सोमवार, 14 मई 2018

सुर-२०१८-१३४ : #बिना_आग_के_भी_धुआं_होता_हैं




अमूमन किसी भी बात को सही साबित करने के लिये ये जुमला उसके साथ जोड़ दिया जाता हैं कि, 'बिना आग के भी कहीं धुआं होता हैं' उस वक़्त ये कहने वाले का तात्पर्य यही होता हैं कि जो कुछ भी कहा जा रहा या उड़ाया जा रहा कहीं न कहीं उसमें कोई न कोई सच्चाई अवश्य होगी उस पर अगर, मसला लड़की से जुड़ा हो तो फिर इससे सटीक तर्क दूसरा नहीं मिलता कि अजी, ऐसा हो ही नहीं सकता कि सारी गलती अगले की ही हो कुछ न कुछ तो जरूर इसने भी किया होगा क्योंकि फिर वही बात 'बिना आगे के तो...' याने कि ये कोई वाक्य नहीं ब्रम्हास्त्र हो गया जिसकी कोई काट नहीं

अब थोड़ा इस पर भी गौर करने की जरूरत हैं आखिर, कब तक हम इस तरह की दलीलों से असत्य को सत्य और निरपराधी को अपराधी सिद्ध करते रहेंगे जबकि ये महज़ एक कहावत न कि कोई ब्रम्हवाक्य या मन्त्र जिससे सब कुछ स्वतः ही सिद्ध हो जाये इसलिये हमें किसी भी मुद्दे को इतने हल्के में हल मानकर नहीं छोड़ना चाहिये जरुरी नहीं कि आग लगे तभी धुआं हो कभी-कभी बिना आग लगे भी आँखें मिंचमिंचाने लगती हैं हमेशा धुंआ ही दोषी नहीं होता और न ही वो आग का मोहताज होता कभी-कभी बिना आग के भी फैल जाता चारों तरफ ऐसे में हर बात के लिये आग और धुएं पर दोषारोपण ठीक नहीं

इस बात को एक घटना से समझाने का प्रयास करती हूँ तब शायद, जाने पाये कि हमेशा लड़की ही सही नहीं और न हमेशा लड़का ही लड़की के साथ बदमाशी करता कभी-कभी इसका उलट भी हो सकता वो भी तब जब लड़की किसी बड़े रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखती हो और उसे अपनी काबिलियत व पोजीशन का अहसास भी हो ऐसे में अगर, लड़का एकदम सामान्य घर को हो तब वो अपने लड़की होने का जमकर फायदा उठाती हैं कुछ ऐसा ही किया ‘कायरा’ ने जो एक प्रशासनिक अधिकारी की बिटिया थी और एक सरकारी कॉलेज में पढ़ती पर, साथ ही अपनी शान, अपने रुतबे और अपने लड़की होने को पूरी तरह कैश करती इस लिए लड़कियों की बजाय लड़के ही उसके दोस्त थे कोई लड़की न तो उससे बात करना या न ही उससे दोस्ती करना पसंद करती थी पर, उसे फर्क न पड़ता कि उसका नजरिया व सोच ही अलग थी तो वो अपने लाइफ स्टाइल से बिंदास जीती

इसके बावजूद भी खुद को ओवर स्मार्ट समझने वाली वो लड़की अंजान थी कॉलेज की राजनीती से तो एक दिन उसके इस अक्खड़पने का एंटी कॉलेज ग्रुप ने फायदा उठाते हुए उसे मोहर बनाकर अपना उल्लू सीधा कर लिया जिसका उसे पता भी न चला उसे खूब चने के झाड़ पर चढ़ाया और उसके माध्यम से एक लड़के को पिटवा कर कॉलेज कैम्प्स में दंगा करवा दिया जिसे भुगतना पड़ा कॉलेज के भीतरी प्रशासन और बाहरी उस दल को जिससे वो लड़की सम्बन्ध रखती थी और इन दोनों के बीच में वो विरोधी दल अपना काम बन जाने और खुश होकर तालियां पिट रहा था

इस तरह इस घटना ने ये साबित कर दिया कि धुंआ को निकलना हो तो फिर वो बिना आग के भी निकल सकता हैं जिसमें अक्सर जल वो लोग जाते जो इसके आस-पास होते क्योंकि, उनको ही निशाना बनाकर इस तरह के कृत्य किये जाते तो ऐसे में मीडिया हो या कोई भी उसे इस बात की सच्चाई में जाने का प्रयास करना चाहिए न कि आग और धुएं का तर्क देकर अपनी बात को सत्य साबित करना चाहिए ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१४ मई २०१८

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