23 मई 1984 का
दिन यूं तो एक आम-सा ही दिन था मगर, दिन
के 1 बजकर सात मिनट पर वो ऐतिहासिक दिवस बन गया जिसका उल्लेख आज भी किया जाता और
जिसे इतिहास के पन्नों में से हटा पाना नामुमकिन क्योंकि, उस दिन को खास बनाने के लिये एक तीस वर्षीय महिला ने 29028 फीट अर्थात
8848 मीटर की चढ़ाई करके दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर कहलाये जाने वाले दुर्गम ‘माउंट
एवरेस्ट’ पर भारतीय विजय पताका फहरा दी और इस तरह इसी चोटी के नेपाली नाम 'सरगमाथा' अर्थात् जिसे ‘स्वर्ग का शीर्ष’ कहा जाता उसके माथे को चूम लिया तो
उसने भी बाहें फैलाकर उसे अपने सर पर बैठा लिया ।
ये एक साधारण
सी महिला का असाधारण कारनामा था जिसने ये दिखा दिया कि जिन पर्वत या पहाड़ों को
स्त्रियों के लिये असाध्य माना जाता या जिस पर चढ़ विजय हासिल करना उनके लिये महज़
कल्पना समझी जाती वो कोई इतना भी मुश्किल कार्य नहीं केवल, मन में ठान लेने की इच्छा हैं फिर जिस ऊंचाई को भी छूना हो वहां न केवल
पहुंचा जा सकता बल्कि, कीर्तिमान
बनाकर एक मिसाल भी कायम की ज सकती कि पहाड़ या पर्वत या सागर को जेंडर से कोई मतलब
नहीं जो भी चाहे उस पर चढ़ सकता वो तो हम ही जो ये बंधन या सीमाएं तय कर देते कि
फलाना काम सिर्फ पुरुष ही कर सकते महिलाएं नहीं यदि हम लड़कियों को भी शुरू से ये
बताये कि उनके लिये कुछ भी बन पाना या कर पाना असम्भव नहीं और वे उन सभी
कार्यक्षेत्रों में अपनी जगह बनाकर उच्चतम मुकाम प्राप्त कर सकती जिन्हें केवल
पुरुषों का समझा जाता और फिर वो उसे असंभव नहीं समझेगी ।
हमने महिलाओं
के लिये केवल नियम या संस्कार या व्यवहार ही नहीं बल्कि काम करने के स्थान भी
निर्धारित कर दिए जिसने उनकी उड़ान को सीमित कर दिया ये तो चंद ऐसी जीवट महिलाओं की
असाधारण इच्छाशक्ति का कमाल कि उन्होंने इन प्रतिबंधों ही नहीं उन दहलीजों को भी
पार किया जिनके अंदर उनको लड़की होने के नाम पर तमाम हिदायतों के नाम पर कैद कर के
रखा गया ऐसी ही एक कर्मठ, जुझारू और
साहसिक महिला ‘बछेंद्री पाल’ हैं जिन्होंने इसके पर जाकर छलांग लगाई तो ऐसी
उल्लेखनीय सफलता हाथ आई जिसने अनगिनत नारियों को उनकी असीमित कार्यक्षमता का अहसास
दिलाया और उन्हें घर की चारदीवारी व रसोईघर से बाहर निकल अपनी बाजुओं के दम पर
अपनी पहचान बनाने का हौंसला दिया ।
एवरेस्ट की
ऊंचाई पर पहुंचने के एक वर्ष पश्चात् बछेन्द्री पाल ने फिर एक बार पर्वतारोहण का
कार्यक्रम बनाया जिसमें उन्होंने अपने पर्वतारोही दल में सिर्फ महिलाओं को ही
शामिल किया और उसके बाद 1994 में उन्होंने हरिद्वार से कलकत्ता तक गंगा में
राफ्टिंग के महिला दल का नेतृत्व भी किया और लगातार अर्जुन पुरस्कार, पदमश्री और अनगिनत सम्मान पाकर स्त्रियों को
प्रेरक बन मार्गदर्शन दिया आज उनके सफ़लता दिवस पर उनको <3 से बधाई... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
२३ मई २०१८
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