उसे उसी तरह से स्वीकार करता तो हम उसकी कोमल भावनाओं का जानते-बुझते भी फायदा उठाते याने कि इस तरह से दिनों को एक रस्म अदायगी की तरह लेते और जिस तरह ‘टेडी’ या ‘चॉकलेट’ बांटते उसी तरह से एक ‘प्रॉमिस’ भी गिफ्ट कर देते...

जबकि ये बाज़ार में बिकने वाली कोई सौगात नहीं बल्कि सबसे कीमती तोहफ़ा हैं जो हम किसी रिश्ते को देते जिससे कि वो अधिक मजबूत बन सके क्योंकि फिर इस दिये गये वचन को हर तरह से पूरा करना चाहते ताकि हमारी विश्वसनीयता भंग न हो साथ ही उसका इंतजार व दुआ भी विफल न हो जो इसकी प्रतीक्षा में हम पर विश्वास कर के बैठा याने कि ‘प्रॉमिस’ एक ‘बांड’ की तरह जो रिश्तों की ‘बॉडिंग’ मजबूत करता और साथ ही ये एक रसायन जो दो दिलों को तमाम दूरियों और गलतफहमियो के बावजूद भी आस की डोर से बांधे रखता कि कहीं न कहीं दिल के किसी कोने में प्यार से बोले गये ये लफ्ज़ अपनी जड़ें गहरी जमा लेते जिन्हें फिर कोई शक या भ्रम की तलवार भी कभी काट नहीं पाती कि इन्हें आस्था-विश्वास के जल से सींचा जाता पर, इसकी गंभीरता को न जानते हुये जो निभाने नहीं बल्कि दिखावे के लिये इसका आश्रय लेते वो कभी न समझ पायेंगे कि ‘वादा’ / ‘प्रतिज्ञा’ / ‘वचन’ / ‘शपथ’ / ‘करार’ / ‘संकल्प’ या ‘प्रॉमिस’ कितने अर्थपूर्ण शब्द जिन्हें होंठो पर सजा लेने मात्र से वो मायने नहीं रखते इन्हें सार्थक बनाने इन्हें पूरा करके अर्थवान बनाना पड़ता हैं...

जो यदि न किया जाये तो जिस तरह आजकल बहुत से शब्द दोहरा-दोहरा कर अपने अर्थ खो चुके ये भी उन्हीं की तरह बेजान लाश बन जायेंगे फिर जिन्हें ढोते रहना ख़ुशी नहीं तकलीफ़ देगा तो प्रेमोत्सव के इस साप्ताहिक आयोजन के प्रत्येक दिन की संजीदगी को भी समझने का प्रयास करे युवा वर्ग अन्यथा ये एक दिन का जश्न बनकर अगले दिन फिर एक नये दिन की तरह महसूस होगा परंतु यदि हमने इनको आत्मसात कर लिया तो हर दिन ही इन सातों इंद्रधनुषी अहसासों को बदलते मिज़ाज के साथ महसूस करेंगे जिससे कि साल भर इनका इंतजार न रहेगा क्योंकि हम तो इन्हें हर दिन जियेंगे तो जब इन दिवस को मनाओ या किसी अपने करीबी को इनकी शुभकामना भी दो तो उसमें अपने अंदरूनी जज्बातों की ऊष्मा भरना मत भूल जाना... तब वो सामने वाले को ही नहीं आप को भी जीने की नई उमंग व ऊर्जा देगी... जिसके बलबूते आप असंभव को भी संभव कर पायेंगे शायद, इसलिये प्रेम को जीवन की शक्ति या ताकत माना जाता जिसके दम पर बड़े-बड़े कारनामों को अंजाम दिया गया...  :) :) :) !!!            
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

११ फरवरी २०१७

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