रविवार, 3 फ़रवरी 2019

सुर-२०१९-३४ : #पुरुषों_की_हवस_का_परिणाम #औरत_ब्रेस्ट_आयरनिंग_की_शिकार



यूं तो दुनिया में 195 मुल्क है जिनमें अलग-अलग मजहब व लिंग के लोग एक साथ रहते और कुछ तो ऐसे भी जहां केवल एक विशेष धर्म के लोग रहते मगर, इतने बड़े जहान में एक भी ऐसा देश नहीं जहां सिर्फ औरतों को उनके नियम-कायदे से रहने दिया जाता हो सभी जगह कानून तो पुरुषों के ही चलते जिन्हें औरत को निभाना पड़ता जिसे हमारे यहाँ ‘पितृसत्ता’ कहा जाता बात यहां तक भी ठीक है लेकिन, ये क्या कि पुरुष की नीचता व कामुकता का वीभत्स परिणाम भी केवल स्त्री को ही भोगना पड़ता है ये सिर्फ अपने देश की बात नहीं हर जगह ही उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता भले ही वो अपने आपको कितना भी काबिल या स्वतंत्र अस्तित्व ही क्यों न साबित कर दे फिर भी आदमी द्वारा किये गये दुष्कर्म के मामले में प्रतिबंधों या प्रताड़नाओं का शिकार केवल उसे अकेले ही होना पड़ता है ।

इसका सबसे क्रूरतम उदाहरण है 'ब्रेस्ट आयरनिंग' जो कि एक ऐसा अमानवीय कृत्य या दर्दनाक तकनीक जिसमें अल्पवयस्क या कम उम्र की नाजुक कन्याओं के वक्षस्थल को किसी गर्म पत्थर या सरिया से दाग दिया जाता है ऐसा इसलिये किया जाता जिससे कि उसके उभारों का विकास न हो, उसकी छातियाँ सपाट दिखाई दे और वो लड़कों की तरह नजर आये ऐसी मान्यता है कि इस तरह उसे पुरुषों की गंदी नजरों व हवस से बचाया जा सकता है । ये जानकर तो और भी अधिक आश्चर्य होगा कि ये प्रथा इस देश की नहीं बल्कि, साउथ अफ्रीका, कैमरून, नाइजीरिया, चाड, बेनिन जैसे पिछड़े देशों के अलावा अब यूके में भी ऐसा किया जा रहा और लन्दन जैसे शहरों में ये नजर आ रहा है । यदि यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट के आंकड़ों पर जाये तो उसके मुताबिक, दुनियाभर में करीब 38 लाख ऐसी लड़कियां हैं, जो इस तरह की यातनाएं सह चुकी हैं । ये आंकड़े जितने दर्दनाक उतने ही शर्मनाक भी है कि एक वहशी की गलत हरकतों का परिणाम उसकी बजाय निर्दोष, मासूम कन्याओं को भुगतना पड़ता है ।

‘ब्रेस्ट आयरनिंग’ की शुरुआत ‘कैमरून’ में हुई जहाँ के पुरुषों की सोच भी कोई अलग नहीं वे भी दूसरों की तरह यही मानते कि जिन लड़कियों के ब्रेस्ट विकसित होने शुरू हो जाते हैं वो अब सेक्स के लिए तैयार हैं जिसे देखते हुये  लड़कियों की मां अपनी बच्चियों को रेप और कम उम्र में प्रेगनेंसी जैसी चीजों से बचाने के लिए पुरुषों पर बंदिश लगाने की जगह, अपनी मासूम बच्चियों पर ही लगाम कसना शुरू कर देती है इस तरह उन पर अत्याचार कर उन्हें ‘सेक्सुअली अनएट्रेक्टिव’ बनाने की कोशिश की जाती है ताकि, पुरुष उनकी तरफ आकर्षित ना हो सकें जबकि, ये सब आदमियों के साथ किया जाता तो अब तक स्थिति कब की बदल चुकी होती इसके पीछे उनका लचर तर्क यह कि ऐसा कर के वे अपनी बच्चियों की हिफाजत कर रही जो उनका फर्ज है और वे बस वही कर रही जिसके द्वारा उनको दुराचार से बचाया जा सकता हैं लेकिन, किसी के दिमाग में ये क्यों नहीं आता कि औरत की जगह घर के पुरुषों पर भी तो इस तरह की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है

ये सुनने और कल्पना करने में जितना भयावह लग रहा हकीकत में उससे भी अधिक तकलीफदायक है जिससे न केवल उसका शारीरिक-मानसिक विकास अवरोधित होता बल्कि, अनेक रोगों से ग्रसित होने का खतरा भी रहता क्योंकि, डॉक्टर्स का कहना है कि ऐसा करने से लड़कियों को कई तरह की गंभीर बीमारियां होने की सम्भावना रहती बावजूद इसके भी माता-पिता ऐसा करते ताकि, उसे रेप से बचा सके, किसी हैवान की दरिंदगी से बचा सके मतलब, कि किसी दूसरे को बदलने या सज़ा देने की जगह उसे पीड़ित किया जाता जिसका कोई गुनाह नहीं । असहनीय पीड़ा का यह जघन्य सिलसिला 10 साल की उम्र से शुरू होता जब लड़कियों की ब्रेस्ट को खुद उसकी माँ गर्म और भारी पत्थरों, हथौड़ों आदि से दिन में एक से 2 बार दागना शुरू करती तो कई महीनों तक यही चलता रहता जिससे कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं और जिसका नतीजा अविकसित ब्रेस्ट और सिस्ट, कैंसर, इन्फेक्शन आदि रूपों में सामने आता है ।

अभी कुछ दिनों पूर्व ही द गार्डियनअखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार लंदन, योर्कशायर, एसेक्स और पश्चिमी मिडलैंड के सामुदायिक कार्यकर्ताओं ने अखबार को ऐसे कई मामलों के बारे में बताया, जिनमें लड़कियों को छोटी उम्र में ही ब्रेस्ट आयरनिंग का सामना करना पड़ रहा है। इसमें एक इंटरव्यू का ज़िक्र किया गया है, जिसमें एक मां ने बताया जैसे ही मेरी बेटी को पीरियड्स शुरू हुए, मैंने उसकी ‘ब्रेस्ट आयरनिंग’ करनी शुरू कर दी मैंने एक पत्थर लिया, उसे गर्म किया, फिर उस पत्थर से अपनी बेटी के स्तनों को मसाज करना शुरू कर दिया । उफ़, ये कल्पना भी कितनी कष्टदायक है कि जहाँ हम जरा-सी ऊँगली जल जाने या अचानक किसी गर्म वस्तु से छू जाने मात्र से भीतर तक दहल जाते है तो वहां जब इन किशोर कन्याओं पर ये अत्याचार किया जाता होगा तो वे किस तरह दर्द से तड़फती होगी ये सोचने में भी तकलीफ हो रही है  

हालांकि, इस पर कुप्रथा पर नियन्त्रण करने ‘संयुक्त राष्ट्र’ ने इसे ‘अंडर रेटिड क्राइम’ अर्थात ऐसा अपराध माना है जिनकी पुलिस को सूचना नहीं दी जाती और इसे दुनिया के उन पांच बड़े अपराधों में भी शामिल किया जो लिंग आधारित हिंसा पर आधारित होते हैं। साथ ही इस अमानवीय परम्परा के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए भी तमाम संगठनों के माध्यम से कोशिशें की जा रही हैं ‘जेक बेरी’ ने ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में अपने भाषण के दौरान 'ब्रेस्ट आयरनिंग' प्रथा को कानूनी अपराध घोषित करने की मांग की है फिर भी विकसित देशों में ऐसा सुनाई देना ये दर्शाता कि औरतें हर जगह शरीर ही समझी जाती उन्हें देह के परे देखने के लिये अब विश्वस्तर पर एक बड़ी मुहीम चलाने की जरूरत है #MeToo जैसे अभियान भी उतने कारगर साबित नहीं हो रहे क्योंकि, महिलायें अब भी कहीं भी सुरक्षित नहीं और कोई भी ऐसा मुल्क नहीं जो दोषियों को प्रताड़ित करें सभी को नारियां ही आसान शिकार नजर आती है क्यों ???

सवाल तो कई जेहन में उठते पर, सबसे अहम यही कि, रेप, छेड़खानी, ब्लैकमेलिंग, यौन हिंसा जैसे अपराध जो तथाकथित मर्दों के द्वारा किये जाते उनके लिये कब तक औरतों को ही दोषी ठहराया जायेगा ? कब तक लडकियों की परवरिश पर ही पूरा फोकस किया जायेगा और उन्हें लडकों के किये का भुगतमान भरना पड़ेगा ?? कब तक सारे नियम-कायदे, मर्यादा पालन केवल, औरतों के हिस्से में ही लिखा जायेगा वो भी पुरुषों के द्वारा ???  

‘पितृसत्ता’ की मानसिकता को खत्म करने माताओं को ही कदम उठाना होगा उनकी साहसिक पहल ही उनकी बेटियों को बचा सकती है न कि, इस तरह की परम्पराओं से उन दुराचारियों का दमन किया जा सकता है । ये गर्म पत्थर औरत नहीं उन कुत्सित पुरुषों के सीने पर रखा जाये तो कुछ बदलाव हो सकता है अन्यथा विश्व के हर देश से ऐसी ही खबरें व तस्वीरें देखने को मिलती रहेगी केवल, ‘पितृसत्ता’ का खात्मा ही एकमात्र उपाय है ।

#Smash_Patriorchy

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
फरवरी ०३, २०१९

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