मंगलवार, 13 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३१४ : #छठ_पूजा_करें_लोग_लुगाई #कार्तिक_की_विशेष_तिथि_है_आई




प्रकृति में 'सूर्य' वो सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा जो अगर, न होता तो शायद, कुछ भी न होता क्योंकि, यही तो सारी पृथ्वी ही नहीं सौर-मंडल का भी केंद्र जिसके बिना किसी का कोई अस्तित्व नहीं सब उसको ही तकते और उससे ही जीवनदायिनी ऊर्जा पाते है अपने आपको गतिशील-क्रियाशील बना पाते याने कि भले ही किसी अदृश्य ईश्वर ने हमारी रचना की हो लेकिन, हमको जीवन तो इसके जरिये ही मिलता है ऐसे प्रत्यक्ष दिखाई देने भगवान को क्यों न हम रोज पूजे उनकी आरती उतारे उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करें जो हमारी सभ्यता-संस्कृति का भी अभिन्न अंग और वेद-पुराण व उपनिषदों में भी इसका विस्तृत बखान है जहां पहले प्रकृति को ही देवताओं की भांति पूजा जाता था उनके निमित्त होम-अनुष्ठान किये जाते थे तभी तो प्रकृति-मानव का निःस्वार्थ रिश्ता अनादिकाल से चला आ रहा जिसमें स्वार्थ का समावेश केवल कुदरत ही नहीं हम सबको भी खतरे में डाल रहा है ।

ऐसे में भी यदि ये धरती कायम और ईश्वर पर विश्वास बना हुआ है तो इसकी एकमात्र वजह भारतीयों की वो धार्मिक मान्यताएं या आस्थाएं है जो उसे निराशा के माहौल में भी टूटने नहीं देती उसके गिरते मनोबल को थाम लेती है जब भी लगता कि ये दुनिया तो रसातल को जा रही या इसका पतन इसे धीरे-धीरे विनाश की तरफ ले जा रहा तब ही श्रद्धा-विश्वास का कोई न कोई लोक-पर्व ये अहसास दिला देता कि जिस देश के कोने-कोने में अपनी प्राचीन धरोहरों को सहेजने वाले अपनी परंपराओं को निभाने वाले बसे हुए है वहां कहाँ-कहाँ से और कितना उसको मिटाया जा सकेगा समूल नष्ट करना नामुमकिन क्योंकि, हर प्रान्त में कुछ ऐसे सच्चे वतनपरस्त जो अपनी माटी की खुशबू, अपनी धरती की पहचान, अपने राज्य की लोक रीतियों को हर हाल में सहेज रहे है यही नहीं वे उसे आगे की पीढ़ियों में भी हस्तांतरित करने संकल्पबद्ध है तभी तो अनेक दुष्प्रयासों व कुप्रचार और बोले की मर्मान्तक प्रहारों के बाद भी सब कुछ यथावत जारी है

‘सोशल मीडिया’ के आने के बाद इसके सकारात्मक तो नहीं लेकिन, नकारात्मक दुरुपयोग अनगिनत दिखाई दिये जिसमें एक विशेष बुद्धिजीवी तबके के द्वारा लगातार भारतीय रीति-रिवाजों, तीज-त्यौहारों, भगवान आदि पर तरह-तरह से निशाने लगाये जाना है यहां तक कि उन्हें लज्जित करने उनकी मान्यताओं का उपहास तक उड़ाया गया फिर भी यही देखने में आया कि जिनकी जड़ें कमजोर या जिनको अपने विगत का पुख्ता ज्ञान नहीं वही कोई डिगा हो तो डिगा बाकी तो जिनके कदम मजबूती से अपनी जमीन से जुड़े उनको इन सब बातों से कोई फर्क न पड़ा वो उसी तरह उतने ही जोशों-खरोश के साथ अपने लोक उत्सवों का आनंद ले रहे बल्कि, मुझे तो इस तरह के दुष्प्रचार के बाद कई जगह इनकी संख्या बढ़ी ही महसूस हुई जो साबित करता कि कुछ बात है कि “हस्ती मिटती नहीं हमारी सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा”

ऐसे सभी आस्थावादियों और धर्मरक्षकों को छठ महापर्व की अनंत शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१३  नवंबर २०१८

कोई टिप्पणी नहीं: