शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३०२ : #लघुकथा_औकात



चल हट दो कौड़ी की धंधे वाली होकर मुझसे जुबान लड़ाती है तेरी औकात नहीं मेरे सामने खड़े होने की और तू है कि मुझसे लड़ रही है ।

साहब, जैसे आप धंधे वाले है वैसे ही मैं भी हूँ और इसी से मेरी रोजी-रोटी चलती तो यदि आप ग्राहक के कम पैसे देने पर उसे सामान नहीं देते तो मैं कैसे कम लूँ ।

तेरी इतनी मजाल जो तू मेरे प्रेस्टीजीयस बिजनेस की तुलना अपने चालू धंधे से कर रही है लगता, भूल गई कि तू एक सडकछाप सेक्स वर्कर है और मैं एक इज्जतदार टैक्स पेयर ।

नहीं साहब कुछ नहीं भूली और सही कहा आपने मुझे अपने धंधे की तुलना आपके बिजनेस से नहीं करना चाहिए थी क्योंकि, हम आपकी तरह मिलावट का काम नहीं करते और सडकछाप हैं तो क्या हुआ आप जैसे इज्जतदार लोग खुद आते न हमारे दरवाजे नाक रगड़ने तो बेइज्जत होने का अहसास नहीं होता ।

चटाक से एक चांटा पड़ा उसके गाल पर और उतनी ही जोर से पलटवार भी हुआ तो लडखडा के गिर पड़ा वो तो उसने खुद को दरवाजे के चौखट पर पाया लगा जैसे आईने में अपनी शक्ल देख ली हो एकाएक उसे अपनी औकात का पता चल गया था ।
      
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०२ नवंबर २०१८

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