मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

सुर-२०१९-४१ : #हग_डे_बोले_तो_जादू_की_झप्पी #साथ_उसके_मनाये_माँ_नर्मदा_जयंती




उठो ‘रेवा’, सुबह हो गयी आज नर्मदा जयंती है जल्दी से नहाकर तैयार हो जाओ नर्मदा घाट चलकर पूजा जो करनी है

मम्मी, इतनी जल्दी सुबह हो गयी प्लीज़, थोड़ा और सोने दो न थोड़ी देर से चलेंगे तो नर्मदा मैया कोई नाराज तो न हो जायेंगी

‘रेवा’ कैसी बातें करती हो क्या यही संस्कार दिये है मैंने तुम्हे कि तुम भी दूसरों की तरह ऐसी बातें करो और अब कोई बहाना न सुनूंगी मैं नीचे जा रही तुम आधा घंटे में रेडी होकर आ जाओ

ओके, आ रही आप जाओ...

‘नंदिता’ ने नीचे आकर सब सामान पर एक नजर डाली फिर लिस्ट से उसका मिलान किया कि कुछ छूटा तो नहीं है तभी याद आया कि नर्सरी से लाये पौधे जिनका रोपण करना नर्मदा किनारे वो तो इनमें शामिल ही नहीं तो जल्दी से उन्हें भी लाकर सबके साथ रख दिया फिर जो नाश्ता बनाया था उसे पैक किया और ‘रेवा’ के लिये एक प्लेट में थोड़ा-सा अलग निकालकर टेबल पर रख दिया

उतने में उपर से ‘रेवा’ भी रेडी होकर आ गयी तो दोनों ने मिलकर नाश्ता किया और कार में नर्मदाष्टक सुनते हुए दोनों अपने गन्तव्य की तरफ लेकर निकल पड़ी

मम्मी, आपको अच्छे से पता कि मुझे ये सब नहीं पसंद फिर क्यों आप जबरदस्ती मुझसे ये सब करवाती हो मेरी सब सहेलियाँ हंसी उड़ाती कि आज के मॉडर्न ज़माने में भी तू इन सब ढकोसलों पर विश्वास करती है मेरा आज सहेलियों के साथ फिल्म जाने का प्रोग्राम था पर, अब आपके चक्कर में आज सारा दिन बोर होना पड़ेगा

मुझे कभी-कभी ये लगता कि तू मेरी बेटी नहीं क्योंकि, तेरे-मेरे ख्यालात मिलते ही नहीं वो तो मैंने तुझे जन्म दिया तो विश्वास कर लेती हूँ आज तुझे बताती हूँ कि मैं नर्मदा मैय्या को इतना क्यों मानती हूँ तुझे पता नहीं कि जब तेरे पापा की कार एक्सीडेंट में डेथ हुई तू मेरे पेट में थी तेरे जनम के बाद तुझे जोंडिस हुआ जो इतना बिगड़ा कि एक दिन तेरी धडकनें भी सुनाई देना बंद हो गयी तब डॉक्टर्स ने भी हाथ खड़े कर दिये उस दिन मैं सबसे निराश होकर इन्हीं नर्मदा माँ की किनारे तुझे लेकर आई और माँ से शिकायत करते हुये कि आपने मुझे अपना आशीर्वाद देकर छीन क्यों लिया ये कहकर तुझे नर्मदा जी में डाला ही था कि उनके आलिंगन के स्पर्श मात्र से तुझमें प्राणों का संचार हो गया मानो तू उनसे मिलना चाहती हो वो तो मुझे बाद में तेरे पिता की डायरी से पता चला कि उन्होंने ये मन्नत मांगी थी कि यदि हमें बेटी हुई तो सबसे पहले उसे लेकर माँ के दरबार में आएंगे और उसका नाम माँ नर्मदा के नाम पर ‘रेवा’ रखेंगे इस तरह तुझे उनके दर तक पहुंचाने कुदरत ने ये षड्यंत्र रचा ये मुझे बाद में समझ आया बहुत-से सवाल ऐसे होते जिनके जवाब कभी आगे तो कभी पीछे मिलते है तुझे ये सब पहले इसलिये नहीं बताया कि समय आने पर बतायेंगे तो आज अपने आप ये संयोग भी बन गया

तुम आजकल के इक्कीसवीं सदी के बच्चे हर बात को तर्कों की कसौटी पर कसते जबकि, धर्म व आस्था को इस चश्मे से देखा ही नहीं जा सकता हमारे बुजुर्ग बहुत समझदार और दूरदर्शी थे जिन्होंने कहने को तो विज्ञान नहीं पढ़ा पर प्रकृति की प्रयोगशाला में अनगिनत प्रयोग किये और अपनी अनुभवी सूक्ष्मदर्शी से भी ज्यादा तीव्र दृष्टि से जो प्रत्यक्ष देखा उसके आधार पर ऐसे नियम-कायदे बनाये कि हम प्रकृति से अधिक-से-अधिक जुडकर रहे ताकि स्वस्थ-निरोगी ही नहीं दीर्घायु भी बने जिसका प्रमाण ये सब दिन, पर्व, उत्सव, त्यौहार, तिथियाँ है जिन्हें धार्मिक आयोजनों से जोड़कर रुढियों में बदल दिया कि पीढ़ी दर पीढ़ी ये विरासत हस्तांतरित होती रहे यही वजह कि मैं जिद कर के तुझे इस तरह के क्रियाकलापों में शामिल करती हूँ

लो बातों-बातों में पता न चला कब हम नर्मदा घाट आ गये...

मम्मी, एक तो नींद पूरी नहीं हुई तो सर दर्द कर रहा उपर से कल एग्जाम का टाइम टेबल आया तो उसकी भी टेंशन है ऐसे में मन कैसे लगेगा और जो सब आपने बताया ये तो घर पर भी बता सकती थी

मेरे पास तेरी टेंशन खत्म करने का एक नेचुरल उपाय है सबसे पहले तो तू माँ नर्मदा का पूजन कर उससे ही तुझे काफी मन की शांति मिल जायेंगी उसके बाद वो उसकी ऊँगली पकड़कर उसे एक पेड़ के पास ले गयी

ओफ्फो मम्मी, कितनी बार ये पेड़ दिखाओगी और ये कहानी सुनाओगी कि तेरे पहले जन्मदिन पर लगाया था तेरा हमनाम, हमउम्र है

वो सब नहीं बोलूंगी, आज तो तुझे मानसिक थकान से मुक्त होने ऐसा मन्त्र दूंगी कि कभी मैं भी न रहूँ अगर तो तुझे मेरी कमी महसूस न हो

आप ये सब न कहा करो मुझे डर लगता है और ये कहकर वो माँ से लिपट गयी तो माँ बोली, “अब इसे कसकर हग कर ले फिर देखना कैसे एक मिनट में सारा तनाव छूमंतर हो जायेगा और जब भी कभी जीवन में मुश्किल हालात हो तो यही तरकीब अजमाना मैं भी करती हूँ बड़ा सुकून मिलता इसलिये तो हर साल यहाँ आकर कुछ पौधे लगा जाती जो कल पेड़ बनकर तेरी और तेरे बच्चों की भी यूँ ही हिफ़ाजत करेंगे”

‘रेवा’ ने पेड़ को आलिंगन में लिया और धीरे-धीरे सुकून की रेखायें उसके चेहरे पर फैलकर उसे अपनी आगोश में लेती गयी और उसे पता न चला कब उसके भीतर का सारा तनाव, सारी चिंतायें पेड़ की रगों में उतरकर उसकी थकानरहित मासूम मुस्कान में बदल गयी थी

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
फरवरी १२, २०१९

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