शनिवार, 19 मई 2018

सुर-२०१८-१३९ : #नॉन_डिस्पोजेबल_दिल



कभी बातों के
हवाईजहाज में बैठा
एकदम आसमान में चढ़ा देते हो तो
दूसरे ही पल पलकों को झटक
सीधे जमीन पर गिरा देते हो
कभी एक बार भी ये नहीं सोचते कि
मैं कोई कागज़ का राकेट नहीं
जो तुम बचपन में उड़ाते थे
और जिसकी आदत अब भी तुम्हें लगी हुई हैं
शायद, किसी ने तुम्हें खिलौनों और दिल में
फर्क करना नहीं सिखाया
वरना, आज जान पाते कि जिसे तुमने
तोड़-मरोड़कर फेक दिया
वो कोई डिस्पोजेबल कप नहीं
कि यूज़ एंड थ्रो कर दो
बल्कि, धड़कता हुआ दिल था
जो डिस्पोजेबल की ही तरह कभी
रीसायकल नहीं होता ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१९ मई २०१८

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