गुरुवार, 15 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३१५ : #मोह_भंग_से_उपजा_मोह



अमूमन,
देखने में आता है कि,
कभी-कभी कोई  
किसी के प्रति आकर्षित होकर
‘सम्मोहन’ को ही
‘प्रेम’ समझ
उसके वशीभूत हो जाता है
.....
ऐसे में यदि उसे
समझाये कोई
उसके उस क्षणिक
मोह के शीश महल को
ज्ञान के कंकर से तोड़ दे और
कर दे भंग वो मायाजाल
जिसकी कैद में जकड़  
वो आप अपना भूल जाता
तब सत्य की दिव्य रौशनी में आकर
जब उसे अहसास होता
उसने जिसे मन ही मन समझा था
इक आसमानी रिश्ता
इक रूहानी इश्क़   
वो तो महज़ नजरों का धोखा था
.....
फिर होकर आज़ाद
आकर्षण के कैद खाने से
निकलकर उस
मोह मरीचिका से  
जिसने तोड़ा उसका भ्रम
अक्सर, वो निराधार
कटी पतंग सम
उसके ही मोहपाश में
बंध जाता है
एक जाल से निकलकर वो  
दूसरे में फंस जाता है     
.....
#माया_महा_ठगिनी
    
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१५ नवंबर २०१८

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