बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-३९ : ‘वसंतोत्सव बनाम वैलेंटाइन डे के सात दिन’ ‘दूसरा – प्रपोज डे’ !!!

साथियों... नमस्कार...


काश,
बनकर फांस
चुभता न रहे आजीवन  
कर दो बयान
वो अहसास, वो जज्बात
जो बनकर गाँठ
कसकते रहते भीतर
उभरते तन-मन...   
  
दबी रही जाये कोई बात या मन के जज्बात अंतर में तो वो कचोटते रहते ताउम्र कि अनकहे लफ्जों की चोट सालती रहती रह-रहकर कभी लगे अगर भी कि नहीं शेष कोई जख्म दिल में भर गये सब वक़्त की मरहम से तब भी, जब कोई ऐसा वाकया हो या कोई ऐसा अवसर आ जाये कि बीते लम्हों के पन्ने अचानक खुल के सामने आ जाये तो एक हुक-सी कलेजे में उठती कि काश, उस समय ये अहसास बयान कर दिये होते, वो जो महसूस किया था उस पल में उसे शब्द दे दिये होते तो कितना अच्छा था पर, सिवाय अफ़सोस के फिर कुछ न हाथ रह जाता कि सबको ऐसा मौका नहीं मिलता कि वो अपनी गलती को ठीक कर सके या उन ‘काश’ को जो फांस बनकर चुभते रहते दिल की तलहटी में कहीं उन्हें नासूर बनने से रोक सके अक्सर, नासमझी या फिर अहम् अवरोध बनकर राह रोक लेते मन के अंदर उठती भावनाओं के शब्दों का ऐसे में वो भीतर ही भीतर घुटकर रह जाते और फिर किसी गाँठ की तरह उभरते तन-मन में जिन्हें हम समझ नहीं पाते और सोचते रहते कि ये किस तरह हुआ जबकि हकीकत यही कि देह की कोई भी गठान बेवजह नहीं होती ये तो अहसासों वो गिरहें हैं जो कभी खुली नहीं पर, हम इन्हें बीमारी समझ इनका इलाज खोजते रहते और परेशां होते जबकि कह दिया जाये उस मीठी-सी चुभन को तो भले वो उस समय उस तरह से परिणित न हो जैसा सोचा और इस भय से उसे व्यक्त करने से बचते रहे लेकिन कुछ समय बाद इस समझेंगे कि अच्छा किया जो बोल दिया ऐसे में मन के भीतर सिर्फ़ नाकामी का अवशेष बचेगा मगर, उसमें कोई दंश का भाव न रहेगा जो चुभते रहे आजीवन...  

इज़हार करने का तात्पर्य ये भी नहीं कि हम हर एक बात को अभिव्यक्ति दे इसे भी समझे कि क्या कहना और क्या नहीं और किससे कहना और किसे नहीं कहना... क्योंकि कुछ बातें ऐसी भी होती जिसे इसकी दरकार नहीं लेकिन हमने इसकी संजीदगी को समझा ही नहीं और बक दिया जो मन में आया तो इस बात का ख्याल रखना भी जरुरी और ये भी पहले ही सोच ले कि यदि अगला इस बात की प्रतिक्रिया हमारे मन मुताबिक न दे तो हमें आगे क्या करना हैं नहीं तो आजकल तो देखने में आ रहा कि युवा वर्ग में कुछ लोग अपने प्रपोज़ल का नकारात्मक प्रतिउत्तर पाते ही गलत कदम उठा लेते साथ ही हमारे ये कहने का तात्पर्य ये भी कि इज़हार केवल इश्क़ का ही नहीं किया जाता कोई भी अहसास जो किसी के भी प्रति मन में महसूस हो उसे सामने वाले से कह देना ही उसकी बयानगी हैं न कि हम ‘प्रपोज डे’ को सिर्फ प्रेयस-प्रेयसी से जोड़े क्योंकि प्रेम तो हम अपने सभी रिश्तों से करते तो फिर सबके प्रति भी तो मन में कोई न कोई अनुभूति तो होती ही पर, कहने में संकोच होता जो घाव बन जाता तो रोज-रोज न सही केवल आज के दिन ही अपनी उस अभिवृति को बोल दे, लब खोल दे... यही तो हैं ‘प्रपोज डे’ का मतलब जिसे प्रेमी-प्रेमिकाओं से जोड़कर हमने उसका रूप बिगाड़ दिया बल्कि हम तो उस देश के वासी जो कुरूप को भी सुंदर बना देते तो अब इसे इस तरह से समझे फिर इसका विरोध न कर लोग इस दिन अपनों से अपने मन की बात कहेंगे... :) :) :) !!!                
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०८ फरवरी २०१७

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