शनिवार, 5 मई 2018

सुर-२०१८-१२५ : #महिलाओं_अधिकारों_के_प्रति_रही_सदैव_सचेत #भारत_की_पहली_महिला_चीफ_जस्टिस_लीला_सेठ




“एक जज होने के बाबजूद  अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही  से इतनी परेशानियो का  सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व भारी  भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानून की पेचीदगियो  मे फंसे उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है या जिनकी सुने वाला कोई नही है और जिनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या जिन्हें यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा  खटखटाए”

देश की प्रथम ऐसी महिला जिन्होंने 1958 में लंदन बार परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया और दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनने के साथ ही भारत में उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश बनने वाली प्रथम महिला बनने का श्रेय प्राप्त किया उन ‘लीला सेठ’ का ये कथन अपने आप में ही बहुत कुछ कहता हैं । जिसकी व्याख्या की जाये तो ऐसे अनेक तथ्य सामने आयेंगे जो ये दर्शाते हैं कि आम हो या ख़ास सभी का जीवन संघर्षमय होता हैं और सबको ही अपने जीवन में खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजरकर ही न केवल मुकाम बल्कि, जीवन दर्शन का अद्भुत ज्ञान प्राप्त होता हैं जिसका निचोड़ वो हम सबके साथ साँझा कर हमें अहसास दिलाते कि सबको ऐसी सच्चाइयों का सामना करना पड़ता हैं ।

20 अक्टूबर, 1930 को उत्तरप्रदेश के लखनऊ में जन्मी ‘लीला सेठ’ की कहानी किसी परीकथा की तरह खुशियों से भरी हुई नहीं बल्कि, एक आम लड़की के संघर्ष की गाथा हैं जिसे बचपन से ही मुश्किलों के साथ जीने की आदत पड़ गयी क्योंकि, उनके जन्म के बाद उनके सर से उनके पिता का साया उठ गया ऐसे में उनकी माँ ने अकेले ही उनका लालन-पालन किया और हर तर्क की कठिनाइयों से गुजरकर उन्होंने ऐसा मुकाम हासिल किया कि इतिहास ही रच दिया । उनकी इस अभूतपूर्व उपलब्धि के लिये सदैव उनका नाम शीर्ष पर ही लिया जायेगा जिन्होंने उस कठिनतम समय में हिम्मत हारने की जगह मेहनत व लगन से महिला सशक्तिकरण की इबारत लिखी जिससे प्रेरणा पाकर अनेक स्त्रियों ने अपने जीवन की दिशा बदली और ये मान्यता टूटी कि पुरुषों के वर्चस्व क्षेत्र में औरतें भी न केवल सेंध मार सकती हैं बल्कि, इतना अच्छा काम कर सकती हैं कि आने वाले पीढियां उसके बनाये मार्ग पर चलकर अपने जीवन की राह खुद चुनकर अपनी मंजिल प्राप्त कर सकती हैं ।   

“कोई नहीं चाहता था कि, मैं ये पुरुषप्रधान पेशा अपनाऊं जब मैं काम करने लगी तो मुझे केसेस ये सोचकर नहीं सौंपे जाते थे कि मैं एक औरत हूँ इन्हें ठीक से हैंडल नहीं कर पाऊँगी”

अपनी आत्मकथा में उन्होंने स्वीकार किया कि उनके लिये भी ये पेशा अपनाना आसान नहीं था लेकिन, उन्होंने अपने अनूठे फैसलों और उल्लेखनीय कामों से न केवल देश बल्कि, विदेशों में भी अपने नाम का डंका बजाया और अपने देश का मान-सम्मान बढाया जिसके लिये उनको हमेशा गर्व के साथ याद किया जायेगा कि उन्होंने स्त्री-पुरुष समानता के लिये आवाज़ उठाई तो हिन्दू उत्तराधिकार क़ानूनों में संशोधन कराया जिसके तहत संयुक्त परिवार में बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया और स्त्रियों के खिलाफ होने वाले यौन हिंसा अपराध में कड़े नियम बनाने की पहल की इस तरह उन्होंने स्त्री होने के नाते स्त्रियों की समस्याओं को न सिर्फ समझा बल्कि उसके लिये काम भी किया ।

अपनी जिंदगी में सतत क्रियाशील रहने वाली और महिला हितों की चिंतक ‘लीला सेठ’ पिछले साल आज ही के दिन ८७ साल की उम्र में हम सबको छोडकर जरुर चली गयी लेकिन, उनके द्वारा किये गये कार्य व उनकी उपलब्धियां उनकी याद दिलाती रहेंगी... आज उनकी पुण्यतिथि पर उनका पुण्य स्मरण व उनको मन से नमन... !!!     

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०५ मई २०१८

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