मंगलवार, 20 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२० : #साहित्य_का_अमिट_नाम #बने_महाकवि_कालिदास_महान




आदिकवि वाल्मीकि और वेदव्यास के बाद अगर, किसी रचनाधर्मी का नाम साहित्य जगत में आता है तो वो है महाकवि कालिदास जिनके जन्म व स्थान के बारे में भले ही कोई शंका हो मगर, उनके रचित ग्रंथों के सम्बन्ध में किसी को कोई संदेह नहीं है । वो जिनके बारे में कई मिथक व किवदंतियां प्रचलित जिन्हें जानकर पूर्वार्द्ध में ज्ञानशून्य मानते थे उन्हीं के जीवन में इतना बड़ा चमत्कारिक परिवर्तन आया कि न केवल उनके ज्ञानचक्षु खुले वरन उन्होंने बुद्धिबल से ऐसी रचनाओं को जन्म दिया जो आज तलक भी अपनी सानी आप ही है । जिन्हें पढ़कर न जाने कितने ही लिखने वालों ने लिखने का तरीका और भाषा का सौंदर्य सीखा व जाना कि किस तरह से किसी लोककथा या आध्यात्मिक अंश को काव्य में ढालकर उसे सदियों के लिये अमर किया जा सकता है जिसका नतीजा कि वो आज भी अपनी जगह कायम है ।

उनको एक साधारण व्यक्ति से असाधारण व्यक्तित्व में परिवर्तित करने वाली पारसमणि का नाम 'विद्योत्तमा' है । जो एक राजकुमारी व अनिंद्य सुंदरी थी जिनसे विवाह करने न जाने कितने लालायित थे पर, वो अपने समान बुद्धिमान इंसान से ही शादी करना चाहती थी तो उनकी शर्त थी कि जो उनको शास्त्रार्थ में हरा देगा वे उसका ही वरण करेंगी । तब कुछ ईर्ष्यालु व उनसे पराजित विद्वानों ने इनको उनके समक्ष प्रस्तुत कर दिया तो उनके द्वारा इशारों में पूछे गए गूढ़ प्रश्नों का कालिदास ने भी इशारों में भी जवाब दिया जो एकदम सटीक निकले । इस तरह उन्हें अपनी जीवन संगिनी ही नहीं पथ-प्रदर्शक, गुरु भी मिल गयी जिसने उनके जीवन को इस तरह बदला कि एक बुद्धिहीन आदमी एकदम बुद्धिमान ज्ञानी पंडित में परिवर्तित हो गया । जिसका भाषा-व्याकरण पर इतना अधिकार था कि उसने अपनी कलम से संस्कृत जैसी कठिन भाषा में साहित्य का मापदंड ही बदल दिया और ऐसी कृतियों का निर्माण किया जो आप अपनी जवाब है ।

उन्होंने पौराणिक चरित्रों की कथाओं, देश-प्रदेश का वर्णन, ऋतुओं की व्याख्या और नायक-नायिकाओं का चरित्र-चित्रण इस तरह से किया मानो उन्हें कलम से पृष्ठों पर जीवंत ही कर दिया हो उनके संवाद व दृश्यों को इतनी रोचक तरीके से उभारा कि जब उनका अनुवाद भी पढ़ो तो वे सब आंखों के सामने सजीव होकर दिखाई देने लगते है । उनकी भाषा में अलंकारों व काव्यगत विशेषताओं का इस तरह से उपयुक्त प्रयोग हुआ है कि रसिक जन विस्मृत होकर उसमें खो जाते है और उन्हें यूं लगता मानो ये कोई कल्पना नहीं बल्कि, वास्तविकता का सटीक लेखन हो जैसे उन्होंने इसे साक्षात देखकर लिखा हो और ये कोई अतिशयोक्ति नहीं है उन पर मां सरस्वती की विशेष कृपादृष्टि थी तो फिर किस तरह वो सामान्य श्रेणी की रचना कर सकते थे । उनके द्वारा रचित अभिज्ञान शाकुन्तलम, मलविकाग्निमित्र, कुमार संभव, मेघदूत, ऋतु संहार आदि अब तक भी साहित्य अनुरागियों के प्रिय ग्रंथो में शुमार है इनके अनुवाद आज भी सबसे अधिक पसन्द किये जाते और खरीदे भी जाते है जिनमें अपने प्राचीन भारतीय सभ्यता-संस्कृति का दर्शन भी होता है ।

यूं तो कालिदास जी की जन्मतिथि के बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता फिर भी उनके द्वारा देव प्रबोधिनी एकादशी तिथि का बार-बार उद्धृत करना कहीं न कहीं ये इंगित करता कि संभवतः यह उनकी प्रिय का जन्म से जुड़ी हुई तिथि है तो साहित्यकार कार्तिक शुक्ल द्वादशी को उनकी जयंती मनाते है तो आज उनके अवतरण दिवस पर उनका पुण्य स्मरण व उनको मन से नमन...☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० नवंबर २०१८

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