रविवार, 11 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३११ : #ऐ_मेरे_दिल #दिमाग_बन_जा




ऐ मेरे दिल...
<3
माना कि,
तू है बड़ा संवेदनशील
जल्द-ही पिघल जाता है
पर, कभी-कभी तुझे
दिमाग की भी सुननी चाहिये
सिर्फ, अपनी ही मनमानी
नहीं करना चाहिये ।
.....
कितना अर्सा
गुजर गया रफ़्ता-रफ़्ता
पर, तू ना बदला
अब भी तुझमे
वही पुराना दीवानापन
वही भोलापन भरा हुआ है
तभी तो सबने तुझको ठगा है
धोखों से अब तो तुझे
कोई सबक लेना ही चाहिये
.....
सुन गौर से,
अब तो सुधर जा
दिमाग बन जा
बीते वक़्त की गलियों से
अब तो बाहर जा
जमाने की बदली हवाओं
थोड़ा-सा ही सही
तुझपे भी असर होना चाहिये ।
.....
तू नहीं जानता
भले ही तू मानता
कि, प्रेम ही पूजा है
ईश्वर का नाम दूजा है
मगर, इस दुनिया में
आज भी दिलवालों की नहीं
मौकापरस्त और मतलबी
लोगों की ही चलती है
.....
अमूमन,
दिलों-दिमाग की
अंतहीन जंग में जीतकर
तू खुद को तुर्रम-खां समझता है
और, अगला कोई तुझे जीत
खुद को ख़ुदा मान लेता
तुझे नहीं पता कि,
तेरी इस जीत से मगर,
जिंदगी हार जाती है
इन सब बातों का तुझे
कुछ-तो इल्म होना ही चाहिये
दिमाग से काम लेना ही चाहिये ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
११ नवंबर २०१८

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