रविवार, 20 मई 2018

सुर-२०१८-१४० : #लघुकथा_कंधे_पर_रखा_रिश्ता




कभी-कभी आप अपनी मित्रों या दोस्तों के उकसाने को भी प्रेम समझ लेते हो पर, जब अहसास होता तो पछताते हो और उससे जान छुड़ाकर भागना चाहते हो लेकिन फंदा अगर कसा हो तो भागना मुश्किल होता ये भूल जाते हो बिल्कुल, ‘सोना हिरणी’ की तरह जो ख़ुशी के अतिरेक में अपने खूंटे से गाफिल होकर अपनी जान गंवा बैठी

कुछ ऐसा ही हुआ ‘रचित’ के साथ जिसने कॉलेज में दोस्तों के साथ होने वाली बातों से ‘अणिमा’ को अपना परफेक्ट मैच समझ उससे शादी कर ली मगर, जब ‘छवि’ को देखा तो लगा कि उसका सच्चा प्यार वो नहीं ये हैं तो अपनी सीमा को भूलकर चाँद को छूना चाहा और मुंह के बल गिरा

क्योंकि, वो ये भूल गया था कि उसके कंधे पर रखे रिश्ते के दूसरे छोर की गिरह किसी से बंधी हैं जिसे वो आसानी से तोड़ लेगा उसको ये गुमान था परंतु, ये गलतफहमी उसका भ्रम साबित हुई कि बीच में आये खिंचाव से खूंटे को ये इल्म हो गया कि उससे बंधा साथी उससे छूटकर जाना चाहता हैं तो उसने अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी

हमेशा खूंटे को कमजोर समझना सही नहीं होता वक़्त के साथ उसकी पकड़ मजबूत होती जाती हैं क्योंकि, जिम्मेदारियों की बढ़ती परतें उसे गहरा कर देती हैं ‘अणिमा’ अकेली नहीं थी उसके बच्चे, मायका और ससुराल वाले सब उसकी तरफ थे तो ‘रचित’ का तो ये अंजाम होना ही था ।       

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० मई २०१८

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