रविवार, 24 फ़रवरी 2019

सुर-२०१९-५५ : #आक्रोशित_जनता_मांगे_इंसाफ #मासूमों_की_हत्या_नहीं_होगी_माफ़




12 फरवरी 1019, दोपहर के करीब एक बजे ‘चित्रकूट’ के ‘सद्गुरु पब्लिक स्कूल’ की छुट्टी हुई और उल्लसित बच्चे हंसते-खिलखिलाते घर लौटकर मां से मिलने की खुशी और उसके हाथ का बना खाना खाने की जल्दबाजी में बस में सवार होकर लौट रहे थे । तभी स्कूल परिसर में ही बाइक से दो नकाबपोश युवक आये और पिस्तौल दिखाकर बस को न केवल जबरदस्ती रोका बल्कि, उसमें से स्थानीय तेल व्यवसायी ‘ब्रजेश रावत’ के यू.के.जी. में पढ़ने वाले पांच वर्षीय जुड़वां पुत्रों ‘श्रेयांश’ और ‘प्रियांश’ को अगवा कर लिया यह पूरी वारदात सीसीटीवी में कैद भी हुई और अगले दिन अखबारों के प्रथम पृष्ठ की सुर्खियां भी बनी इसके बाद भी पुलिस और प्रशासन किस तरह से इस मामले की जांच कर रहे थे ये किसी को नहीं पता अन्यथा ये दुर्घटना घटित नहीं होती ।

सूत्रों के हवाले से देखें तो पुलिस ने आरोपियों पर 50 हजार रुपये इनाम की घोषणा की थी और मध्यप्रदेश पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक संयुक्त तलाश अभियान भी चलाया गया था उसके बावजूद भी कोई इन अपराधियों तक नहीं पहुंच पाया जबकि, इस बीच उनके द्वारा फिरौती की रकम हेतु न केवल कॉल की गई बल्कि, उन्होंने पहली किश्त लगभग 20 लाख प्राप्त भी कर ली पर, उसके बावजूद भी उनका सुराग तक पुलिस पा नहीं सकी उक्त घटना के 12 दिन बाद कल देर रात उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले से यमुना नदी से दोनों भाइयों के जंजीर से बंधे शव प्राप्त होते है तब जाकर इस साजिश का खुलासा होता है कि अपहरणकर्ताओं ने अपनी पहचान ज़ाहिर न हो जाये इस भय से उन मासूमों को बड़ी बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया ।

हालांकि, सच्चाई सामने आने पर इसका राजनीतिकरण आरम्भ हो गया जिसके परिणामस्वरूप पक्ष-विपक्ष ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू कर दिया जबकि, यही सक्रियता इन्होंने घटना के तुरंत बाद दिखाई होती तो निश्चित ही वो दोनों बालक आज अपनी माता की गोद में खेल रहे होते अपने पिता के सीने से लग सो रहे होते अफ़सोस कि इन 12 दिनों तक कोई इन अपहरणकर्ताओं तक न तो पहुंच पाया और न ही उन बच्चों को ही जीवित वापस ला पाया आज मृत बच्चे ही नहीं अपराधी भी मिल गये मगर, जो चले गये वो अपने पीछे कई सवाल छोड़ गये जिनका समाधान कर ले तो फिर कभी-भी इस घटना की पुनरावरूति न हो न किसी माता-पिता को ये दुःख सहन करना पड़े ।

सवाल - १ : स्कूल क्या सिर्फ मोटी फीस लेने के लिये है उनकी अपने छात्रों की सुरक्षा को लेकर कोई जिम्मेदारी नहीं होती?

सवाल - २ : बस जो किसी परिवार के अनमोल रत्नों को लाती, ले जाती उसे भी बच्चों की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं करना चाहिए क्या ?

सवाल - ३ : किसी घटना की सूचना व सुबूत मिलने के बाद भी पुलिस-प्रशासन को क्या तुरंत सक्रिय नहीं होना चाहिये कि अपराधी को पकड़ सके ?

सवाल - ४ : हम सबकी भी क्या ये जिम्मेदारी नहीं बनती कि अपने घर के लड़कों पर नजर रखे, जाने वो किससे मिलते-जुलते या किस संगठन में क्या काम कर रहे है ?

सवाल - ५ : भौतिक सुख-सुविधा और बेहतरीन जीवन जीने की लालसा के लिये किसी की जान लेना या कोई-भी गैर-कानूनी काम करना क्या जरूरी है?

इन सवालों को उसी क्रम से लिखा जिस क्रम से यदि कार्यवाही होती होती तो आज वो दर्दनाक हादसा नहीं होता जो हो गया यहां स्कूल, पुलिस, प्रशासन, पालक, जनता सब जिम्मेदार है ऐसी हर घटना के लिए क्योंकि, सब अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह है ।

वैसे तो सर्वप्रथम जवाबदारी माता-पिता की होती जो यदि अपनी संतान को अच्छे संस्कार दे और उनकी ऐसी परवरिश करे कि वे किसी भी लालच में आकर किसी भी तरह का कोई अपराध करने का सोच भी न सके बल्कि, अपनी संगत से दूसरों को भी आदर्श जीवन बिताने की प्रेरणा दे चूंकि आजकल माहौल ऐसा कि बच्चे अपनी पेरेंट्स की सुनते नहीं ये अमूमन सभी यही कहते दिखते तो ऐसे में कम से कम उनकी गतिविधियों पर नजर तो रखी ही जा सकती है वो किधर जाते, किससे मिलते, किस राजनैतिक दल में जाते या कैसी लाइफ जीते कहीं अपनी हैसियत से बढ़कर जीने की ख्वाहिश तो नहीं रखते जैसा कि आजकल कॉमन जो अच्छी बात है पर, ये गलत तब हो जाता जब इसे हासिल करने आपका नौनिहाल कोई भी कदम उठाने तैयार हो जाता है जैसा कि इस घटना का एक छिपा पहलू भी ज़ाहिर करता कि पैसों के लालच व अपनी दमित इच्छाओं की पूर्ति हेतु अपराधियों ने इतना घृणित कृत्य किया यदि ऐसा किया गया होता तो निसंदेह आज बच्चे जीवित होते ।

इसके बाद नम्बर आता शैक्षणिक संस्थानों का जो साल-दर-साल अपने शुल्क में तो बढ़ोतरी करते पर, जिनकी वजह से उनका स्कूल चलता उनकी सुरक्षा पर ही कम ध्यान नहीं देती तभी तो आजकल इन पवित्र स्थलों पर भी अनेक दुष्कर्म किये जाने लगे है ऐसे में अब जरूरत है कि इन पर भी शिकंजा कसा जाये और फिर भी स्कूल परिसर में कोई घटना हो तो इन्हें भी कटघरे में खड़ा किया या उन पर बैन लगाया जाये जाये क्योंकि, यदि ऐसा होता तो आज ये बच्चे जीवित होते । पुलिस, प्रशासन और सरकार तो हमेशा ही हर एक अच्छी-बुरी घटना के प्रति जवाबदेह होते ही है पर, इनका स्थान बाद में आता यदि ऊपरी स्तर पर हम सब सतर्क-सजग रहे तो बहुत-सी वारदातों को प्राथमिक स्तर पर ही रोक सकते है ।

हम उन माता-पिता के दुख की इस घड़ी में उनके साथ खड़े लेकिन, यदि इसके पूर्व ही कानून पर दबाब बना लिया होता तो शायद, आज उन नन्हे-मुन्ने बालकों को श्रद्धांजलि नहीं दे रहे होते… !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
फरवरी २४, २०१९

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