बुधवार, 16 मई 2018

सुर-२०१८-१३६ : #मनुहार_मान_लो_प्रिये



न जाओ,
न जाओ...
छोड़कर प्रिये,
तड़पकर बोली उर्मिला
सुन उसकी ये बात
सुमित्रानंदन ने ये कहा,
प्रिये, न जाऊं वनवास भाई संग
रुक जाऊं यही तुम्हारे पास
मुश्किल तो नहीं मगर,
तुम्हारे मेरे जीवन में आने से पूर्व ही
बड़े भाई को दे चुका वचन
सदा साथ रहने का
वो मिथ्या हो जायेगा तो
बोलो, क्या तुम्हें रास आयेगा?
गर्दन झुकाकर किया इंकार
फिर किया अनुरोध
इतना तो मानेंगे न प्राणनाथ कि
चाँद में हम देखेंगे एक-दूजे को
हवा संग भेजेंगे संदेश
अंतर्मन से ही करेंगे हर बात
जरूर, मुझे स्वीकार हैं
हंसकर लक्ष्मण ने दिया जवाब
सुनकर उनका ये वार्तालाप
मुस्कुरा उठा आसमान में खिला चाँद
अब वो बनकर प्रेमदूत
जोड़ेगा बिछड़े दिलों के तार
पहुंचायेगा मन का हाल ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१६ मई २०१८

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