शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

सुर-२०१९-५४ : #सैनिक_की_नहीं_होती_कोई_जात #टुकड़े_टुकड़े_गैंग_मगर_करता_ऐसी_बात




“भारत में प्रश्रय पाने वाले अनेक धर्म हैं, अनेक जातियां हैं, किन्तु इनमें किसी की भी शिरा भारत के अतीत तक नहीं पहुंची है, इनमें से किसी में भी वह दम नहीं है कि भारत को एक राष्ट्र में जीवित रख सकें, इनमें से प्रत्येक भारत से विलीन हो जाय, तब भी भारत, भारत ही रहेगा किन्तु, यदि ‘हिंदुत्व’ विलीन हो गया तो शेष क्या रहेगा ? तब शायद, इतना याद रह जायेगा कि ‘भारत’ नामक कभी कोई भौगोलिक देश था”
--- श्रीमती एनी बेसेंट

विदेशी भूमि पर जन्म लेकर भारत में आकर थोड़ा समय व्यतीत करने पर एक विदेशी महिला को जो बात समझ आ गयी अफ़सोस, वो इसी पावन धरती पर पैदा होकर यहीं का खा-पीकर पलने बड़े होने वाले चंद गद्दारों को समझ नहीं आई इसलिये वे लगातार ऐसे प्रयास कर रहे जिससे देश की आत्मा ‘हिंदुत्व’ का खात्मा किया जा सके ताकि, वो इस पर कब्जा कर गर्व से कह सके कि कभी यहाँ कोई ‘भारत’ देश था वो देश जो अब तक अनेकों आततायियों, आक्रमणकारियों और विदेशियों के आने के बाद इसको बर्बाद करने के उनके तमाम प्रयासों के बाद भी केवल थोडा-ही क्षतिग्रस्त हुआ पर, समूल नष्ट करने का ख्वाब सदा ख्वाब ही रहा लेकिन, आज यहीं के चंद नेता, पत्रकार, सेक्युलर, वामपंथी और बुद्धिजीवी ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ और ‘संविधान’ के कुछ लूप होल्स का फायदा उठाकर इसको अपना बनाने का सपना पालकर बैठे दुश्मनों की जिस तरह से मदद कर रहे वो जरुर एक दिन इस कथन को सत्य साबित कर देगा क्योंकि, पूरा इतिहास उठाकर देख ले तो यही पता चलेगा कि कोई भी इस देश को इसलिये मिटा नहीं सका कि ‘हिंदुत्व’ की विचारधारा ने इसको एकसूत्र में बंधकर रखा था अब जबकि, वे समझ गये कि इसे लड़ाई, जंग, युद्ध या किसी भी तरह के हमले से समाप्त नहीं किया जा सकता तो इस भावना पर ही लगातार चोट कर रहे है इस उम्मीद पर कि कभी तो, आखिर कभी तो, वो आखिर प्रहार होगा जो इसे पूर्णतया खत्म कर देगा इसलिये हर दिन एक न एक शिगूफा छोड़ लोगों को आपस में लड़वा देते, विचारों में बाँट देते है अतः यूँ ही बांटते-बांटते मिटटी में मिला देने के इनके एजेंडे और षड्यंत्र को अब गहराई से समझने की जरूरत है

इसका ताजा प्रमाण है 21 फरवरी 2019 को हिन्दी पत्रिका कारवां में ‘एजाज अशरफ’ नाम के एक पत्रकार द्वारा लिखा गया एक आलेख 'पुलवामा हमले में मारे गये जवानों की जाति भी पूछो' शीर्षक से छापा गया जिसने सबसे पहले तो लिखने वाले की जाति पर ही सवालिया प्रश्न खड़ा कर दिया क्योंकि, ये लिखने वाला जिस समाज या मज़हब या जाति से आता उसके बारे में यदि कोई इतना ही कह दे कि आतंकवादी फलाना जाति या मजहब में ही पाये जाते तो पूरे देश के मानवाधिकारों को हृदयाघात हो जाता मानो उनके जिगर के टुकड़े को कुछ कह दिया गया हो पुत्र प्रेम में तो इतनी अंधी तो ‘गांधारी’ भी न थी जितने ये तथाकथित मानवतावादी होते जिनका मानवाधिकार या संवेदना का ज्वार केवल तभी उठता जब इनकी प्रिय जात को कुछ कहा जाता क्योंकि, वही तो जो इनके एकाउंट को कभी खाली नहीं होने देते तभी तो वे बड़े-बड़े धमाके कर के भी निश्चिंत रहते कि हमारे खरीदे हुये माई-बाप है न, हमको बचा लेंगे तो ये जब भी आतंकियों की जात पर बात आती बड़े प्यारे-प्यारे कुतर्क सामने रखते जिससे कि उनको बचाया जा सके बोले तो हत्या जैसे जघन्य काम करने वालों के सामने दूसरों के चोरी जैसे निम्न कर्मों को गिनाने लगते जबकि, ‘जावेद अख्तर साहब’ अपनी चर्चित ‘दीवार’ फ़िल्म में ‘शशि कपूर’ के माध्यम से के कहलवा गये कि “दूसरों के पाप गिनवाने से तुम्हारे अपने पाप कम नहीं हो जाते” पर, इनको तो यही फार्मूला पता है  

जैसे ही आप कहो कि आतंकवाद का मज़हब, मुल्क व जाति होती इनके सीने में दर्द शुरू हो जाता फिर तिलमिलाकर ये पूछने लगते कि, कौन सा ऐसा मज़हब जिसमें कोई आतंकी न हुआ हो जबकि, कटू सत्य यही कि केवल एक मज़हब को छोड़कर किसी में कोई ऐसा आतंकी नहीं हुआ जिसने वैश्विक स्तर पर अपने अमानवीय नृशंस कारनामों से वर्ल्ड की नाक में दम कर दिया हो यदि दूसरे धर्म में किसी ने हथियार उठाये या कोई ऐसी घटना को अंजाम भी दिया तो उसका मामला क्षेत्रीय या देशज होगा पर, ये एक मजहब तो पूरी दुनिया में अपने अनुयायी बनाने अपने आपको स्थापित करने तलवार की जोर पर काम करता है  अच्छे से देख लीजिये कि पूरी दुनिया में एक भी ऐसा धर्म नहीं जो इतनी बर्बरता के साथ पेश आता हो फिर भी आप न तो उसका नाम ले सकते और न ही उसके बारे में कुछ कह सकते है यहाँ तक कि पुलवामा हमले में 40 वीर जवान एक मुसलमान आतंकी के द्वारा निर्दयता के साथ मौत के घाट उतार दिए गये फिर भी वो आतंकी की नहीं वीर जवानों की जात पूछने को लेकर विष वमन कर रहा है ऐसे मे आप उससे पूछ लें या कह दे कि वो आतंकी शिया, सुन्नी, अहमदिया, पठान, सल्फमणि, शेख, काजी, मुहम्मदिया या असंख्य अन्य मुसलमानी जातियों में से कौनसी जाति का था तो तय है कि आपको मुस्लिम विरोधी कहकर आपका उपहास उड़ाया जायेगा, आपके इनबॉक्स में आकर आपको गरियाया जायेगा और ब्लॉक, अनफ्रेंड कर आपकी आवाज को दबाया जायेगा क्योंकि ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ भी केवल एकतरफा ही है ।

सिर्फ इतनी-सी कल्पना करें कि, कश्मीरी मुसलमान या मुस्लिम समाज के कुछ लोग देश के किसी हिस्से में फंस जाये और उन्हें तत्काल सैनिक सहायता की आवश्कयता हो तब उनसे ये कहते हुये अधिकारी क्षमा मांग ले कि सॉरी, हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते क्योंकि फिलहाल आपकी जात का कोई जवान हमारे पास नहीं है ?

महज़ इस कल्पना से ही जात-पात की इस भयावहता की पोल खुल जाएगी और ऐसा होता तो फिलहाल ऐसी स्थितियां भी उत्पन्न हुई थी तब CRPF ने इनकी ही नहीं पाक उच्चायोग की भी रक्षा की और कश्मीरी पत्थरबाज जो एक ही मजहब से ताल्लुक रखते उनकी सुरक्षा की भी व्यवस्था की थी ऐसे में सोचने वाली बात ये है कि ‘एजाज अशरफ’ के इस लेख को लिखने के पीछे मंशा क्या है जिसमें उसने एक-एक जवान की जाति, प्रतिशत का स्पष्ट उल्लेख करते हुये विस्तृत रिपोर्ट लिखी और सोचिये यदि जाति विशेष से जुड़े सुरक्षाकर्मी केवल अपनी ही जात वालों को सुरक्षा प्रदान करें तो दिक्कत किसे होगी?

देश कितने हिस्सों में बंटेगा कहना मुश्किल पर मंशा यही कि जो देश आज इस हमले के बाद सब जात-पात भूलकर एक साथ खड़ा वही इन बुद्धिजीवीयों, वामपंथियों, विपक्षियों और देशद्रोहियों को अखर रहा तो इस तरह की नीचता पर उतर आए ऐसे में हमें अब इन धूर्त लोगों को न केवल पहचानना होगा बल्कि समाज में इनको बेनकाब भी करना होगा अन्यथा ये इस देश के टुकड़े टुकड़े कर के रहेंगे जैसा कि ये अपने नारों से पूर्व में ज़ाहिर कर चुके है । CRPF को सामने आकर कहना पड़ रहा है कि, 'सीआरपीएफ में हमारी पहचान भारतीय के तौर पर है, जाति-धर्म हमारे लिए अस्तित्व नहीं रखते’ पुलवामा हमले में शहीद सभी जवान भारतीय है और फौज के अंदर सब बराबर हैं यहाँ तक कि देश के दुश्मनों से लड़ते वक्त उन्होंने तक कभी नहीं सोचा होगा कि वो किस जाति या धर्म के है और हंसते-हंसते हर सैनिक देश के लिए शहीद हो गया

इस तरह चेहरे से मुखौटा उतार देने पर भी इनको शर्म नहीं आती ये २७-२८ जुलाई २०१६ को छपी एक पुरानी खबर चेंपकर आपसे पूछेंगे कि जब सैनिक का कोई धर्म या मजहब नहीं होता तो तिरंगे से लिपटा एक सिपाही का शव जब उसके गांव पहुंचा तो कुछ लोगों ने यह कह कर दो गज जमीन देने से इनकार कर दिया कि वो नीची जाति का था यह शर्मसार कर देने वाला मामला यूपी के फिरोजाबाद जिले में सामने आया था । वाकई यदि ऐसा हुआ है तो बेहद शर्मनाक है और यही सब छोटी-छोटी खबरें होती जिनका फायदा शातिराना तरीके से टुकड़े-टुकड़े गैंग उठाता और पुलवामा हमले मेनन भी कुछ लोगों ने इस पुरानी घटना की लिंक लगाकर लोगों की भावनाओं से खेलना चाहा था चंद जागरूक लोगों ने उनके इस प्लान को कामयाब नहीं होने दिया अतः हम सबको भी ऐसे ही बेहद सतर्क-सावधान रहने की जरूरत ताकि, हम जातिगत भेदभाव न करें और न ही किसी को नीचा दिखाये अन्यथा अंजाम भुगतने तैयार रहें अब जरूरत है ऐसी मैगज़ीन, समाचार पत्र, चैनल्स, ऐसे सैकड़ों पत्रकार, प्रोफेसर, कलाकार, दुर्बुद्धिजीवी जो इस देश में रहकर पाकिस्तानी एजेंडे पर काम कर रहे देश मे अशांति फैलाने के लिये उनके खिलाफ सरकार FIR करे, उनको बैन करने की मांग उठाई जाये और अब समय आ गया कि जनता जागरूक होकर इनके राजनीतिक षड्यंत्रों को समझे व इनके षणयंत्र का पर्दाफाश कर इनको विफल करें ।

कोई सिख, कोई जाट-मराठा, कोई गोरखा, कोई मद्रासी
कोई किसी-भी जात से आता हो पर सनद रहे कि,
भारत पर मरने वाला हर वीर था भारत वासी...

बस, यही याद रखना है... जय हिन्द, जय भारत... वन्दे मातरम... 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳 !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
फरवरी २३, २०१९

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