गुरुवार, 24 मई 2018

सुर-२०१८-१४४ : #गंगा_दशहरा_ऐसे_मनाओ #प्राकृतिक_धरोहर_मिलकर_बचाओ




‘गंगा’ सिर्फ एक नदी नहीं जीवित इकाई हैं जो हमारी तरह ही सांस लेती और हम सबको अपने अमृत रूपी जल से जीवन का दान देती हैं जिसे हमने पुण्यदायिनी समझ देवी माँ की संज्ञा देकर उच्च सम्मान दिया अपनी श्रद्धा व आस्था से जोड़ा मगर, उसके बाद भी हमने उसे क्या दिया जिसने हमारे लिये अपना सर्वस्व त्याग दिया वो जो स्वर्ग व अपने समस्त सुखों को छोडकर सिर्फ हमारे ही लिये धरती पर चली आई मगर, हमने एक तरफ जहाँ पूजा-अर्चना कर के उनको ईश्वर का स्थान दिया वहीँ दूसरी तरफ उनके आंचल को ही गंदगी से भर दिया और उनके सीने को चीरकर उसमें छिपे खजाने का दोहन किया

जो हमारी स्वार्थान्धता की चरम सीमा को दर्शाता कि हम अपने विनाश के लिये खुद ही गड्ढा खोद रहे और फिर जब बढ़ते तापमान को देखते या मौसम की अनियमितता से परेशान होते तो दूसरों के सर पर दोषारोपण कर अपने आपको पाक-साफ़ बताने का प्रयास करते कि आज उनकी जो सोचनीय दशा उसके जवाबदार हम नहीं क्योंकि, हम तो उसका उपयोग नहीं करते या हम तो वहां नहीं रहते लेकिन, जहाँ हम रहते वहां ही हमने कितना सरंक्षण किया या कितने नये नदी-तालाब या नहरों का निर्माण किया हम तो केवल उपयोग करना जानते मगर, समाप्ति के बाद आगे क्या होगा ये नहीं सोचते न ही हम आगे आने वाली पीढ़ी के बारे में ख्याल करते और न ही हमें इस बात की फ़िक्र कि जो हैं उसे ही सहेज ले हम तो बस ये देखते कि हमारा काम चल रहा तो हमें क्या करना ?

अब लेकिन, जिस तरह से कुदरत में नकारत्मक बदलाव आ रहे और जिस तरह से प्राकृतिक धरोहरें लुप्त होने की अवस्था में पहुँच रही वे हमें संकेत कर रही कि चाहे तो हम अब भी उनको बचा सकते अन्यथा एक दिन सिर्फ किताबों के पन्नों में ही उनका नाम व चित्र शेष रह जायेगा जिसे दिखाकर हम गर्व से कहेंगे कि ये हमारे देश का गौरव हैं पर, होगा जब वही पीढ़ी हमसे सवाल करेगी कि उस वक़्त जब वो खत्म हो रही थी तब हमने क्या किया तो हम निरुत्तर हो जायेंगे इसलिये उस दिन के लिये हमें अपनी गौरवशाली विरासत को बचाना हैं, अपने आपको बचाना हैं और गंगा दशहरा सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं वास्तविक गंगा के साथ मनाना हैं... उसके लिये आज से ही संकल्प कर नदियों को संवारना-सजाना हैं... ☺ ☺ ☺ !!!           

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ मई २०१८

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