मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

सुर-४८ : "आई महाशिवरात्रि की पावन बेला...!!!"

‘शिव’ को
पाने पति रूप
‘पार्वती’ ने किया
जप-तप ध्यान-पूजन अद्भुत
हुये प्रसन्न ‘महादेव’ की मनोकामना पूर्ण
‘महाशिवरात्रि’ याद दिलाती वो अमर कथा संपूर्ण

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मित्रों...,

जगतपालक ‘शंकर’ और जगतजननी ‘पार्वती’ अभिन्न हैं और ‘अर्धनारीश्वर’ स्वरूप में तो उन्होंने जिस तरह अपने-अपने अंश को एकाकार किया वैसी कोई दूसरी मिसाल मिलना नामुमकिन हैं जो उन दोनों का एक-दूसरे के प्रति आत्मिक समर्पण और गहरा लगाव दर्शाता हैं जिस तरह उन्होंने आदर्श प्रेम की कल्पना को मूर्त दिया वैसा सभी अपने जीवन में चाहते हैं इसलिये तो हर कोई उनकी पूजा कर उन जैसा भरा-पूरा परिवार और ख़ुशहाल दांपत्य का वर मांगता हैं कहते हैं कि वो आज की ही अत्यंत शुभ-घड़ी थी जब महादेव तन पर भभूत लगाकर नंदी पर होकर सवार अपनी बेजोड़ बारात लेकर पर्वतराज हिमालय के दर पर अपने अर्धांश को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करने गये थे इस मंगल परिणय के साक्षी सभी देवता और असुर बने थे और कहते हैं कि ये आदिशक्ति जगदंबा का अंतिम जनम था जो उन्होंने ‘पार्वती’ के रूप में लिया और इस तरह उनके साथ फेरे लिये कि जनम-जनम के फेर मिट गये और उन्होंने हमेशा के लिये उनका अर्धासन प्राप्त कर लिया और इस लिये ये रात महान और अमर होकर ‘महाशिवरात्रि’ बन गई जो हर बरस आती हैं और हमें भी उनके ब्याह में शामिल होने का अवसर देती हैं      

वैसे तो इस ‘महारात्रि’ के विषय में और भी कई किवदंतिया प्रचलित हैं लेकिन यही सर्वमान्य हैं जो इसे शुभ और मंगलकारी बनाती हैं और भक्तगण सारी रात जागकर भजन गाते शिव-शक्ति की पूजा-आराधना करते और जगकल्याण हेतु प्रार्थना कर अगले दिन प्रभात बेला में विसर्जन कर व्रत अनुष्ठान पूर्ण करते इस तरह कब ये रात बीत जाती पता ही नहीं चलता तो आज इस अमृतमय मनोहारी महाशिवरात्रि की सभी को अनंत शुभकामनायें... :) :) :) !!!     
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१७ फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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