शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३०० : #तुम_मुझे_भूल_भी_जाओ_तो_ये_हक़_है_तुमको #मेरी_बात_और_मैंने_तो_मुहब्बत_की_है




ये प्यार था या कुछ और था
न तुझे पता, न तुझे पता
ये निगाहों का ही तो कुसूर था
न तेरी ख़ता, न मेरी ख़ता...

टी.वी. चैनल पर पुरानी ‘प्रेम रोग’ फिल्म देखते हुये जैसे ही स्क्रीन पर इस गीत के स्वर गूंजे ‘रश्मि’ तुरंत अपनी मम्मी से पूछने लगी माँ ये किसकी आवाज़ है बड़ी ही प्यारी और अलहदा है पहले कभी सुनी भी नहीं आपको तो संगीत का बड़ा शौक और पुराने गीतों में भरपूर दिलचस्पी भी है तो जरा इसके बारे में भी कुछ बताइये न प्लीज़...

टी.वी. स्क्रीन से नजर हटाकर उसी माँ ने उसे देखते हुये कहा, आज के लोग तो अपने दौर के गीत-संगीत और फनकारों से वाकिफ़ नहीं फिर पुराने लोगों को कैसे जानेंगे उन्हें तो बस, रिमिक्स के नाम पर बस, पुराने गीतों को बिगाड़ना आता है ये तो वो लोग जिन्होंने हिन्दी सिने जगत के शैशव काल में अपनी साधना व तपस्या से उसकी मजबूत आधारशिला रखी जिससे कि आगे तक ये परम्परा बढ़े तो सभी ने अपनी तरह से प्रयास कर मधुर से मधुर गीत-संगीत की रचना की जो आज के शोर भरे माहौल में भी खुद को कायम रखे हुये है

इस गीत को गाने वाली भी ऐसी ही एक अनोखी गायिका थी जिसका नाम ‘सुधा मल्होत्रा’ था और तुम्हें जानकर आश्चर्य होगा कि ये उनका गाया अंतिम पार्श्व गीत था यूँ तो उन्होंने कम ही गीत गाये पर जो भी गाये सभी ने सुनने वालों के दिलों में अपनी पुख्ता जगह बनाई है उनका गाया एक गीत तो मानो उनकी पहचान ही बन गया रुको मैं तुम्हें अपने मोबाइल पर वो गीत सुनाती हूँ...
तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है...

ये गाना उन्होंने १९५९ में बनी ‘दीदी’ फिल्म के लिये गाया जिसने सुनने वालों को मानो मंत्रमुग्ध कर दिया और प्रेमियों को ये अपने दिल की आवाज़ लगी जिसकी ख़ास बात ये थी कि इसका संगीत उन्होंने स्वयं तैयर किया था आज भी यदि कहीं ये गीत बजे तो कदम रुके बिना नहीं रहते और कान उस सुधा रस को अनवरत पीना चाहते है जिससे मन के भीतर भी कहीं कोई सोया हुआ प्यार जाग उठता है यही नहीं कव्वालियों में भी उनका जवाब नहीं इसलिये उन्होंने सिर्फ गाने ही नहीं गाये कव्वालियों में अपने आपको आज़माया और ऐसी तान छेड़ी कि आज भी उसका कोई सानी नहीं बोले तो मील का पत्थर समझा जाता उसे तो लो तुम भी उसका आनंद उठाओ ये कहकर उन्होंने वो कव्वाली बजा दी...

ना तो कारवाँ की तलाश है, ना तो हमसफ़र की तलाश है
मेरे शौक़-ए-खाना खराब को, तेरी रहगुज़र की तलाश है
मेरे नामुराद जुनून का है इलाज कोई तो मौत है
जो दवा के नाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है
तेरा इश्क़ है मेरी आरज़ू, तेरा इश्क़ है मेरी आबरू
दिल इश्क़ जिस्म इश्क़ है और जान इश्क़ है
ईमान की जो पूछो तो ईमान इश्क़ है
तेरा इश्क़ है मेरी आरज़ू, तेरा इश्क़ है मेरी आबरू,
तेरा इश्क़ मैं कैसे छोड़ दूँ, मेरी उम्र भर की तलाश है
इश्क़ इश्क़ तेरा इश्क़ इश्क़ ...  

‘रश्मि’ कव्वाली पूरी होने के बाद भी आँखें बंद किये पड़ी रही तो उसकी माँ बोली, उस समय हर एक गीत-कव्वाली, गजल-भजन सब पर बड़ी मेहनत की जाती थी और लिखने वाले भी अपनी तरफ से कोई कसर न छोड़ते थे तो फिर गाने वाले किस तरह से कम रहते सब मिलकर अपने सृजन को उच्च आयाम तक पहुंचा देते थे यही वजह कि उन्होंने अपनी आवाज़ को हर विधा के अनुसार न केवल परिवर्तित किया बल्कि, उसे उस स्तर तक भी पहुँचाया जिसकी उसे आवश्यकता थी और इस कव्वाली में स्वर मलिका आशा भोंसले के होते हुये भी उन्होंने अपने आपको पीछे न रहने दिया

अब मैं तुम्हें उनका ही गाया एक भजन सुनाती हूँ तब तुम मेरी बात को सही तरीके से समझोगी इतना कहते ही उन्होंने उसे प्ले कर दिया...

न मैं धन चाहूँ, न रतन चाहूँ
तेरे चरणों की धूल मिल जाये
तो मैं तर जाऊँ, हाँ मैं तर जाऊँ
हे राम तर जाऊँ...

सच, माँ ये तो बहुत ही प्यारा भजन है और दोनों आवाजों का तालमेल कितना सदा हुआ है न... हां रश्मि, यही तो एक सच्चे फनकार की विशेषता कि वो पानी की तरह सबके संग मिल जाता पर, अपने आपको मिटने भी नहीं देता कि उसकी अपनी मौलिकता नजर ही न आये तो जब भी उन्होंने किसी दूसरी गायिका के साथ गीत गाये या उनका साथ दिया अपनी आवाज़ को उनकी आवाज़ के नीचे दबने नहीं दिया तो उनके नाम से ही उनको जाना गया । यही नहीं ‘नरसी मेहता’ फिल्म में उनका गाया ‘दर्शन दो घनश्याम मेरी अंखिया प्यासी रे...” भी इस स्तर का एक भजन है जिसमें उन्होंने हेमंत कुमार जी के साथ सुर से सुर मिलाकर वो जादू जगाया कि आज भी उसका असर कम नहीं है । यू-ट्यूब पर तो सब उपलब्ध सुनो और जानो अपने अतीत के कलाकारों को जो न होते तो आज संगीत इस मकाम पर नहीं होता और अभी मैंने गूगल पर देखा कि आज तो पद्मश्री ‘सुधा मल्होत्रा जी’ का जन्म दिन भी है ।   


तो इस अद्भुत-अलबेली गायिका ‘सुधा मल्होत्रा’ जन्मदिवस बहुत-बहुत मुबारक... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० नवंबर २०१८

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