एक दीपक जिस
तरह तमस को खत्म कर प्रकाश से भर देता है उसी तरह से हम भी चाहे तो अपने आस-पास
थोड़ी-सी खुशियां बांटकर दूसरों की खुशी का कारण बन सकते है । इसके लिये ज्यादा कुछ
करने की जरूरत नहीं होती महज़ दिल में ख्वाहिश का होना पर्याप्त साधन स्वतः ही जुट
जाते और लोग भी अपने आप साथ में आकर हाथ बंटाते इस तरह हम हर एक त्यौहार में सबके
चेहरे पर मुस्कान ला सकते है ।
आज सब जगह लोग
दीपोत्सव का आनंद ले रहे आतिशबाजी कर रहे और मिठाईयां खा रहे और यूं लग रहा आज
अमावस की नहीं पूर्णिमा की रात है इतनी जगमगाहट चारों त4फ़ दिखाई दे रही शायद, यही वजह कि
अमावस्या को यह त्यौहार मनाया जाता जब काली अंधियारी रात को दीपक की रोशनी से इस
तरह रोशन कर दिया जाता कि मन में कहीं ये ख्याल तक शेष न रह जाता कि आज अमावस है ।
ये हमें सीख भी देता कि हम जीवन मे जब भी मुश्किलों के अंधेरों से टकराये तब
बिल्कुल भी न घबराये बल्कि, इस तरह से मन
के कोनों में आशा के दीप जलाये कि कहीं भी निराशा की हल्की-सी भी कोई काली छाया
ठहर न पाये ऐसा हम जब कर पाते तो किसी भी हालात में सर न झुकाते और कठिनाइयों को
राह से हटाते हुए आगे बढ़ते जाते है ।
सब दीपावली पर
यूं ही आशावान व ऊर्जावान होकर तेजस्वी, प्रखर
और सामर्थ्यवान बने यही मनोकामना है... इसी शुभेच्छा के साथ सबको दीपोत्सव की
मंगलकामनाएं... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
०७ नवंबर २०१८
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