आज से 30-40
साल पहले तक अनुसंधान एक दुष्कर कार्य था । जब
भी कोई किसी विषय इसे करने का निश्चित करता तो तय समयसीमा में उसे प्रमाणिकता के
साथ पूर्ण करना बेहद मुश्किल होता था । आज मगर, इंटरनेट और मोबाइल व लैपटॉप जैसे गेजेट्स की वजह से ये उतना असाध्य या
असंभव कार्य नहीं रह गया हैं । अब तो कोई भी कठिन से कठिन विषय हो या कितना भी
जटिल प्रयोग उसके लिये आवश्यक संसाधनों को जुटाना या संदर्भ ग्रंथों से जानकारी
प्राप्त करना मात्र एक क्लिक का टास्क रह गया । पहले इन्हीं सबकी सूची बनाने या
इनको ढूंढने में बहुत समय जाया हो जाया करता था । 'गूगल' जैसे सर्च
इंजिन और ‘सोशल मीडिया’ जैसे ‘टूल्स’ ने घर बैठे ही हर वो इन्फॉर्मेशन जिसकी
अनुसंधान में जरूरत हैं केवल चाहने मात्र से खोजकर्ता को उपलब्ध करने में कोई कसर
नहीं छोड़ी हैं ।
फिर भी इतनी
सुविधाओं के बाद जहां अनुसंधान कार्यों में तेजी आनी थी वहीं कोई कमी महसूस होती
हैं । यदि इस बिंदु पर विचार करे तो पाते हैं कि, अब चुटकियों में सूचनाओं का भंडार तो उपलब्ध हो रहा मगर, उनमें से कितना प्रामाणिक या विश्वसनीय इस पर
प्रश्नचिन्ह हैं । जो दर्शाता कि जब तक अनुसंधानकर्ता को स्वयं ही अपने विषय का अच्छी
तरह से ज्ञान न हो ये सभी चीजें उसके लिए अनुपयोगी ही रहती हैं अतः ये आवश्यक कि
वो अनुसंधान के व्यवहारिक पक्ष पर कदम उठाने से पहले सैद्धांतिक पहलुओं को पूरी
तरह से ग्रहण करने के ततपश्चात् ही आगे कोई कार्यवाही करें नहीं तो उसके लिये अपने
उद्देश्य में सफल होना स्वप्न रह जायेगा । अब सवाल उठता कि किसी भी जानकारी या
सूचना के प्रामाणिक होने का पता किस तरह से लगाया जा सकता है तो इसका जवाब हैं
तकनीकी पक्षों की भी पुख्ता जानकारी हो ।
जब भी हम ‘इंटरनेट’
के माध्यम से कोई जानकारी प्राप्त करें तो उसका स्त्रोत भी एक बार जरूर चेक कर ले
जो यदि संदिग्ध हो तो उसका इस्तेमाल कतई न करें । इसे जांचने का तरीका तो यही कि
पहले तो अपने कंप्यूटर या गेजेट्स को किसी एन्टी वायरस से सुरक्षित कर जिससे कि वो
संक्रमित न हो सके । दूसरा, कि केवल
ऑफिसियल वेबसाइट्स पर ही भरोसा करें और url को जांचकर ही फिर कोई लिंक ओपन करें । हमारी एक गलती से न केवल हमारा
यंत्र खराब हो सकता हैं बल्कि, त्रुटिपूर्ण
जानकारियों से युक्त शोधपत्र भी अमान्य माना जायेगा ऐसे में सिर्फ तकनीक पर निर्भर
होने की जगह खुद भी टेक्नो सेवी होना बेहद जरुरी हैं । सूचना जगत में जिस तरह तेजी
से विकास हुआ अनुसंधान भी उतनी ही तीव्र गति से प्रभावित हुआ क्योंकि, अब लोगों को किसी भी विषय पर कोई भी जानकारी
चाहिए हो तो वो इंटरनेट का उपयोग करता हैं ।
इसके द्वारा
हमें अनुसंधान के ‘हॉट टॉपिक्स’ के साथ-साथ अभी किन क्षेत्रों व किन विषयों पर
शोधकार्य अपूर्ण या हुआ ही नहीं ये भी ज्ञात होता हैं तो इस तरह हमें अनुसंधान
हेतु नई-नई विषयवस्तु का ज्ञान होता हैं । इसके अतिरिक्त अब हम इस क्षेत्र को भी
अपने अनुसंधान के लिये चुन सकते हैं जहां विषयों व टॉपिक्स की भरमार हैं ।
कंप्यूटर विज्ञान ने तो अनुसंधान के लिये शोधपत्र बनाना भी सुविधाजनक कर दिया हैं
। यहां पर इतने सारे अलग-अलग तरह के सॉफ्टवेयर हैं जिनकी मदद से हम बड़ी आसानी से
सुसज्जित और त्रुटिहीन टाइपिंग कर सकते हैं । इस कार्य हेतु अनेक टूल्स भी उपलब्ध
होते हैं जहां अनुक्रमणिका बनाना, संदर्भ सूची,
चार्ट, टेबल
या क्लिपआर्ट्स को टाइप किये गये मेटर के साथ जोड़ना बड़ा आसान होता हैं । इनकी मदद
से हम न केवल आकर्षक व प्रभावशाली डाक्यूमेंट्स का निर्माण कर सकते हैं बल्कि,
कभी-भी किसी भी तरह का संशोधन करना या कोई
अवांछित जानकारी मिटाना या कोई नवीनतम सूचना जोड़ना हो तो ये सब बड़ा आसान होता हैं
।
तकनीक ने सिर्फ
हमको अनुसंधान के लिये नये विषयों या क्षेत्रों का ही वरदान नहीं दिया बल्कि,
अनुसंधान की दुरूह प्रणाली को सरल बनाकर इसे
हमारे लिये सुविधाजनक भी किया हैं । इसलिये हम कह सकते हैं कि पहले जहां इस कार्य
में अनेक कठिनाइयां थी वहीं अब तकनीक के कारण अनेक सुविधाएं भी हैं जो निश्चित ही
प्रेरणादायक हैं ।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
११ मई २०१८
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