शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-४८ : सहजता-सरलता के संत... ‘रामकृष्ण परमहंस’

साथियों... नमस्कार...



भारत भूमि की पावन मिट्टी से हीरे-मोती ही नहीं संत-महात्मा जैसे अनमोल रतन भी उपजते जिनकी वाणी और संदेश आज भी हवाओं के अणु-अणु में बसे सर्वत्र विचर रहे हैं और  जिनकी गूँज यूँ ही अनवरत सुनाई देती रहेगी लेकिन सिर्फ़ उनको ही जो इसे सुनना चाहते वरना, बाकी तो आकर कब चले जाते पता भी न चलता ऐसे ही थे १८ फरवरी १८३६ को पश्चिमी बंगाल के हुगली ज़िले में कामारपुकुर नामक ग्राम के एक दीन एवं धर्मनिष्ठ परिवार में जन्मे ‘गदाधर’ जिन्हें हम सब ‘रामकृष्ण परमहंस’ के नाम से बेहतर जानते जिन्होंने अंतरिक्ष में गूंजते इस अनाहद नाद को न सिर्फ सुना बल्कि गुना भी और इस तरह अपने रोम-रोम में बसा लिया कि उनके संपूर्ण व्यक्तित्व और रोम-रोम से ही वो ज्ञान ज्योति फूटने लगी जिसकी रौशनी से न जाने कितने ही लोगों ने अपने बेनूर जीवन को जगमगा लिया लेकिन इस धरातल में एक नक्षत्र की तरह अटल बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ केवल ‘नरेंद्र नाथ दत्त’ को जो उनकी छत्रछाया में आकर ‘स्वामी विवेकानंद’ बने और उनकी शिक्षाओं को सकल जगत में इस तरह प्रचारित व प्रसारित किया कि आज तलक भी दुनिया उनके नाम को नहीं भूली और उनके नाम के साथ अपने गुरु का नाम भी इस तरह से जुड़ा कि एक का जिक्र हो तो दूजा स्वतः ही ध्यान में आ जाता कि एक सिक्के के दो पहलू की तरह ये आपस में जुड़े हुये जिन्हें कायम धरती तक पृथक नहीं किया जा सकेगा...

‘रामकृष्ण’ की सरलता-सहजता ने ही उन्हें ‘परमहंस’ बना दिया और उनकी अटूट भक्ति की शक्ति ने ‘माँ काली’ को भी उनकी निवेदन मात्र से उनके सामने आने पर मजबूर कर दिया और ये केवल एक बार या महज़ संयोग नहीं था बल्कि वे तो अपने पुत्र की पुकार पर हर बार इस तरह से आ खड़ी होती जैसे हमारी आवाज़ से हमारी माता हमारे समक्ष आ जाती क्योंकि उनका ये अटूट भरोसा कि, ‘ईश्वर हैं और हम उससे उसी तरह से बात कर सकते या उनको देख सकते जिस तरह से हम किसी दूसरे जीवित व्यक्ति को देख-सुन सकते केवल हमारे अंतर में उनको पाने की प्रबल उत्कंठा होनी चाहिये फिर उनके दर्शन होना नामुमकिन नहीं’ और यही बात ‘नरेंद्र’ के सवाल पूछने पर कि ‘क्या हम भगवान् को देख सकते हैं, उन्हें महसूस कर सकते हैं?’ उन्होंने तुरंत जवाब दिया कि ‘हाँ, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह हम एक-दुसरे को देख सकते’ जबकि हम सब उस परम शक्ति के अस्तित्व पर भरोसा जरुर करते लेकिन उसे पाने की इच्छा हम में से कितने में होती पर, उन्होंने अपने भोले-भाले भरोसे से किये गये अनेक प्रयोगों से अपनी बात को सिद्ध कर के भी दिखा दिया जिसकी वजह से ‘स्वामी विवेकानंद’ को भी न सिर्फ इस बात को मानना पड़ा बल्कि उनको भी अपने गुरु की कृपा से उस मूरत के साक्षात् दर्शन हुये और जिसने भी अपने इस विश्वास पर पूर्णतया विश्वास किया उन सबको ही ये अलौकिक अनुभव प्राप्त हुआ हैं...
      
उनके अनुयायी सिर्फ ‘नरेन्द्र नाथ दत्त’ ही नहीं थे बल्कि बड़े-बड़े महारथियों ने भी उनकी इस सहज भक्ति को माना जिनमें केशवचंद्र सेन, विजयकृष्ण गोस्वामी, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, बंकिमचंद्र चटर्जी, अश्विनी कुमार दत्त के नाम भी आते हैं जिन्होंने उनके उपदेशों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास किया तो आज उनकी जयंती पर हम सब भी उनके विचारों का अध्ययन करें और उनका अनुशरण करने की प्रतिज्ञा करें जिनमें से कुछ प्रमुक्ष इस पराक्र हैं....

जब हवा चलने लगी तो पंखा छोड़ देना चाहिए पर जब ईश्वर की कृपा दृष्टि होने लगे तो प्रार्थना तपस्या नहीँ छोड़नी चाहिए

यदि तुम ईश्वर की दी हुई शक्तियोँ का सदुपयोग नहीँ करोगे तो वह अधिक नहीँ देगा इसलिए प्रयत्न आवश्यक है ईश-कृपा के योग्य बनाने के लिए भी पुरुषार्थ चाहिए

राजहंस दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है दूसरे पक्षी ऐसा नहीँ कर सकते इसी प्रकार साधारण पुरुष माया के जाल मेँ फंसकर परमात्मा को नहीँ देख सकते केवल परमहंस ही माया को छोड़कर परमात्मा के दर्शन पाकर देवी सुख का अनुभव करते हैँ

कर्म के लिए भक्ति का आधार होना आवश्यक है

पानी और उसका बुलबुला एक ही चीज है उसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा एक ही चीज है अंतर केवल यह है कि एक परीमीत है दूसरा अनंत है एक परतंत्र है दूसरा स्वतंत्र है

मैले शीशे मेँ सूर्य की किरणो का प्रतिबिंब नहीँ पड़ता उसी प्रकार जिन का अंत:करण मलिन और अपवित्र हैँ उन के हृदय मेँ ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीँ पड़ सकता

जब तक इच्छा लेशमात्र भी विद्यमान है जब तक ईश्वर के दर्शन नहीँ हो सकते अतएव अपनी छोटी छोटी इच्छाओं और समयक विचार विवेक द्वारा बड़ी बड़ी इच्छाओं का त्याग कर दो

एकमात्र ईश्वर ही विश्व का पथ प्रदर्शक और गुरु है

इन अनमोल वचनों से यदि किसी एक को भी हमें आत्मसात कर लिया तो जीवन सफल हो जायेगा... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१८ फरवरी २०१७

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