शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

सुर-४४ : "लव पैकेज का सप्तम दिवस...!!!"

चूम नहीं सकता
कोई भी अपने ही गालों को कि
महसूस कर सके उस कोमल स्पर्श को
.....
न ही रख सकता
अधर अपने माथे पर कि
लगा आशीष का तिलक सजा ले भाल को
.....
न ही छू सकता
पलकों को अपने होंठो से कि
ख़ुद पहचान सके उस अलहदा छुवन को
.....
शायद,
इसलिये रब ने बख्शा
प्रेम के मिठास भरे इस अद्भुत अहसास को
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मित्रों...,

धीरे-धीरे ‘लव पैकेज’ के सभी ‘आइटम’ खत्म होते जा रहे हैं और आज प्रभात के साथ इस पिटारे में से निकल कर ‘किस डे’ सबके सामने आ चुका हैं पर, यदि हम केवल थोडा-सा ही पीछे जाये तो पायेंगे कि इसी देश में एक ऐसा ज़माना था जब इन सब दिनों और पर्वों से तो ये देश अपरिचित था ही साथ-ही ये सब शब्द जो आजकल बड़े खुलेआम प्रयोग किये जा रहे हैं इनका प्रयोग और इनको सबके सामने आज़माना भी वर्जित था हाँ, ये और बात हैं इनमें से किसी भी अहसास से कोई भी अनजान नहीं था लेकिन अपनी पवित्र सभ्यता और संस्कृति की वजह से इसे जुबान पर लाना बेशर्मी माना जाता था और अब जिसे देखो वो सब धडल्ले से न सिर्फ़ ये सब बल्कि इससे भी ज्यादा गैर वाजिब अल्फाजों का प्रयोग कर रहा हैं क्योंकि अब कुछ भी उसके लिए कल्पना या स्वप्न की बात नहीं रहा सब कुछ एक क्लिक पर एक साथ एक ही जगह उपलब्ध हैं जिसने असमय में न सिर्फ़ उसे कुछ ऐसा ज्ञान भी दे दिया हैं जो कि उसके हित में नहीं हैं बल्कि उसको अधिक मुखर भी बना दिया हैं जो हमारी तहजीब के खिलाफ़ हैं इसलिये ही हमारे तथाकथित समाज के ठेकेदार इन सबको गलत समझ इसका विरोध करते हैं  जिसकी वजह ये हैं कि उम्र के नाज़ुक दौर से गुज़र रही पीढ़ी जो सही-गलत के भेद से अपरिपक्व होती हैं वो ‘आकर्षण’ और ‘प्रेम’ के बीच के अंतर को समझ नहीं पाती न ही ये समझ पाती हैं कि इस भंवर में गिरने के बाद उसका अंजाम क्या होगा और फिर इसमें से निकलने का मार्ग भी उसे मिलेगा या नहीं हमारे यहाँ एक और समस्या हैं कि इन विषयों पर बातचीत करना भी नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त समझा जाता हैं जिसके कारण भी किशोर वर्ग कुछ तो स्वाभाविक रूप से अपनी नैसर्गिक प्रकृति से मजबूर होकर तो कुछ इसे जानने की लालसा से प्रेरित होकर इन सबकी तरफ़ झुकता हैं और चूँकि किसी भी बड़े का मार्गदर्शन या सलाह-मशविरा उसके साथ नहीं होता इसलिये वो भटक जाता हैं ऐसे में जबकि अब वो इन सबमें अपने आप को जोड़ रहा हैं तो अब अभिवावकों को भी थोडा जागरूक और ‘स्मार्ट’ होना पड़ेगा और उनके कदमों की दिशा पर नज़र रखकर ये समझना होगा कि वो किधर का रुख कर रहे हैं और जब समझ आये तो उन्हें अपने विश्वास में लेकर उनकी मित्र बनकर उनको जितना और जैसा भी सहज-सरल होकर समझाया जा सकता हैं उसका प्रयास करना चाहिये क्योंकि रोकना कभी भी किसी समस्या का हल नहीं क्योंकि ये भी इस देश के लोगों की एक एक स्वाभाविक वृति हैं कि मनाही या निषेध की तख्ती के नीचे ही वो वही काम करता हैं जिसके लिये उसे सख्त निर्देश देकर मना किया गया हैं  

‘किस डे’ आने पर सबके मन में केवल वही दृश्य बनता हैं जो उसे इस दिन के नाम पर परोसा जाता हैं जबकि वो खुद ये भूल जाता हैं कि इसकी पवित्रता को उसने सर्वप्रथम तब महसूस किया जब उसने जन्म लिया और उसकी जननी ने वात्सल्यता से भर उसके नन्हे-से फूल जैसे नाज़ुक चेहरे पर ‘ममता का चुंबन’ अंकित किया और जब वही छोटा-सा शिशु बड़ा होकर उसकी इस ममता का प्रतिउत्तर देने लायक होता हैं तो हर कोई उससे ‘प्यार की पप्पी’ की मांग करता हैं और उसे पाकर उसका चेहरा खिल जाता हैं इसी तरह कभी उसके परिजनों ने तो कभी उसके बड़ों ने उसके माथे पर ‘आशीष का चुंबन’ देकर उसको अपना आशीर्वाद दिया जिसने कदम-कदम और उसकी रक्षा की तब वही प्रेम अहसास ढाल बनकर उसका रक्षक बन गया और जब कभी किसी ने प्रेमातुर होकर उसके हाथ को थामकर उस पर ही ‘चाहत का चुंबन’ दे दिया तो उसकी खुशबू ने उसे रात-दिन सोने नहीं दिया और उसे प्यार का पहला पाठ पढ़ा दिया । इस स्वाद को जनम लेते ही जान लेने के बाद ही पता चलता हैं कि ये कितना पाक अहसास हैं जिसे यदि रूह से महसूस किया जाये तो ये पीढ़ी कभी-भी बाज़ारवाद के बनाये मकडजाल में नहीं फंसेगी बल्कि यदि उसके अपने उसके साथ हितैषी बनकर रहेंगे तो वो भटक भी नहीं पायेगी इसलिये यदि हमारी पीढ़ी इसे मनाती हैं तो मनाये लेकिन आप साया बनकर उसके साथ न रहें न सही लेकिन आपकी नैतिक सलाह उसके कदमों को लड़खड़ाने नहीं देगी आपकी पारिवारिक सोच उसे दलदल में गिरने नहीं देगी क्योंकि वैश्वीकरण और नेटवर्क युग में पली-बढ़ी इस ‘न्यू जनरेशन’ को आप ‘अंतरजाल’ में फंसने से तो नहीं रोक सकते लेकिन लगाम जरुर लगा सकते हैं और कुछ बंदिशे भी रख सकते हैं और वही हम सबको करना हैं ।

इस बार आप इस अहसास के सभी रंगों को याद करें और आप खुद पायेंगे कि सबसे सच्चा और प्यारा हैं मासूमियत से भरा सलोना वो अल्हड़ खिलखिलाता अनुभव जब आप किसी बच्चे से ‘किस्सी’ मांगते हैं और वो आपके गालों पर गुलाब की पंखुड़ी से कोमल होंठ रखकर उस मधुरता का अनुपम स्वाद देता हैं जिसके आगे आप भी एकदम से उतने ही छोटे और नन्हे बन जाते हैं और उसे गोद में लेकर उसे प्यार की पप्पी देते हैं... इस दुनिया में न जाने कितने अनाथ बच्चे और ऐसे लोग हैं जो इससे महरूम हैं तो कुछ ऐसा करें कि वो भी इस दिन को आपके साथ मना पाये और थोड़ी देर को ही सही उनकी बेरंग दुनिया में थोड़े रंग बिखेर दिये जाये क्योंकि कोई भी कुछ भी कर ले पर ख़ुद को तो किसी भी तरह नहीं चूम सकता न पर, इसकी पाकीज़गी को भंग किये बिना ही इसे अंतर में महसूसा जाना चाहिये... एक भंवरे की तरह नहीं जो हर कली पर मंडराता हैं बल्कि एक चकोर की तरह जो सिर्फ स्वाति नक्षत्र की बूंद से ही अपनी प्यास बुझाता हैं जिसके लिये इंतजार भी करता हैं और न मिले तो जान दे देता हैं पर, किसी भी जल को छूता नहीं... ये होती हैं प्रेम की शिद्दत, प्रेम की कशिश जिसके वशीभूत होकर ही इसकी पाकीज़गी को आत्मा में उतारा जा सकता हैं... :) :) :) !!!   
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१३ फरवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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