भारत देश में
जात-पात छुआछूत के बारे में ऐसे लिखा जाता जैसे सिवाय यहां कहीं दूसरी जगह ऐसा कोई
भेदभाव नहीं हमीं लोग पिछड़े जबकि, लगातार सुधारों,
आंदोलनों व शिक्षा के बाद यहाँ पर लोगों की मानसिकता
में काफी परिवर्तन आ चुका है । जिसकी वजह से अब वो माहौल नहीं दिखता जिसके बारे
में हमने केवल पढा या सुना देखा नहीं फिर भी जब ऐसा कुछ सुनने या लिखने में आता तो
उसके खिलाफ़ आवाज़ उठाई जाती जिसका विरोध कोई भी नहीं करता न ही हमारा संविधान ऐसी
इजाजत देता कि हम जाति या समुदाय के आधार पर कोई भेद करें पर, इसी देश के दूसरे हिस्से में न केवल ऐसा किया
जाता बल्कि, वो कानूनन
अपराध भी समझा जाता है ।
यही नहीं इस
देश में तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ऐसा ब्रम्हास्त्र जिसके आगे किसी की न चलती
फिर चाहे इसकी आड़ लेकर ईश्वर पर निशाना लगा दो उनके बारे में उलूल-जुलूल जो भी
चाहे लिख दो, पेंटिंग या
कार्टून बना दो यहां तक कि अपने देश के प्रधानमंत्री को गालियां दे दो और कुछ नहीं
तो किसी की धार्मिक परम्पराओं, रीति-रिवाजों
का ही मखौल उड़ा दो सजा तो छोड़ो कोई शिकायत तक न हो सकती आखिर, हमारा संविधान बनाया ही ऐसा गया है । जिसमें अल्पसंख्यकों के अधिकार, सुरक्षा व निजता का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है केवल, बहुसंख्यकों को मंदिर के घन्टे की तरह बाहर लटका
दिया गया जहां जो चाहे वो बजाकर चला जाये पर, दूसरे मजहब का नाम भी ले लो तो कत्ले-आम हो जाये इसीलिए उन्हें अपना
पर्सनल लॉ रखने तक की विशेष सुविधा दी गयी है ।
हिन्दू तो
बहुसंख्यक थोड़े बहुत कम भी हो जाये तो क्या फर्क पड़ता सरंक्षण तो हमेशा
विलुप्तप्राय या अल्पसंख्यक का ही किया जाता तो बिल्कुल नियमानुसार वही किया जा
रहा है उस पर ईशनिंदा जैसा कोई कानून नहीं तो बिंदास हिंदुओं की आस्था के केंद्र
उनकी श्रद्धा के पात्र का जितना चाहे उतना मजाक उड़ाये कोई दिक्कत नहीं न ही ये
असंवैधानिक है । जात-पात का भेदभाव खत्म करने भी कानून बनाये गये है जिसमें इतनी
सख्ती कि बिना सुनवाई गिरफ्तारी का प्रावधान इसके बावजूद भी सब अपने ही देश में
मीन-मेख निकलते रहते जो कि दिनों-दिन प्रोग्रेसिव होता जा रहा अपनी उन सब
कुरीतियों को पीछे छोडकर आगे निकल रहा जो उसे विकाशसील देशों के समकक्ष कमतर समझते
है ।
इसके बाद भी
आको शक है या विश्वास नहीं हो रहा तो तो खुद पढ़ लीजिये कि इसी मुल्क से टूटकर बने
दूसरे हिस्से में किस तरह हद दर्जे तक अपने मज़हब को सर्वश्रेष्ठ समझा जाता जिसके
लिये दूसरे प्रभु पुत्र को भी बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता जिसने कहा कि ‘सबका
मालिक एक’ उसे भी वे कुछ नहीं समझते जबकि, यहाँ सभी धर्मों, सभी समुदायों और सभी
जातियों का मान-सम्मान किया जाता फिर भी अधिकांश लोगों को इसमें ही कमी नजर आती
ऐसे में शुक्र मनाना तो बनता कि यहाँ ईशनिंदा कानून नहीं अन्यथा ऐसे नजारे यहाँ भी
आम होते...
14 जून,
2009
पाकिस्तान में
रहने वाली अल्पसंख्यक ‘आसिया बीबी’ का जब वह लाहौर के शेखपुरा स्थित अपने खेतों
में काम कर रही थी तब तीन बहुसंख्यक मुस्लिम महिलाओं से विवाद हो गया था। वजह इतनी
साधारण जिसे पढ़कर लगेगा कि ये न जाने किस जमाने में जी रहे अब तक क्योंकि, तेज घूप
में काम करने के कारण ‘आसिया’ को प्यास लगी और उसने कुंए के पास मुस्लिम महिलाओं
के लिए रखे पानी के गिलास से पानी पी लिया फिर क्या था मानो कहर टूट पड़ा । जैसे ही मुस्लिम महिलाओं ने ये देखा उन्होंने उसी वक़्त इस बात का तीव्र
विरोध किया और तब उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि ईसा मसीह इस काम को पैग़ंबर
मोहम्मद से अलग नज़र से देखेंगे” जिसे सुनकर वे महिलायें क्रोधित होकर बोली, “तुम्हारी
हिम्मत कैसे हुई, पैग़ंबर मोहम्मद
के बारे में कुछ बोलने की अगर तुम इस पाप से मुक्ति चाहती हो तो तुम्हें इस्लाम
स्वीकार करना होगा" तब आसिया ने जवाब दिया, ”मैं धर्म परिवर्तन नहीं करूंगी
क्योंकि मुझे ईसाई धर्म पर भरोसा है और ईसा मसीह ने मानवता के लिए सलीब पर अपनी
जान दी आपके पैग़ंबर मोहम्मद ने मानवता के लिए क्या किया है?" इसके बाद तो उनके बीच काफी लम्बा विवाद हो गया ।
जिसके
परिणामस्वरूप कुछ दिनों बाद उन मुस्लिम महिलाओं ने इस बात को तूल देते हुये विरोध
दर्ज कराया कि ‘आसिया’ ने ‘ईसा मसीह’ और ‘पैगंबर मोहम्मद’ की तुलना की है । जिसकी
वजह से उसी वक़्त ‘आसिया’ पर ‘ईश निंदा’ के तहत मामला दर्ज कर लिया जाता है और उसके
बाद पाकिस्तान पेनल कोर्ट की धारा 295-सी
के तहत ‘आसिया’ को गिरफ्तार कर मौत की सजा सुनाई जाती है ।
बात यही नहीं
खत्म होती ‘आसिया बीबी’ को सजा दिए जाने के बाद उनसे मिलने पंजाब के तत्कालीन
राज्यपाल सलमान तासीर गए और उन्होंने पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून की निंदा की जिसके
बाद उनके अंगरक्षक मुमताज़ क़ादरी ने ही उनकी हत्या कर दी हालांकि उसे बाद में
फांसी हुई लेकिन, तब तक मजहबी उसे 'हीरो' बना चुके थे । यही नहीं, दो महीने बाद जब अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री
शाहबाज़ भट्टी ने ईशनिंदा कानून की निंदा की तो उन पर भी जानलेवा हमला किया गया,
जिसमें उनकी जान चली गई ।
‘आसिया बीबी’
ने इस फैसले के खिलाफ लाहौर हाई कोर्ट में अपील दायर की लेकिन, उन्हें हिरासत में
लेकर एकांत में डाल दिया गया आलम ये रहा कि हिरासत या सुनवाई के दौरान वकील भी
उनसे मुलाकात नहीं कर सकते थे । इसके बाद हाईकोर्ट ने भी इस मामले में आसिया की
सजा बरक़रार रखी तो वे इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची और अंततः ३१ अक्टूबर
२०१८ को फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस मियां साक़िब निसार ने
कहा कि, “वो हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फ़ैसलों को रद्द करते हैं उनकी सज़ा
वाले फ़ैसले को नामंजूर किया जाता है अगर, अन्य किसी मामले में उनपर मुक़दमा नहीं
है तो उन्हें तुरंत रिहा किया जाये” । फैसला क्या
आया पाकिस्तान में तो हंगामा हो गया मस्जिदों से एलान किया जाने लगा कि सब एकजुट
होकर इसका विरोध करें और आसिया को मौत की सज़ा ही मिले यहाँ तक कि उनके वकील को भी
देश छोड़कर भागना पड़ा और उनके पति जहाँ-तहां मदद की गुहार करते फिर रहे है ।
यदि ये सब भारत
में होता तो बहुसंख्यकों को सज़ा मिलती और वकील को देश छोड़कर नहीं जाना पड़ता
क्योंकि, यहाँ तो आतंकवादियों के लिये तक रात को कोर्ट खुल जाती फिर ये तो बेहद
संवेदनशील मामला समझा जाता ऐसे में जिन्हें लगता कि सारी कमियां सिर्फ यहीं है या
अल्पसंख्यकों को यहाँ सताया जाता उन्हें समझना चाहिये कि इस देश की अनेकता में एकता,
धर्म निरपेक्षता विशेषता ही इसे सबसे अलग बनाती है... जय हिन्द... जय भारत...
वन्दे मातरम... ।
#अगले_जनम_मोहे_इंडियन_ही_कीजो
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
०४ नवंबर २०१८
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