बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

सुर-२०१९-५८ : #जो_मौत_को_खुद_चुनता #वो_चंद्रशेखर_आज़ाद_बनता




इस देश की त्रासदी कहे या दुर्भाग्य कि यहाँ यदि शूरवीर ‘पृथ्वीराज चौहान’ हुए तो उसके साथ विश्वासघाती ‘जयचंद’ भी पैदा हुये जिसकी वजह से देश को एक साथ दोनों मोर्चे पर लड़ाई लड़नी पड़ी और जैसा कि होता आया है हम घर के बाहर के दुश्मनों से तो दो-दो हाथ कर भी ले लेकिन, जो ये हमारी आस्तीनों में पलते सांप है उनको किस तरह से मारे कि ये हमें ही डसने को हमेशा तैयार रहते है आज भी ऐसा ही माहौल नजर आ रहा जहाँ भारत अपने स्थायी शत्रु पाकिस्तान से अपने वीर जवानों की असमय हुई जघन्य मौत का बदला लेने की तैयारी में जुटा वहीं दूसरी तरफ कुछ बुद्धिजीवी होने का चोला पहने तथाकथित मानवतावादी लगातार उस पर अपने शब्द बाणों से हमला कर न केवल सैनिकों का मनोबल तोड़ रहे बल्कि, देश का अपमान भी कर रहे है

सनद रहे कि ये वही लोग जो कल तक ‘एयर स्ट्राइक’ होने पर इस तरह से बेहोश पड़े थे मानो किसी ने इनको ‘क्लोरोफॉर्म’ सुंघा दिया हो पर, आज जैसे ही हमारे एक विंग कमांडर ‘अभिनंदन वर्थमान’ के शत्रु खेमे में होने की खबर मिली मानो संजीवनी मिल गयी तुरत-फुरत सोशल मीडिया में अवतरित होकर अपने एजेंडे को आगे बढाने में जुट गये क्योंकि, इनके लिये सदैव ही एजेंडा सर्वोपरि रहा न कि राष्ट्र तो अपनी मंशा को सहानुभूति और शांति की चाशनी में लपेटकर इस तरह से प्रस्तुत करने लगे जैसे कि इनसे बड़ा अहिंसा का पुजारी तो कोई दूसरा है ही नहीं गाँधी जी के सच्चे अनुयायी यही है जबकि, इनकी ही पोस्ट पर एक भी कमेन्ट इनके खिलाफ लिखकर देख लीजिये तुरंत, ही इनकी असलियत का अहसास हो जायेगा ये इतने बड़े दोगले कि हर एक बात को अपने हिसाब से पेश करने के कुतर्क भरे तीर इनके शातिर दिमागी तरकश में मौजूद होते तो बस, उनके भरोसे ये जुट जाते अपना पक्ष लेकर जैसा कि इस मामले में भी कर रहे है

सभी ने अपनी पोस्ट्स में देश के वीर सपूत ‘अभिनंदन’ की रक्त रंजित तस्वीर लगाई जिसकी आड़ में बड़ी ही चतुराई के साथ अपने एजेंडे को भी सामने रख दिया जिसका आशय यही कि सरकार पर अनुचित तरीके से दबाब बनाया जाये जिस तरह 24 दिसम्बर 1999 को कंधार विमान अपहरण में किया गया था फिर आज उसी के ताने भी मारे जाते याने कि वही जो इन चालबाजों की नीति होती कि चित भी मेरी, पट भी मेरी तो यही तो इनका काम है सिर्फ और सिर्फ सरकार को झुकाना और गिराना क्योंकि, इनके अनुसार ये इनकी मनपसन्द सरकार नहीं पता नहीं किधर से चुनकर आ गयी बोले तो ई.वी.एम. की वजह से अन्यथा तो यही अब तक देश की बागडोर सम्भाले थे

मतलब, समझिये ये अपनी सरकार के पाले हुये वफादार है जो उनके न रहने पर उनके लिये इस तरह से काम करते पर, उपरी तौर से यही दिखाते कि इन्हें तो देश की बड़ी चिंता, सेना की बड़ी फ़िक्र, अवाम के प्रति इनका लगाव इनको सोने न देता पर, यही लोग चुप्पी साध लेते जब इनके हिसाब से अनुकूल वातावरण या पसंदीदा मसला नहीं होता ऐसे में ये समय बड़ा माकूल कि इनको पहचाने ये केवल अपनी कलम व बौद्धिकता से उनको इम्प्रेस कर लेते जो इनको खरीदकर इनका आजीवन बीमा कर दे और उसी के बल पर ये ऐश करते रहे जिसमें सहायक वही होते जो इनकी इन जहर भरी पोस्ट्स को पसंद करते और इनकी जेबें भरने में अनजाने ही सहायक होते यदि आप इनको पढ़ना बंद कर दे तो अपने आप ही इनका धंधा बंद हो जाये तो जो सच्चे देशभक्त वे यही करें कि ये एकदम सही समय इनको पहचाने और अमित्र कर दे अपने स्तर पर आप देश की यही सहायता कर सकते है अन्यथा आपको पता भी न चलेगा कि आपका लाइक/कमेन्ट इनको तो सकुशल विदेश भी पहुंचा देगा जब वक़्त खराब आयेगा और आप यही बैठे खुद को मूर्ख बना हुआ पायेंगे जो इनको उपरी मुखड़े से परखेंगे जबकि, असली सूरत तो छिपी रहेगी ये अपने तेज नाख़ून, नुकीले सींग और जहरीले दांत तब तक छिपाये रखते जब तक इनको निकालने की जरूरत नहीं पड़ती पर, जैसे ही अपने इनके विरुद्ध अपना मत रखा इनका शांतिदूत वाला नकली रूप कहीं खो जाता ये कुतर्को से मुद्दों को अपने पक्ष में करने के आदि होते है              

ये देश कभी वीरों से खाली नहीं हुआ और सैनिकों ने कभी भीरु की मौत नहीं चुनी कि आतंकवादी उन्हें मारते जाये और वे अपने सर उनके समक्ष रखते जाये वे तो सेना में भर्ती ही इसलिये होते कि अगर वक़्त पड़े तो राष्ट्र के काम आये न कि भारत माता का सर दुश्मन के आगे झुकाये जिसकी सबसे बड़ी नजीर बहादुर ‘चन्द्रशेखर आज़ाद’ है जो आज ही के दिन 27 फरवरी को खुद को गोली मारकर अपने लिये मौत चुने जबकि, उनके पासजीवन जीने का विकल्प भी था उसके बावजूद भी जब तक सांसें रही उन्होंने दुश्मन की गोलियों का सामना किया और जब उनकी पिस्तौल में गोलियां खत्म होने आई तो आखिरी गोली अपने सर में अपने ही हाथों से चला ली ये जिगरा सबका नहीं होता उनका तो कतई नहीं जो शांति-शांति चिल्लाते क्योंकि, यदि वे जानते कि जब जीवन मृत्यु से भी बदतर हो या दुश्मन के रहमो-करम पर जीना पड़े तो फिर गर्व से मृत्यु को चुनना के सिवा कोई भी चॉइस उनको गंवारा नहीं होती पर, ये बात उनको समझ कैसे आये जो ‘पद्मावती’ के मरने को कायरता समझती और इसके बजाय ‘सेक्स स्लेव’ बनकर भी जीने का आप्शन सही समझती तो जिनके लिये हर हाल में जीना ही लक्ष्य हो वो तो यही कहेंगे कि हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहो और जिन्हें ‘आज़ाद’ का खुद को मारना आत्महत्या लगती हो वे भी इनका ही समर्थन करेंगे पर, जिनकी रगों में गौरव-सम्मान के साथ जीना ही जीवन हो वे कोई समझौता नहीं करते आगे बढ़कर मृत्यु का आह्वान करते है जैसे आज़ाद ने किया था... जय हिन्द... जय भारत... वन्दे मातरम... 🇮🇳🇮🇳 🇮🇳️️ !!!

#अभिनन्दन_देश_का_सपूत_वापस_आयेगा_जरुर

#Geneva_Conventions


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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
फरवरी २७, २०१९

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