गुरुवार, 10 मई 2018

सुर-२०१८-१३० : #असुरक्षा_का_भय #जो_न_करवाये_वो_कम



जब से ‘भाजपा’ सत्ता में आई तब से देश का माहौल एकदम से बेहद खराब हो गया इतना कि यहाँ रहना भी लोगों को नागवार लगने लगा और हद तो ये हो गयी कि ‘हिंदू’ जिसकी वजह से इसका एक नाम ‘हिंदुस्तान’ हैं उसे इतना शर्मसार किया जा रहा हैं जैसे कि जल्द ही इस देश को पूर्ण हिंदू घोषित किया जा रहा हो और अन्य जातियों को देश निकाला दिया जाने वाला हो यदि इन सबके पीछे की वजह जानने की कोशिश करें तो कोई मुश्किल नहीं होगी साफ़ समझ आयेगा कि विपक्ष दल जो पिछले लम्बे समय से सत्तारूढ़ रहकर शासन कर रहा था एकाएक ही संपूर्ण दश के राज्यों से एक-एक कर के उसका पत्ता साफ़ होने लगा तो सतासीन दल को बाहर करने का उसे अपना वही पुराना फार्मूला ही एकमात्र कारगर उपाय नजर आया ‘फूट डालो, राज करो’ जिसे उन्होंने उससे भी पूर्व इस देश में लगभग दो-सौ सालों तक राज्य करने वाली फिरंगी सरकार से सीखा था

उसके द्वारा वही एक बार फिर से आजमाया जा रहा और इस कदर बड़े पैमाने पर कि व्यक्ति संभल भी नहीं पाता और एक नई खबर उसके सामने सुरसा की तरह मुंह खोले आ जाती जिसके भीतर वो इस तरह से समाता जा रहा कि उससे बाहर निकलने का उसे कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा यहाँ तक कि वो तो भूत-प्रेतों को भी जीवित कर उनके भूले-बिसरे प्रकरणों को भी सबके सामने ला रहा हैं ऐसे में आम आदमी के सोचने-समझने की शक्ति खत्म होती जा रही कि आखिर वो किधर जा रहा बेचारा किसी एक मसले पर अपने विचार व्यक्त कर पाता ही कि शाम तक कोई दूसरा मसला जिन्न की तरह प्रकट हो जाता वो भी ऐसा जिन्न जिसका ‘रिमोट कंट्रोल’ एक अदृश्य शक्ति के हाथ में जिसे हम ‘मि. इंडिया’ कह सकते क्योंकि, इनकी नजर में ‘इंडिया’ शब्द नफ़रत से भरे ज़हर के प्याले से इतर कुछ नहीं और इन्हें इसे ‘भारत’ बनने से रोकना हैं, इसे ‘हिंदुस्तान’ कहलाने से रोकना हैं, इसे ‘आर्यावर्त’ होने से रोकना हैं और किसी भी हालत में इसे ‘रामराज्य’ नहीं बनने देना हैं वरना, इनका अस्तित्व रावण की तरह खत्म हो जायेगा

इसलिये ये लगातार जातिवाद की ज्वाला में वैमनस्य का घी डालकर उसे भडकाते रहते ताकि इनकी रोटियां सिंकती रहे और यदि कभी आग मद्धम हो ही जाती तो दूसरे मुद्दे भी तो हैं इनके पास तब तक उन्हें गर्म कर देते और इस तरह इनका काम चलता रहता हैं इन्हें देश से नहीं केवल सत्ता से मतलब जिसको पाने ये किसी भी हद तक जा सकते और कोई भी कुकर्म कर सकते चाहे फिर अपनों की हत्या कर सहानुभूति की लहर पर सवार होकर ही मिले मगर सिंहासन हर हाल में चाहिये ये गुर भी तो इन्होने गद्दारों से सीखा कि किस तरह से पीठ पर छुरा घोंपकर भी सियासी चाल चली जाती याने कि साम, दाम, दंड और भेद के हर पहलू में इनको महारत हासिल तो जब जिसकी जरूरत महसूस होती उसे ही आज़मा लेते सत्ता का नशा सबसे घातक जिसका कोई इलाज़ नहीं और जिसके मद में चूर राजनेताओं को सिवाय राजगद्दी के कुछ दिखता नहीं फिर चाहे निरपराध जनता इनकी स्वार्थ की चक्की में पिसती रहे तो पिसती रहे इन्हें तो येन-केन-प्रकरेण उसे हासिल ही करना हैं

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१० मई २०१८

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