मंगलवार, 6 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३०७ : #नरक_से_मुक्ति_का_पर्व #रूप_निखारने_का_सही_वक्त




नरकासुर ने कैद किया
सोलह हजार नारियों को बंदी बना
नाना कष्ट और त्रास दिया
श्रीकृष्ण ने दुष्ट असुर से युद्ध कर
नरक से दिलाई मुक्ति
अपना नाम और मान दिया
चतुर्दशी पर किया ये सत्कर्म महान
जीवन का वरदान दिया ।।

जब-जब भी ये पंच दिवसीय महापर्व आता तो प्रत्येक दिन से जुड़ी रवायतें और कथायें सुनकर अपने भारतीय व हिन्दू होने पर गर्व का खुबसूरत अहसास होता जहां ऐसे-ऐसे त्यौहार व उत्सव मनाये जाते जिसमें हर वर्ग-विशेष और रिश्तों को नहीं प्रकृति को भी शामिल कर अनायास ही सह-जीवन के साथ-साथ जीवन के गूढ़ रहस्यों को भी बड़ी सहजता-सरलता से अभिव्यक्त किया जाता है ।

जब भी किसी रीति-रिवाज़ या तीज-त्यौहार के मूल में जाकर उसके विषय में जानकारी प्राप्त करती तो उसे जानकर अपने पूर्वज व बुजुर्गों की तार्किक बुद्धि व वैज्ञानिक सोच पर मन आश्चर्य से भर उठता कि उन्होंने जीवन की प्रयोगशाला में रहकर कितने गहन शोध किये और फिर कितने अद्भुत निष्कर्ष निकाले जिन्हें अपनाकर यदि हम सब अपना जीवन व्यतीत करते तो आज आधुनिक समय की अधिकांश बीमारियों जैसे तनाव, अवसाद, कैंसर, कब्ज, ब्लड प्रेशर, थायरॉइड, डायबिटीज से न केवल दूर रहते बल्कि, स्वस्थ-निरोगी रहकर दीर्घायु व यशस्वी बनते उन आशीषों को फलीभूत करते जो आज न तो सुनाई देते न ही कोई पाने की आकांक्षा रखता क्योंकि, अपने बड़ों का आदर करना, उनके चरण स्पर्श करना और हाथ जोड़कर नमस्ते करना जैसे छोटे-छोटे मैनर्स न हम केवल भूल गये बल्कि, पश्चिम सभ्यता व कान्वेंट स्कूलों में पढ़कर इन्हें तुच्छ और अनावश्यक समझने लगे जो कभी हमारी सभ्यता/संस्कृति आधार थी ।

नरक चतुर्दशी या रूप चौदस का आध्यात्मिक या धार्मिक पक्ष ये है कि इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने सोलह हजार स्त्रियों जिन्हें कि नरकासुर नाम के राक्षस ने अपनी कैद में रखा था उन्हें उसके अत्याचार से मुक्त कर उन्हें अपना नाम दिया जिससे कि समाज से बहिष्कृत होने के भय से भी मुक्त वे सम्मानपूर्वक अपना शेष जीवन व्यतीत कर सके जिसकी वजह से अक्सर लोग भगवान श्रीकृष्ण पर सोलह हजार रानियां रखने का आरोप मढ़कर उनके चरित्र पर उंगली उठाते जबकि, उन्होंने तो नारी जाति को गौरव दिलाने सदा सहायक का काम किया और हर दोष व लांछन अपने सर पर लिया जिसका प्रमाण ये कहानी भी है ।

इसका सामाजिक पक्ष ये है कि, वर्षा ऋतु के पश्चात घरों में कीड़े-मकोड़े व जाले बनने के साथ ही गंदगी का भी निवास हो जाता ऐसे में शरद ऋतु के आगमन पर दीपोत्सव का शुभारंभ करने से पूर्व उसकी तैयारी की शुरुआत घरों की वार्षिक साफ-सफाई से होती जिसके बाद खुद को सजाने-संवारने व रूप निखारने का काम इस दिन किया जाता जब घर के सभी सदस्य उबटन लगाकर तन की भी सफाई करते और शाम को पूजा-पाठ कर मन को भी पवित्र बनाते इस तरह इस महोत्सव में हर कलुष व अंधकार दीप की लौ में जलकर भस्म हो जाता और उस रोशनी में आत्मा का मोती जगमगा उठता उसी को जागृत करने तो ये सारा ताम-झाम है जाने कब किस घड़ी किसके अंतर की सुप्त वो शक्ति जाग जाये और विश्व का कल्याण करने की इच्छाशक्ति उत्पन्न हो जाये ऐसी ही मनोकामना के साथ सबको रूप चतुर्दशी की अनंत शुभकामनाएं... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०६ नवंबर २०१८

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