गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

सुर-२०१९-३८ : #रोज_डे_विथ_फैमिली #बनाये_सबको_हैप्पी_हैप्पी



दीदी, देखा आपने ‘मोहित’ को ताजे लाला गुलाबों का खुबसूरत बुके लेकर आया और सीधे उपर अपने कमरे में चला गया इनके तो ऐश है जी, हम ही थे जिन पर मम्मी जी ने रौब गांठ लिया और कुछ करने भी न दिया पर, महारानी को कुछ न बोलती चाहे जींस पहने या सूट सिर्फ इसलिये न कि वो जॉब करती हम भी तो पढ़े-लिखे थे नौकरी भी करना चाहते थे पर, इन्होने ही फैसला सुना दिया कि हमारे खानदान की बहुयें कमाती नहीं बस, बनाती-खाती है पर, जब नम्बर अपने लाड़ले बेटे और उसकी पत्नी का आया तो सब कुछ एकदम से बदल गया क्यों ?

मंझली, तू शुरू से ही ऐसी है जरा-जरा सी बात पर फ़्लैश बेक में चली जाती है जबकि, मैंने कितनी बार समझाया कि परिवर्तन संसार का नियम और हमारा घर इससे अलग नहीं जब मैं आई तो मुझे सालों-साल तक लम्बा घुंघट रखना पड़ा, तब तो माता जी और भी ज्यादा नियम-कानून वाली थी, सारा काम हाथ से करना पसंद करती थी तो घर में काम-काज के लिये कोई सहायक तक नहीं था यहाँ तक कि तीज-त्यौहारों तक में मायके जाने की मनाही थी इसके बाद जब तुम आई तो थोड़ा बदलाव लाई और अब छोटी के आने से तो मानो हम सीधे इक्कीसवी सदी में आ गये इसलिये तुझे हमेशा कहती कि हर बात में पॉजिटिव पॉइंट ढूंढकर एन्जॉय किया कर न कि मीन-मेख निकालकर उस पल को बर्बाद किया कर कभी ये भी सोचकर देखा कर कि, हमारी सासू माँ ने कितना ज्यादा झेला होगा और उनकी सास ने तो पता नहीं क्या देखा होगा पर, फिर भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी बदलाव आ रहा तो तुझे वो क्यों नहीं दिखता और ये क्यों भूल रही कि छोटी हम सबको साथ लेकर चलती है उसके आने के बाद से मम्मी जी अब हमें भी उसकी तरह रहने को कहती है यहाँ तक कि अब तो तुम सोशल मीडिया पर भी हो, किट्टी पार्टीज में जाती और मैं भी अपने सोशल वर्क को कर पा रही तो याद रखो जब जो होना होता तब ही वो होता है

दीदी, आप तो वाकई नाम के अनुरूप ‘कोमल’ ही हो पर, मैं आपकी जैसी नहीं मुझे तो तकलीफ होती कि तब मैं जो कर सकती थी नहीं कर पाई वो समय क्या लौटकर आयेगा नहीं न, पर, छोटी की किस्मत देखो शुरू से ही अपने मन की कर रही और आज से तो इनका वैलेंटाइन वीक भी शुरू हो गया

जब तुम किस्मत को मानती तो यही समझ लो कि तुम्हारे साथ यही होना था पर, खुश रहो यार... ये समय भी लौटकर न आयेगा और रही बात वैलेंटाइन वीक की तो तुम्हें किसने रोका है मना लो तुम भी

क्या दीदी, आप भी कुछ भी कहती हो क्या अब ये सब शोभा देता है अब तो बच्चों के दिन आ गये ये सब मनाने के...  

तभी उपर से छोटी बहु के आने की आहट हुई तो दोनों उस तरफ देखने लगी, ‘अनुषा’ ने आकर दोनों को ‘हैप्पी रोज डे’ कहते हुये बुके से निकालकर एक-एक गुलाब थमा गले लगा लिया फिर बचे फूल मम्मी के हाथ में देते हुये बोली, मम्मी आज के दिन यही ख्वाहिश कि हम सब फूलों के इस गुच्छे की तरह मिलकर-बंधकर सदा हंसते-खिलखिलाते रहे

उसकी बात सुनकर माँ ने उन तीनों को गले लगा लिया और इस ‘रोज डे’ ने सबके भीतर मनभेद के उगे कांटे निकालकर उसकी जगह खुशियों के नये फूल खिला दिये थे

#First_Day_First_Story
#Rose_Day_With_Family
#Seven_Days_Seven_Stories_Series

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
फरवरी ०७, २०१९

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