गुरुवार, 22 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२२ : #पितृसत्ता_में_भी_जातिवाद #शाबाश_मान_गये_आपको_जनाब




20 नवम्बर को एक खबर ने मुझे अचरज में डाल दिया जब एक तस्वीर देखी जिसमें कि माइक्रो ब्लोगिग साइट ट्विटर के सीईओ ‘जैक पैट्रिक डॉर्सी’ एक पोस्टर लेकर खड़े है जिस पर एक लड़की की पेंटिंग है जो एक तख्ती लेकर खड़ी है और उस तख्ती पर अंग्रेजी भाषा में जो लिखा था वो काफी चौंकाने वाला था बल्कि, बोले तो विचारणीय भी क्योंकि, उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था स्मैश ब्राह्मिकल पैट्रिआर्कीइस अत्यंत कटु घृणित व जहरीली इबारत के मायने भी उतने ही खतरनाक थे कि 'ब्राम्हणवादी पितृसत्ता का नाश हो' या ‘ब्राम्हणवादी पितृसत्ता को उखाड़ फेंको' उसका अस्तित्व मिटा दो उसको जितना देखा, समझा और उस पर मनन-चिंतन किया उतना ही दिमाग उलझता गया कि ये सब क्या साज़िश है? देश के खिलाफ कौन-सा षड्यंत्र चल रहा है? किस तरह से इस देश को बर्बाद करने तमाम ताकतें जोर आज़माइश कर रही है इन सबके पीछे आखिर कौन है ?

उसके बाद इन महाशय के बारे में जानने का प्रयास किया तो पता चला कि भाईसाहब तो यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में जन्मे है उस हिसाब से तो इन्होंने ब्रह्मानिकल पेट्रिआर्कि के बारे में न तो सुना ही होगा और न ही जाना होगा क्योंकि, वहां तो मनुस्मृति या ब्राम्हणों की सत्ता चलती नहीं तो फिर इन्हें ये शब्द व इसका इतना गूढ़ अर्थ किस बुद्धिमान ने समझाया जो अब तक इस देश के लोगों को तक नहीं पता था कि पितृसत्ता की भी जाति होती है अभी तक तो इंसानों, जानवरों, रंगों व मज़हब ही की जात-पात का पता था अब ये नया सियापा चालू हो गया जो विशेष तौर पर एक जाति ही नहीं समुदाय और देश को अपमानित कर रहा वो तो ब्राम्हणों को शिव की तरह जहर पीने की आदत तो सब कुछ सुनकर-सहकर भी नीलकंठ बने रहते और कुछ नहीं कहते है इसलिये ही शायद, ये लोग भूल जाते कि जब शिवजी का तीसरा नेत्र खुलता तो फिर बस, प्रलय ही आती है कुछ भी बाकी नहीं बचता अतः एक जाति को इतना भी न टारगेट किया जाये कि उसकी सहनशक्ति का बांध टूटकर जल प्रलय की स्थिति उत्पन्न कर दे अब तक तो अपने ही देश के लोग उंगलियां उठा रहे थे अब दूसरे देशों से भाड़े के टट्टू भी आने लगे ऐसे में चुप रहना गुनाह है ।

‘जैक डॉर्सी’ के जन्म स्थान अमेरिका के बारे में जानकर तो यही महसूस होता कि ऐसे माहौल में जन्मे बड़े होने के कारण उन्हें बड़ा आज़ाद, स्वछन्द, खुला परिवेश मिला होगा जहाँ औरतों को पूरी आजादी होगी और वहां तो शायद पितृसत्ता शब्द भी बोला व सुना भी नहीं जाता होगा और औरतों को सारे अधिकार प्राप्त होंगे तभी तो ये हमदर्द का टॉनिक भारत की महिलाओं का शुभचिंतक बन रहा बाहुबली बनकर उनको तारने आया क्योंकि, उनके उधर तो मातृसत्ता चलती है औरतें बिना शादी-ब्याह किसी के किसी के भी साथ रहती, सोती और जिसके चाहे उसके बच्चे पैदा करती, कोई रोक-टोक नहीं सिगरेट, शराब भी मर्दों की बराबरी से करती ऐसे में उनका दुख समझ मे आता कि जब वे यहां की स्त्रियों को एक ही पति के संग एक जीवन नहीं सात जन्मों तक बंधे और अपने परिवार के लिए अपना आप समर्पित करते देखता तो उसे आश्चर्य होता कि ये अब तक अपनी सभ्यता-संस्कृति को किस तरह बचाये इनका सब नष्ट कर दो, इनकी पहचान मिटा दो ताकि, ये भी हमारी तरह ही ऊपर से सभ्य और भीतर से असभ्य बन जाये मौज-मस्ती को ही जीवन का एकमात्र ध्येय समझे न कि अपने रिश्तों के लिए कुर्बान हो जाये कुछ पर तो इन असर हो गया पर केवल नाममात्र ऐसे में सबको प्रभावित करने का इन्हें यही तरीका समझ आया कि भारतीयों को नीचा दिखाओ, शर्मिंदगी का अहसास करवाओ, उनको पिछड़ा बताओ तब जाकर कहीं इनको फिर से गुलाम बनाया जा सकता है ।

हम सब यही समझते कि महाशक्ति माना जाने वाला अमेरिका बड़ा प्रोग्रेसिव एंड मॉडर्न है जबकि, हक़ीकत इसके उलट है वे तो अपनी गोरी चमड़ी के भ्रम से भी आज तक मुक्त नहीं हुये और जात-पात का भेदभाव तो वहां भी चलता है एक बार अमेरिकी राष्ट्रपति ‘बराक ओबामा’ ने अपने एक साक्षात्कार में इस बात को स्वीकार भी किया था कि “नस्लवाद अमेरिका के डीएनए में है, अमेरिका अपनी नस्लीय मानसिकता से अभी तक नहीं उबरा है और वहां इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं” ऐसे में वो किस मुंह से दूसरों पर ऊँगली उठाता है इसके अलावा वहां महिलाओं की स्थिति भी कोई बेहद मजबूत या बेहतर नहीं है उसे एक प्रोडक्ट ही समझा जाता है यदि आपको विश्वास नहीं होता तो इसके अनगिनत प्रमाण आपको यहाँ-वहाँ मिल जायेंगे जिससे आपके सामने महिला सशक्तिकरण की जो झूठी तस्वीर पेश की जाती उसका भेद खुल जायेगा फिर भी यदि सबूत ही चाहिये तो केवल दो बातों को ही यहाँ प्रस्तुत करना चाहूंगी पहली कि आज तक वहां कोई भी महिला राष्ट्राध्यक्ष नहीं बन सकी है और दूसरी घटना थोड़ी पुरानी हैं पर इतनी भी नहीं कि जेहन से उतर जाये जब अमेरिकी नौसेना की महिला कर्मचारियों की न्यूड तस्वीरों लीक की गयी और उस पर बड़े भद्दे व् अश्लील कमेंट्स भी किये गये जो स्वतः ही दर्शाता कि वहां महिलाओं को किस नजर से देखा जाता वो तो विमेन एम्पावरमेंट और फेमिनिज्म के चक्कर में इस देश की महिलाओं ने ऐसा भसड मचाया कि वो देश जो अपने यहाँ स्त्रियों को देवी और शक्ति का अवतार समझता था वो उसे देह समझने लगा चाहे तो आप खुद पूरी दुनिया के चक्कर लगा ले या सभी धर्मों का अध्ययन कर ले मगर, आप पायेंगे कि एकमात्र हिन्दू धर्म ही है जहाँ पर कि देवी की अवधारणा मौजूद है और स्त्री को पूजा जाता है पर, कुछ फेक फेमिनाओं के द्वारा इतना जहर व गलत प्रचार-प्रसार किया जा रहा कि मानो यहाँ औरतों को बंधुआ मजदूर बनाकर रखा जाता हो जबकि, जिस तरह यहाँ औरतें अपने घर की मालकिन बनकर रहती वैसा अन्यत्र दुर्लभ है

हाँ तो असल मुद्दा यह है कि पिछले दिनों यही महानुभव माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर के सीईओ ‘जैक पैट्रिक डॉर्सी’ भारत भ्रमण पर आये जिसका उद्देश्य कांग्रेस अध्यक्ष माननीय राहुल गांधी जी और कुछ वामपंथी पत्रकारों व कायकर्ताओं से मुलाकात थी । इस मुलाकात में क्या खिचड़ी पकी ये तो नहीं पता चला पर इस खिचड़ी का जो दाना बाहर आया जिससे इसके पकने का अंदाजा हुआ वो अपने आप में काफी कुछ कहता है । इस फोटो के सामने आने पर कम्पनी के द्वारा जो सफाई पेश की गयी वो भी बड़ी हास्यास्पद है जिसके अनुसार हाल ही में कंपनी ने महिला पत्रकारों के साथ एक इवेंट में हिस्सा लिया था ताकि लोगों को करीब से समझा जा सके। महिलाओं के इस समूह में से ही किसी दलित महिला ने जैक के हाथ में यह पोस्टर थमा दिया है इसका मतलब यह है कि कंपनी सभी लोगों की बातें सुनती है और वह अपने सभी यूजर्स का ख्याल रखती है । उनके इस स्टेटमेंट से तो यही प्रतीत हो रहा कि वो बस, अपने किसी ख़ास यूजर की ही सुनती है और किसी एजेंडे के तहत काम करती अन्यथा इतनी बड़ी कम्पनी का सीईओ इतना मासूम या भोला-भाला नहीं हो सकता जो उसकी ही भाषा में लिखे वाक्यांश की गंभीरता न समझता हो वो भी तब जबकि, वो एक सोशल साईट का सर्वोच्च अधिकारी हो ऐसे में यही लगता कि साजिशों के तार बहुत दूर तक फैले है

ऐसे में हम सबको अत्यंत सतर्क व सावधान रहने की जरूरत है अन्यथा किसी दिन ये देश अपनी सभ्यता-संस्कृति जो इसकी अपनी पहचान उसे खोकर कहीं का भी नहीं रहेगा तब तक बहुत देर हो जायेगी अतः हम जब जहाँ ऐसी कोई घटना देखें अपनी आवाज़ बुलंद करें सहनशीलता का ये मतलब कतई नहीं कि कोई हमें रौंद ही दे, उखाड़ फेंके या हमारे वजूद को समाप्त करने का खुलेआम ऐलान करें और हम उसे यूँ ही लेकर उसकी साईट का इस्तेमाल करते रहे उसकी जेबें भरते रहे ताकि, एक दिन वो उसी पैसे से हमें ही बर्बाद कर दे जागो हिन्दुओं जागो... पानी सर के उपर से चला जा रहा लोग अब तो घर में घुसकर ही चेतवानी दे रहे देश के लोगों ये चुप रहने का समय नहीं है... क्रांति की चिंगारी सुलग चुकी है उसे शोला बनाने की जरूरत है   

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२२ नवंबर २०१८

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