सोमवार, 21 मई 2018

सुर-२०१८-१४१ : #मौत_वरदान_भी_होती



आज तक
समझ न आया कि
कहाँ रहते हैं वो लोग ?
जो फिर कहीं के नहीं रहते
शायद, तन्हाई में
खुद से ही बातें करते
या शायद, चिंता की चिता में
रात-दिन सुलगते रहते
या फिर किसी पागलखाने में
रोते और चीखते-चिल्लाते
गोया कि जीते-जी ही
खुद से जुदा होना
तिल-तिल मरने जैसे होता
'मौत' तो वरदान ही होती होगी
ऐसे टूटे-फूटे लोगों के लिए

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१ मई २०१८

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