बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

सुर-२०१९-३७ : #खुदाई_खिदमतगार #खान_अब्दुल_गफ्फार_खान




भारत का मानचित्र कभी ऐसा न था जैसा उसे हम आज देखते है उसके इतने टुकड़े हो गये कि उसकी वो पहचान खो गयी फिर भी ये उसमें रहने वालों का जज्बा ही है कि वे उसे टूटने से बचाने की हर संभव कोशिश करते ताकि, उसके अस्तित्व को कायम रखा जा सके अन्यथा टूटते-टूटते तो फिर इन्सान हो या महा-मानव एक दिन समाप्त हो जाता है जिस तरह इतिहास में हम ऐसे अनगिनत नाम देखते जिन्होंने कभी अपनी जोरदार उपस्थिति से दर्ज की मगर, समय की शिला पर अब वे नाम इतने धुंधले हो गये कि लोग उनको भूलने लगे फिर भी कभी जब कैलंडर पर नजर पड़ती तो वो नाम उभर ही आते है

ऐसा उनके त्याग, समर्पण, देशभक्ति और उस निःस्वार्थ भाव से सेवा के कारण होता जिसके चलते उन्होंने इस देश के वजूद को उसकी सम्पूर्णता के साथ बचाने का पूर्ण प्रयास किया भले वे नाकामयाब हो गये मगर, उनकी कोशिशें ईमानदार थी इसलिये उनके नामो-निशान आज भी शेष है ऐसा ही एक नाम ‘खान अब्दुल गफ्फार खान’ जिसकी पैदाइश आज ६ फरवरी को अविभाजित हिंदुस्तान में हुई थी जिसने कभी सोचा न था कि कभी वो अपनी जन्मभूमि को किसी दूसरे मुल्क का हिस्सा पायेंगे जब आज़ादी की लड़ाई में शामिल हुये तब ये इल्म नहीं था कि जिसे बचाने के लिये लड़े उसे अंग्रेजों से तो बचा लिया पर, अपनों से ही बचा न सके और एक दिन विभाजन हो ही गया

जब ये विखंडन हुआ तो उन्होंने अपना विरोध भी ज़ाहिर किया जिसका कोई असर उस दौर के नेताओं पर हुआ तो नहीं मगर, स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान गांधीजी का साथ क्या मिला मानो उनकी फितरत ही बदल गयी और उनके पारसमणि स्पर्श से वे भी कंचन सम हो गये तो उनके आचरण को उन्होंने अपने भीतर इस तरह से उतार लिया कि उनकी छवि ही बन गये फिर इस संगत का ऐसा जादूई असर उनके जीवन में हुआ कि वे ‘सीमान्त गाँधी’ के नाम से पहचाने जाने लगे और अपनी अहिंसक प्रवृति व दूसरों के हितों की रक्षा के कारण उनका अधिकांश जीवन जेल में व्यतीत हुआ पर, अपना स्वभाव नहीं बदला

तन से भले वे पाकिस्तान चले गये पर, मन से सदैव भारत से ही जुड़े रहे और ‘भारत रत्न’ के हकदार बने आज उनकी जयंती पर उनको मन से नमन...
   
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
फरवरी ०६, २०१९

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