शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

सुर-२०१९-५३ : #महिला_सशक्तिकरण_की_प्रतिमान #कस्तूरबा_गांधी_भारतीय_स्त्री_की_पहचान




आज देश के २४ राज्यों के २०० जिलों से लगभग २५ हजार महिलाओं की यौन हिंसा के खिलाफ ‘गरिमा यात्रा’ निकली इसमें वे सभी पीड़ित नारियां शामिल थी जो एकदम साधारण या आम परिवारों से ताल्लुकात रखती है घर की दहलीज को पार के अपनी जुबान खोलना बरसों से दबी अपनी आह को आवाज़ देना उतना ही असामान्य है जितना इन सबका सामान्य घरों से जुड़ा होना ये अपने आप में बहुत गम्भीर सवाल खड़ा करता है अमूमन घरेलू स्त्रियों को खुद के साथ होने वाली ज्यादतियों को सहने की शिक्षा दी जाती है और यदि उसके साथ कुछ गलत हो भी जाये तो उसे ही अपराधी घोषित किया जाता है ऐसी परिस्थितियों में इनका उन सभी बेड़ियों को तोड़कर समस्त वर्जनाओं को धता बताकर सडकों पर निकलना ऐतिहसिक जीत है जो अपने जैसी ही अनगिनत औरतों को भी इसके प्रति जागरूक करेगी कि यदि उसके साथ किसी भी तरह की यौन हिंसा की जाती है तो उसे खामोश रखकर इसको बढ़ावा नहीं देना है

इस ‘गरिमा यात्रा’ के साथ आज अद्भुत संयोग भी जुड़ा हुआ कि आज ही इस देश को महिला सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढाने वाली एक उतनी ही प्रभावशाली शख्सियत ‘कस्तूरबा गाँधी’ की पुण्यतिथि भी है । यूँ तो उनका विवाह बहुत छोटी उम्र में हो गया पर, उसके बाद भी उनके भीतर छिपी मजबूत नारी ने उनको विपरीत हालातों में भी टूटने न दिया और ‘महात्मा गांधीजी’ के साथ हर मुश्किल में खड़ी रखकर सही मायनों में उनकी अर्धांगिनी बनी । जहाँ उनको महसूस हुआ कि उन्हें चारदीवारी से निकलकर अपनी जैसी अन्य महिलाओं को भी जगाना है तो उन्होंने आगे बढ़कर कमान सम्भाली और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अनेक आंदोलनों में भागीदारी कर गांधीजी से अलग अपने व्यक्तित्व का परिचय दिया । चाहे फिर वो विदेशी वस्त्रों की होली जलाना हो या स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार-प्रसार करना हो या फिर स्वतंत्रता संग्राम उन्होंने हर मोर्चे पर अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करवाई और खुद निरक्षर होकर भी सबको पढ़ने के लिये प्रेरित किया और स्वच्छता अभियान में सक्रिय रूप से योगदान देकर ग्रामीण जनों की इसका महत्व बताया ।

जब उनकी ‘मोहनदास करमचंद गाँधीजी’ से शादी हुई तब उनकी उम्र १३ साल थी और उस वक़्त का वर्णन करते हुये महात्मा गाँधी अपनी आत्मकथा में स्वयं लिखते है कि एकपत्नी व्रत पालना पति का धर्म है तो मेरी पत्नी को भी एकपति व्रत पालना चाहिये जिसके कारण मैं एक ईर्ष्यालु पति बन गया था । ‘पालना चाहिये’ से मैं ‘पलवाना चाहिये’ के विचार पर कब पहुंच गया पता न चला जिसके कारण मैं पत्नी की निगरानी करने लगा जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी पर, इर्ष्या ने सोचने-समझने की शक्ति पर कब्जा जमा लिया था । ऐसे में मेरा सोचना था कि वो मेरी अनुमति के बिना कहीं नहीं जा सकती पर, कस्तूर बाई ऐसी कैद सहने वाली कोई साधारण नारी नहीं थी तो जहाँ उनकी इच्छा होती वो मुझसे बिना पूछे कहीं भी चली जाती थी । मैं ज्यों-ज्यों दबाब डालता, त्यों-त्यों वह अधिक स्वतंत्रता से काम लेती जिससे मैं चिढ़ता जाता पर, जल्द मुझे ये समझ में आ गया कि वो किसी तरह के दबाब में रहकर काम करने वाली या किसी की वजह से अपने निर्णय बदलने वाली नहीं थी ।

वे निरक्षर थी परन्तु, इसको उन्होंने अपने मार्ग की बाधा नहीं समझा और अपनी आंतरिक क्षमता के दम पर दुनिया के सामने भारतीय महिलाओं की एक दमदार पहचान बनाई और घर के भीतर ही नहीं बाहर भी अपनी भूमिका निभाने की जरूरत बताई जिसके बिना वो खुद की क्षमताओं का आंकलन नहीं कर सकती । उनके जीवन से यही हम सबको सीखना चाहिये क्योंकि, आज तो हम सब उनकी अपेक्षा साक्षर व सुख-सुविधाओं से भी लबरेज है फिर भी यदि चुपचाप हर अत्याचार सहते तो फिर ये सब निरर्थक है । उनकी यही विशेषता आज उनको उन महिलाओं से जोड़ती जो ‘गरिमा यात्रा’ में शामिल हुई तो उन सब स्त्रियों को भी <3 से सलाम... !!!                
   
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
फरवरी २२, २०१९

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