सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

सुर-२०१९-४७ : #भारतमाता_की_व्यथा #अपने_ही_करते_उससे_दगा




भारतमाता...
हाथों अपने लिये खड़ी
अपने ही बच्चों की मृत देह
आंसू सूख नहीं पाते
कि फिर कुछ और चले आते
देकर प्राणों का बलिदान
मन की मूक पीड़ा
हृदय की असहनीय वेदना
जुबान कह नहीं पाती
मुखर आँखें बहती ही जाती
सब अपनी-अपनी कहते
माँ का दर्द न मगर, जाने कोय 
उसके बेटे फर्ज निभाते
वतन बचाने जान गंवाते जाते
इस दुःख को वो सह भी ले
पर, अपने ही आंचल में छिपकर बैठे
गद्दारों को कैसे झेले
रोज कोई न कोई सामने आता
सीने पर चोट नई दे जाता  
देखकर दोगले व्यवहार
अपनी व्यथा किसे कहे ?
संतानें सब उसकी
एक उसके लिये जां लुटाता तो
दूजा उसका सौदा करता
मातृभूमि के टुकड़े-टुकड़े करने
खुलेआम नारे लगाता
कभी बन दुश्मन पत्थर बरसाता
कभी लेकर कोई मानवाधिकार की आड़
आतंकियों की जान बचाता
छेद करे उसमें जिस थाली में खाता
देख-देख कर अपनों का ये हाल
माँ का सर झुक जाता है    
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
फरवरी १८, २०१९

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