गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-४० : ‘वसंतोत्सव बनाम वैलेंटाइन डे के सात दिन’ ‘तीसरा – चॉकलेट डे’ !!!

साथियों... नमस्कार...


हमारे देश में प्राचीन काल से ही मुंह मीठा कराने की रस्म रही हैं यदि घर में कोई मिठाई न हो तो खाली गुड़ या शक्कर खिलाकर ही इसे पूरा किया जाता यहाँ तक कि कोई भी मेहमान घर में आये या अजनबी ही क्यों न हो उसे तश्तरी में सिर्फ पानी ही पेश नहीं किया जाता बल्कि उसके साथ गुड़ की डली या कोई मीठी चीज़ रखकर ही दी जाती ताकि कोरा पानी गले में न लग जाये तो इसी तरह का कोई रिवाज़ दूसरे देशों में भी होता होगा लेकिन इस मामले में भी हम खुशनसीब कि हमारे यहाँ तो अनेक तरह के मिष्ठान्न पर, उनके यहाँ ले-देकर केवल ‘चॉकलेट’ जिसे वो भले ही कितने रूपों में सजाकर प्रस्तुत करें लेकिन स्वाद में भिन्नता कम ही महसूस होती मगर, हमारी मिठाइयों के तो जितने नाम, रंग उतने ही तरह-तरह के स्वाद भी होते खैर... बात मुंह मीठा करने की हो तो फिर तमाम तरह की बातों या विरोधों के बावजूद भी स्वीट के नाम पर लोगों ने इसे भी अपना ही लिया हैं तो फिर आज के दिन एक-दूसरे को प्यार की ये छोटी-सी सौगात देने में बुराई ही क्या हैं आखिर जबकि नफ़रत फैली हो चारो तरफ प्यार को अलग-अलग स्वरूप में वितरित करना एक नेक काम ही कहलायेगा जो इन सात दिनों में विविध रूपों एवं त्तरीकों से हम अपनों को बांटते हैं और हम चाहे तो इसे भी भारतीयता के रंग में रंगकर सबका मुंह मीठा कर सकते हैं...

यदि हम ‘चॉकलेट’ को ‘फीलिंग्स’ से जोडकर देखे तो पाते कि उन दोनों में कई समानतायें हैं जो उनको आपस में जोड़ती हैं और जिस तरह चॉकलेट तरल से ठोस में परिणित होती बिल्कुल उसी तरह से अहसास भी धीरे-धीरे भीतर प्रवेश कर जमने लगते और मूर्त रूप धारण कर लेते जिन्हें फिर चॉकलेट की तरह ही दिल के तहखाने में सुरक्षित रखना पड़ता नहीं तो वो उपेक्षा या बेरुखी से पिघल जाते जिन्हें फिर से वही रूप देना मुमकिन नहीं हो पाता इसलिये अब जब भी चॉकलेट खाना तो केवल उसके स्वाद ही नहीं उसके भीतर घुले अहसास को भी महसूस करना तब उसका वास्तविक आनंद आयेगा कि ये दिन महज़ एक आम दिन ही सही लेकिन चाहे तो हम इसे मायने दे सकते जरूरत हैं इनको अपनी तरह से अर्थ देने की नहीं तो पश्चिम की नकल में हम इसे अपना तो रहे पर, अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे जबकि वो लोग अपनी रवायतों को दूर-दराज में फैला रहे और हम केवल अन्धानुकरण करने के चक्कर में ये जानने के बाद भी कहीं के न रहे पा रहे कि जड़ें जितनी गहरी हो अपनी जमीन से जितना जुड़ाव हो उतना ही गहरा नाता हमारा अपने देश से बनता जब वो अपने देश की परम्पराओं को न सिर्फ निभा रहे बल्कि उनका प्रचार-प्रसार कर रहे तो हम केवल उनके प्रचारक न बने कुछ इस तरह से उन्हें मनाये कि उनको अपनी संस्कृति की झलक भी नजर आये क्योंकि ये सब अहसास तो हर जगह एक समान हैं केवल उनके प्रदर्शन का तरीका भिन्न हो सकता तो हम उस भिन्नता को बरकरार रखे कि उसमें ही अपनी पहचान निहित न कि हंस बनने के चक्कर में अपनी चाल-ढाल भी भूल जाये इस उद्देश्य के साथ हम इन दिनों से अपनी युवा शक्ति को जोड़ना चाहते कि वैश्वीकरण के इस दौर में अछूते तो नहीं रह सकते तो क्यों न ‘चॉकलेट’ में ‘गुड़’ को मिलाकर इन फीलिंग्स का लड्डू बनाया जाये... मीठा-मीठा... क्योंकि गुड़ से मीठा इश्क़-इश्क़... :) :) :) !!!       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०९ फरवरी २०१७

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