शनिवार, 17 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३१७ : #लघुकथा_सेफ्टी_वाल्व




प्राची, सुनो माँ का फोन आया था वो कल आ रही हमारे साथ रहने बोल रही थी पूरे एक महीने तक रुकेंगी तो तुम कोयल के कमरे में उनका बिस्तर लगवा देना

नो पापा जी, दादी रात भर खांसती मुझे डिस्टर्ब होता और इस साल मेरा बोर्ड एग्जाम आपसे पहले ही बोला था इस साल किसी को न बुलाइयेगा तो प्लीज अभी मना कर दीजिये

सही कह रही है कोयल, विधान तुम मम्मी को मना कर दो कि अभी नहीं कोयल के पेपर्स के बाद आये किचन से प्राची ने भी कोयल की बात में बात मिलाते हुये कहा

विधान की समझ में न आया कि वो क्या करे मम्मी को मना करना उसके बस की बात नहीं थी और प्राची, वो भी कहाँ सुनने वाली थी उस पर कोयल का भी दबाब जिसने उसे असमंजस में डाल दिया था

इस डबल प्रेशर के चलते वो तनाव में आ गया और सोचने लगा किस तरह इस समस्या से निपटे कि तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी तो उसने देखा मम्मी का फोन था उसे समझ नहीं आया उठाये या नहीं और उठाये तो क्या बोले पर इग्नोर करना भी संभव नहीं था तो उसने उसे उठा लिया वहां से माँ की आवाज़ सुन उसका मन गीला हो गया और उसकी बातों  से उसकी माँ समझ गयी किसी बात से उसका बेटा परेशां है

तब उसकी परेशानी का अंदाजा लगाते हुये उसने कहा, “बेटा, मैंने इसलिये फोन किया कि इस बार मैं न आ पाऊँगी तेरे पापा की तबियत ठीक नहीं तो मुझे उनके साथ ही रहना पड़ेगा फिर कभी देखूंगी” उनकी बात सुनकर उसने राहत की सांस ली और बोला, “ठीक है माँ अभी आप पापा की देखभाल कर लो फिर गर्मियों में आ जाना” बेटे की बात से माँ को बुरा तो लगा कि उसके बेटे ने उससे आने की जिद नहीं की पर, कहीं भीतर इस बात से सुकून का अहसास भी हुआ कि उसने सही अंदाजा लगाया जिसने उसके बेटे की मुश्किल आसान कर दी है    

उधर बेटा सोच रहा था कि, माँ किस तरह हर बार उसे कठिनाइयों से उबार लेती है शादी के बाद ही वो अपने ही मन से पापको लेकर गाँव रहने चली गई अगर, वो न होती तो अब तक शायद, वो पागल हो जाता

माँ एकदम ‘सेफ्टी वाल्व’ की तरह उसके भीतर के तनाव को नियंत्रित करती है    

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१७  नवंबर २०१८

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