‘रवि’ सम तेज
‘इंद्र’ जैसी
बौद्धिकता लिये
‘नाथ’ बनकर आये
वो
‘टैगोर’ परिवार
धन्य हुआ
७ मई १८६१ को जन्मे
वो बंगभूमि
विलक्षण
काबिलियत समाहित थी उनमें
बहुमुखी
प्रतिभा के धनी थे वो
साहित्य,
कविता, नृत्य
और संगीत
हर विधा में दक्ष
हुये
अद्भुत कलाकार
और साहित्यकार बन
देश-विदेश में
हुये विख्यात
कलम से निकलते
शब्द अनुपम
रचते नित साहित्य
नूतन
लिखे कविता या फिर
कहानी कोई
होता वो
अद्वितीय सृजन
रहते प्रकृति
के निकट वो हरदम
पाकर जिससे ऊर्जा
भरपूर
बन गये सतत
क्रियाशील और सजग
देकर गये हमें
खज़ाना संपूर्ण
अपनी लेखनी का
बजाय विश्व में डंका
पाकर ‘नोबल’ साहित्य
का फिर
बने ‘गुरुदेव’
अजर-अमर
लिखकर
राष्ट्रगान दो देशों का
हुये मातृभूमि
से ऋणमुक्त
आज जयंती पर हम
सब मिलकर
आओ करें उन्हें
शत-शत नमन !!!
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
०७ मई २०१८
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