भारत देश की
जीवन्तता के नजारे आये दिन देखने को मिलते ही रहते जिसमें बीच-बीच में आने वाले
तीज-त्यौहार उल्लास-उत्साह ही नहीं अपार ऊर्जा का संचार भी करते और यही इसकी
विविधतायें जो दुःख व गरीबी में भी लोगों को टूटने नहीं देती बल्कि, निराशा के घोर
अंधकार के मध्य ये भले सितारों की तरह नन्ही-सी चमक ही बिखेरें पर जीने के लिये
काफी है आखिर, मरते को तिनके से बढ़कर सहारा चाहिये भी नहीं यदि उसके भीतर जीने का
जज्बा भरा हुआ है अन्यथा सब कुछ होते हुये भी सब निरर्थक व बेकार ही है ।
यही वजह
कि हम इन परम्पराओं का वास्तविक आनंद उठाते हुये इन्हें ही देखते जो चेहरों या
वस्त्रों से भले दीन-हीन नजर आये पर दिल से बेहद रईस होते इसलिये तो सबको पूजन की
सामग्री बेचते हुये अपना अंगोछा बिछाकर उस पर छोटे-छोटे सामान ही नहीं चेहरे पर
मुस्कान भी सजाये रहते और उस पर भी जब लोग इनके साथ रूपये-दो-रूपये कम करने जोर
देते तो अपने मुनाफे में कटौती होते देख भी ये उसे उनकी बताई कीमत पर दे देते
ताकि, सबका त्यौहार ख़ुशी-ख़ुशी मन सके जीवन में भला इससे बड़ी ख़ुशी और क्या है ।
इस देश की
यही सहनशीलता और सबके साथ मिलकर जीने की इस अद्भुत कुशलता से ही तो सब जलते और
अक्सर ये प्रयास करते कि इनके बीच किसी तरह से फूट डाल दी जाये ताकि ये आपस में
झगड़ते ही रहे और इनका काम बन जाये इसके लिये ये तरह-तरह के प्रपंच भी रचते पर, इस
देश में जब तक लोगों के हृदय में सनातन आस्था-विश्वास की पूंजी शेष है कोई कितना
भी चाहे छल-कपट कर ले या कितने भी जाल बिछा ले कुछ न होने का क्योंकि, उखड़ते वही
जिनकी जड़ें कमजोर या सतही होती है ।
आज कार्तिक मास
के शुक्ल पक्ष की एकादशी एक ऐसी ही पावन तिथि जब संसार के पालनकर्ता जागते और उसके
साथ ही समस्त मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते तो आज सुबह से ही ऐसी अनगिनत दृश्य
दिखाई दिये जो ये विश्वास दिलाते कि सोशल मीडिया पर जितनी भयावह नजर आती उतनी
जहरीली भी नहीं हुई है हवायें अब भी उसमें प्रेम, स्नेह, भरोसे, बन्धुत्व के कण
घुले हुये है जो डगमगाती हुई संस्कृति-सभ्यता की नाव को मजबूत सहारा देकर बिना
डुबाये बहुत आगे तक ले जा सकते है ।
हमारे पुरातन
रीति-रिवाज व धरोहर इसी तरह हम संजोतें रहे यही मनोकामना और सबको देव-प्रबोधिनी
एकादशी व तुलसी विवाह की मंगलकारी शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
१९ नवंबर २०१८
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