मंगलवार, 8 मई 2018

सुर-२०१८-१२८ : #मानवता_बिना_मानव_नहीं #पीड़ितों_की_सेवा_सिखाती_रेडक्रॉस_सोसाइटी




यूं तो हर इंसान प्रेम, सेवा, दया, इंसानियत के ज्ज्बे के साथ जन्म लेता पर, बाद में उसे जिस तरह का माहौल या परवरिश मिलती वो उसके अनुकूल ढल जाता और व्यावसायिक व व्यवहारिक बन जाता जिसका जीवन अपने इर्द-गिर्द के लोगों के बीच सिमट जाता और उसके कर्तव्य या कार्य भी सीमित दायरे में ही बंधे रह जाते जिसका लाभ उसे या उससे जुड़े चंद लोगों और कभी-कभी तो केवल उसे ही होता क्योंकि, आंतरिक स्तर पर वो कितना स्वार्थी या परहित चिंतक उस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता और आश्चर्य की बात नहीं कि, दुनिया में ऐसे लोगों की ही संख्या अधिक हैं जिनकी सोच की दौड़ अपनों तक ही पहुंच पाती हैं ।

इसमें उनका कोई दोष नहीं जैसा वो अपने आस-पास देखते उसी के अनुसार आचरण भी करते तो किसी को भी इसमें कुछ अनुचित नहीं लगता कि जीने का यही एक सामान्य ढर्रा जिसका सब अनुकरण करते फिर भी इनके बीच भले नाममात्र को ही हो लेकिन, ऐसी पवित्र आत्मायें भी होती जो दूसरों के दुख, तकलीफ, दर्द और पीड़ा से तड़फ जाती और उनके जख्मों पर मरहम लगाने अपने आपको समर्पित करने से भी न हिचकिचाती क्योंकि, इनका हृदय करुणा व ममता से ओत-प्रोत होता जो किसी के आंसू या आह को बर्दाश्त नहीं कर पाते और उसे खुशी व हंसी में बदलने कुछ भी करने से कदम पीछे न हटाते क्योंकि, वे जानते कि, किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार... जीना इसी का नाम हैं।

यूं तो हम सब भी इन पंक्तियों के मर्म से परिचित लेकिन, इसे जीवन में अक्षरशः उतार पाना संभव नहीं क्योंकि, हम अपनी लाइफ, अपने कम्फर्ट जोन में इस कदर लिप्त कि उससे परे कुछ करने की सोचना भी नामुकिन उस पर ये सोच भी असर करती कि फलाने से मेरा क्या रिश्ता-नाता जो मैं उसके लिए परेशान हूँ, ढिकाने ने मेरे लिये क्या किया जो मैं उसके लिए करूँ मगर, कुछ इसे सार्थक करना जानते तो वे वही करते जिसे सही मायनों में मानवीयता कहते हैं । ऐसे ही एक मानवीयता से भरपूर एक साधारण व्यक्ति परंतु, महान मानवता प्रेमी 'जीन हेनरी डयूनेन्ट' का जन्म 8 मई 1828 में हुआ जिन्होंने इटली में युद्ध के दौरान रक्तपात का भयानक दृश्य देखा तथा चिकित्सकीय सहायता के अभाव में युद्धक्षेत्र कालकवलित हो जाने के लिए छूटे हुए घायलों के कष्टों का हृदयविदारक दृश्य भी उनकी आंख के सामने से गुजरे जिसने उन्हें इन पीड़ितों के प्रति कुछ करने के लिये जीवन का मकसद दिया

इस तरह 'रेडक्रॉस सोसाइटी' की स्थापना की परिकल्पना ने जन्म लिया जिसका स्थापना दिवस आज मनाया जाता जो बताता कि मन मे यदि इच्छा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं अन्यथा सोचने से महल खड़ा नहीं होता उन्होंने इसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के रोगियों, युद्ध पीड़ितों और आपदाग्रस्त लोगों की सुश्रुषा व मदद कर उनको जीवनदान दिया और सतत इस काम में सलंग्न क्योंकि, जब तक ये सृष्टि कायम तकलीफें भी रहेंगी और अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस सोसाइटी की आवश्यकता भी बनी रहेगी आज इस दिवस पर सब ये संकल्प ले कि सबकी भले न कर सके मगर, जो पीड़ित दिखाई से उनकी मदद जरूर करें आंख फेरकर न गुजरे या उससे अपने रिश्ते का गुणा-भाग न लगाये बस, ये ध्यान रखे मानवीयता की डोर से बंधे हम सब केवल मानव हैं और सबकी सहायता के लिये सदैव तत्पर हैं अपने भीतर छिपे स्वयंसेवक को पहचाने और उसके अनुरूप व्यवहार करें यही मानवता का तकाजा हैं

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०८ मई २०१८

कोई टिप्पणी नहीं: