सोमवार, 28 मई 2018

सुर-२०१८-१४८ : #देकर_गये_जो_फ़िल्में_यादगार #नाम_हैं_उनका_निर्देशक_मेहबूब_खान





‘मदर इंडिया’ एकमात्र ऐसी फिल्म जो हिंदी सिनेमा का पर्याय बन चुकी हैं और इसे बनाने वाले निर्देशक ‘मेहबूब खान’ अपनी इस विश्वविख्यात रचना से विश्व-पटल पर अपनी ऐसी अनूठी छाप छोड़कर गये कि आज भी दुनिया में हिंदी फिल्मों की बात चले तो सबसे पहले इस फिल्म का नाम लिया जाता क्योंकि, इस फिल्म ने अपने समय में अभूतपूर्व कीर्तिमान ही नहीं रचे बल्कि, समस्त जगत में अपने प्रस्तुतिकरण से दर्शकों को अचंभित कर दिया और ये बताया कि हिंदी फिल्मों में माँ का किरदार केवल अपने पुत्र को अँधा प्रेम नहीं करता बल्कि जब वक्त आये तो उसकी जान लेने में भी पीछे नहीं हटता यदि उसे ये अहसास हो कि उसका खून गलत हैं और उसने कोई ऐसे कर्म किया जो नाकाबिले माफ़ी हैं तब वो स्वयं ही न्यायालय बन जाती और एक गोली से फैसला लिख देती जिससे खुद उसका सीना भी छलनी होता लेकिन, हर हाल में अपने फर्ज को प्रथम स्थान देती हैं

जब ये फिल्म प्रदर्शित हुई तो इसने अपने देश ही नहीं साथ-साथ विदेशों में भी धूम मचाई और ऑस्कर के लिये तक इसे नामांकन दिया गया हालाँकि इसे वो सम्मान हासिल नहीं हुआ परंतु बावज़ूद इसके वो उसने सबके दिलों को छुआ कि इसमें एक नारी के सभी रूपों को उसकी पूर्ण गरिमा व आत्मसम्मान के साथ दिखाया गया था चाहे वो पत्नी हो या माँ अपनी हर जिम्मेदारी को उसने विपरीत परिस्थितियों में भी पूरी हिम्मत के साथ निभाया और सबसे बड़ी आश्चर्य की बात कि जिस वजह से उस चरित्र को भारतीय नारी के प्रतिनिधित्व के रूप में स्वीकार किया गया उसी वजह से उसे ऑस्कर से वंचित किया गया क्योंकि, जूरी को ये समझ नहीं आया कि नायिका ‘राधा’ अपने पति के चले जाने के बाद ‘सुखीलाला’ द्वारा दिये गये प्रस्ताव को स्वीकार करने की जगह संघर्ष भरी जिंदगी का चुनाव क्यों करती हैं और बस, इस बात से ही उनको ये फिल्म उस काबिल नहीं लगी

उन्हें ये पता नहीं कि भारतीय संस्कृति में स्त्री इस तरह अपने फायदे के हिसाब से रिश्ते जोड़ती-तोड़ती नहीं वो अकेले अपने दम पर भी जी सकती हैं चाहे हालात कितने भी विषम क्यों न हो यदि उसका हौंसला, आत्मविश्वास और उसके अपने साथ हो तो फिर वो सबका मुकाबला कर सकती हैं जैसा कि ‘राधा’ ने किया पर, जहाँ रिश्तों से अधिक स्वार्थ को तरजीह दी जाती वहां ये परिकल्पना ग्रहण कर पाना मुश्किल था इसलिये इसे वो पुरस्कार नहीं मिला लेकिन जो मिला वो उससे कहीं अधिक बढ़कर हैं क्योंकि, ये आज तक भी फ़िल्मी इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर विराजमान हैं और इसके नाम से बॉलीवुड को पूरी दुनिया में एक अलग पहचान हासिल हैं तो ऐसे में उस शाहकार को रजत पर्दे पर साकार करने वाले महानतम निर्देशक ‘महबूब खान’ को भूल पाना भी मुमकिन नहीं आज जिनकी पुण्यतिथि हैं और यही नहीं उनकी बने सभी फ़िल्में अपने आप में एक इतिहास समेटे हैं पर, आज बात सिर्फ इसी की और उसे बनाने वाले की आज स्मृति दिवस पर उनको... मन से नमन... !!!
     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२८ मई २०१८

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