रविवार, 17 फ़रवरी 2019

सुर-२०१९-४६ : #कश्मीर_से_कन्याकुमारी_तक_भारत_एक_है #जो_कहे_इसके_विपरीत_वो_फेक_है




कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक हैबचपन से यही पढ़ते-सुनते आये और यही मानते भी है परन्तु, पुलवामा हमले के बाद सोशल मीडिया पर नित नया ज्ञान मिल रहा है कि हम सिर्फ कश्मीर को अपना मानते परन्तु, कश्मीरियों को नहीं जबकि, उसे भारत में अलग-थलग रखने की व्यवस्था या कानून किसने क्यों बनाया ये सबको पता जिस पर बहस करने की जरूरत नहीं है फिर भी ये एक सत्य कि धारा 370 एक ऐसी संवैधानिक अदृश्य दीवार जिसने उसे भारतवर्ष के बाकी हिस्सों से पृथक कर दिया उसके बावजूद भी ये सच कि किसी के मन में उनको लेकर ऐसा कोई विचार कभी नहीं आया मगर, अब कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी व वामपंथी इस तरह की गलत जानकारी फैलाकर माहौल में एक अलग ही तरह की कड़वाहट घोल रहे है  

वो जिन्हें कि शुरू से आम विचारधारा से हटकर ही अपना काम करने की आदत है शायद, तभी तो इन्हें वामी कहा जाता कि ये हमेशा धारा के विपरीत बहते यदि देश युद्ध की बात करेगा तो ये शांति-शांति चिल्लायेंगे और जब हम अमन-चैन से रहने की बात करेंगे तो ये जंग को वरीयता देंगे याने कि हर हाल में इनका काम देश की आबो-हवा को विपरीत दिशा में बहाना है इसलिये देश में जब भी, जो भी मुद्दे जिन्हें आम जनता तक अपनी बुद्धि के अनुसार समझ सकते ये उनमें भी अपना दिमाग लगाकर उसके फ्लेवर को नेगटिव टच देकर ऐसे प्रस्तुत करते कि सबके बीच ये अलग दिखाई देते और यही पुलवामा आतंकी अटैक में भी ये सब कर रहे है इसके बाद भी ख़ुशी की बात कि अब लोग इनकी इस कुत्सित मानसिकता को समझने लगे तो इनकी बातों में नहीं आते केवल उनकी जैसी सोच वाले ही उनकी हाँ में हाँ मिलाते है फिर भी मन में ये ख्याल आता कि क्या इनकी कोई विशेष ट्रेनिंग होती जहाँ इनको एक जैसा सोचना, लिखना और बोलना सिखाया जाता क्योंकि, मुद्दा कोई हो सब एक ही रंग में रंगे दिखाई देते, मसला चाहे जो हो भाव सबके एक ही होते है      

अभी देश अचानक हुये इस आक्रमण से सदमे में ही था कि इन्होने ये पूछना शुरू कर दिया कि देश के सबसे अमीर शख्स ने संवेदना जताई या नहीं या उस अभिनेता-अभिनेत्री की इस घटना पर कोई ट्वीट आई या नहीं और यहाँ तक कि किस मंत्री ने क्या कहा, क्या लिखा ये जानने में लग गये जैसे कि उनको यही करने यहाँ वेतन दिया जाता हो वैसे शक नहीं कि वो यहाँ जो भी लिखते उस पर उनको मेहनताना अवश्य मिलता होगा अन्यथा ये बिना पैसे के तो अपने शब्द जाया नहीं कर सकते ऐसे में उनकी पोस्ट्स को लाइक या उस पर कमेंट्स करने वालों को सजग-सतर्क हो जाना चाहिये कि वही जो उनकी रेटिंग और रेट बढ़ा देते जबकि, इनको इग्नोर मारना चाहिये यदि ये थोड़ा इंतजार करते तो पता चलता कि जिनके बारे में ये लिखने में अपना समय बर्बाद कर रहे थे वो लिखने की बजाय अपने कर्म से इनको जवाब देने की तैयारी में लगे थे क्योंकि, ये लिखने या जहर उगलने में जितने तेज जमीनी काम करने में उतने ही स्लो होते है

यही नहीं इस दुखद घटना पर जबकि, सारा देश शोकग्रस्त ये जाति-धर्म पर भी अपना मत रख रहे और पूछ रहे कि फलाना जाति के कितने तो फलाना मजहब के कितने और ऐसे समय में सुखद बयार की तरह एक खबर आकर कहीं फिजाओं में गुम हो गयी क्योंकि, सब वीर जवानों की शहादत से इतनी दुखी थे कि कुछ भी सुनने या जानने की सुध नहीं थी नहीं तो ये जानते कि जब लोग किसी की जात या धर्म से उसकी देशभक्ति या राष्ट्रीयता को आंक रहे थे तब १५ फरवरी को आई ये महत्वपूर्ण खबर मुख पृष्ठ तो छोड़ो अंतिम सफे पर भी जगह नहीं पा सकी केवल किसी सितारे की तरह टिमटिमाकर रह गयी कि तमिलनाडु के वेल्लोर जिले की रहने वाली ‘स्नेहा’ जो कि पेशे से वकील है देश की पहली ऐसी महिला बन गयी है जिसे सरकार ने आधिकारिक रूप से 'नो कास्ट, नो रिलिजन' सर्टिफिकेट दे दिया है यानी कि अब सरकारी दस्तावेज़ों में स्नेहा को जाति बताने या उसका प्रमाण पत्र लगाने की कोई ज़रूरत नहीं पड़ेगी ।

‘स्नेहा’ ने यूँ तो इस प्रमाण-पत्र को प्राप्त करने के लिए 2010 में अप्लाई किया था लेकिन, किन्ही कारणों से अधिकारी उनके आवेदन को टाल रहे थे पर, 2017 में उन्होंने अधिकारियों के सामने अपना पक्ष रखना शुरू किया और तिरुपत्तूर की सब-कलेक्टर ‘बी. प्रियंका पंकजम’ उनकी बात के मर्म को समझी और उन्होंने सबसे पहले इसे हरी झंडी दी जिसके बाद इसकी पुष्टि करने कि वे कब से इस तरह की सोच रखती है और अपनी बात पर कितनी अडिग है उनके स्कूल के सभी दस्तावेज़ खंगाले गए तो पाया गया कि किसी में भी उनके जाति-धर्म का उल्लेख नहीं था उसकी जगह केवल ‘भारतीय’ लिखा था क्योंकि, उनके माता-पिता हमेशा से किसी भी आवेदन पत्र में जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ते थे और उन्होंने अपनी तीनों बेटियों के नाम ‘स्नेहा’, ‘मुमताज’ व ‘जेनिफर’ रखे जो बताता कि उन्हें इसकी प्रेरणा अपने परिवार से ही मिली थी ।

5 फरवरी को तिरुपत्तूर जिले के तहसीलदार ‘टी.एस. सत्यमूर्ति’ ने स्नेहा को 'नो कास्ट, नो रिलिजन' सर्टिफिकेट सौंपा वे अपने इस कदम को एक सामाजिक बदलाव के तौर पर देखती हैं यहां तक कि वहां के अधिकारियों का भी कहना है कि उन्होंने इस तरह का सर्टिफिकेट पहली बार बनाया है । इस पर ‘स्नेहा’ ने कहा कि जो लोग जाति धर्म मानते हैं उन्हें जाति प्रमाण पत्र दे दिया जाता है तो मेरे जैसे लोग जो ये नहीं मानते उन्हें प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया जा सकता । ये साबित करता कि यदि हम सब खुद को दिल से केवल ‘भारतीय’ माने तो बहुत-सी समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जायेंगी और इस तरह की विषाक्त पोस्ट्स पर भी विराम लग जायेगा जो भेदभाव उत्पन्न करती है

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
फरवरी १७, २०१९

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