बुधवार, 21 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२१ : #हरी_हर_के_मिलन_की_तिथि #आई_सौभाग्यदायिनी_वैकुण्ठ_चतुर्दशी




आज बड़ा ही दुर्लभ संयोग है और एक ऐसी तिथि का आगमन जो कि यूँ तो महीने में दो बार आती है लेकिन, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी कोई आम दिवस नहीं बल्कि, आध्यात्मिक व सामाजिक दृष्टिकोण से इसका अत्याधिक महत्व है क्योंकि, आज के दिन जगत के पालनकर्ता चक्रधारी भगवान् विष्णु एवं सृष्टि संहारक जगतपिता आदिदेव शिव दोनों की एक साथ पूजा ही नहीं की जाती बल्कि, उनके हरी-हर स्वरुप की विशेष साधना-अर्चना की जाती है और यही वो दुर्लभतम योग भी लाती जबकि, आदिदेव शंकरजी को तुलसी दल तो भगवान् विष्णु को बेलपत्र चढ़ाई जाती है

देव उठनी ग्यारस के दिन जब चार महीने की लम्बी योगनिन्द्रा के पश्चात् जगतपालक विष्णु जागते हैं तो उनकी अनुपस्थिति में भोलेनाथ जो उनके स्थान पर इस सृष्टि का भार अपने हाथों में ले लेते आज वो उसे पुनः उनको सौंपते हैं अर्थात हम जो सोचते कि इतने दिन जब देवता सो जाते तो फिर इस पृथ्वी का संचालन यथावत किस तरह होता है उसका जवाब है कि जिस तरह कोई अधिकारी अपने कार्यस्थल से कुछ समय का अवकाश लेकर कहीं जाता तो वो इस अवधि में अपनी जगह किसी सुयोग्य कार्यकुशल विश्वसनीय अधिकारी को अपना इंचार्ज बनाकर अपना काम-काज सुपुर्द कर के जाता ताकि, उसके न रहने पर भी कार्यालय का समस्त कार्य सुचारू रूप से चलता रहे कोई व्यवधान या बाधा न आये बिल्कुल, उसी तरह से देवलोक में भी ऐसी ही व्यवस्था होती जहाँ किसी एक के न रहने या किसी कार्यवश छुट्टी लेने पर उसके स्थान पर कोई उतना ही समर्थ देवता उसका प्रभार लेता है और फिर जब वो वापस आता तो उसे उसके अधिकार वापस दे दिए जाते है

आज वही परम पावन घड़ी जबकि, देवों के देव महादेव देव शयनी एकादशी से देव उठनी एकादशी तक लक्ष्मीप्रिय जगन्नाथ के पाताललोक में जाने के बाद इस संसार का समुचित ढंग से क्रियान्वन करते और फिर आज इस विशेष योग पर उसे पुनः उनके ही हाथों में सौंप देते है जिसके निमित्त आज भगवान विष्णु अपने आराध्य शिवजी का हजारों कमल पुष्प से अभिषेक करते और वरदान स्वरुप उनसे सुदर्शन चक्र प्राप्त करते तो ऐसी पुण्यदायिनी तीती की सबको शुभकामनायें सभी अपने मन की कामनाओं को पूर्ण करने का देवताओं से आशीष पाये... जय हरिहर... जय भोलेनाथ... जय जगन्नाथ...  ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१  नवंबर २०१८

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