न फंदा
न रस्सी
न कोई बंधन
फिर भी लगता कि
लटके हो जैसे
फांसी पर
घुट रहा दम
आहिस्ता
वो एक पल जब
खत्म हो जाये
सांसें
मिले मुक्ति इस
झूलने से
उसके इंतज़ार
में
काटते अपना
सारा जीवन
वो चंद जो आज़ाद
हैं
अपराध कर के भी
मगर, बोझ लदा सीने पर
छिप-छिप कर
जीते
हर पल सहमते,
कांपते
उस एक खटके से
जिसके बाद फिर
शेष न रहता कुछ
भी
कि फांसी पर
लटकना ही
महज़ मृत्यु
नहीं हैं ।।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
२९ मई २०१८
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