इतना
सहज सरल
किया सदा अभिनय
लगा नहीं कभी बनावटी
हर किरदार हर एक अदाकारी
याद रखेगी फ़िल्मी दुनिया
सारी
जीवंत कर चली गई ‘नूतन’ हमारी ॥
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मित्रों...,
मेरे साजन हैं उस पार
मैं मन मार हूँ इस पार
ओ मेरे मांझी...
अब की बार ले चल पार...!!!
हर संगीत प्रेमी और फ़िल्म
के शौकीन ने इस गीत को सिर्फ़ सुना नहीं बल्कि महसूस किया हैं और उतरते देखा हैं
अपनी आत्मा में इस के हर शब्द को उस वेदनामयी आवाज़ को पर, इस तराने को शायद ही कभी वो मुकाम हासिल होता जो मिला गर, इसके हर एक अल्फाज़ और ताबीर को रुपहले परदे पर अभिनय जगत की
सम्राज्ञी ‘नूतन’ ने अपनी हृदयस्पर्शी
अदाकारी से यूँ जीवंत न किया होता । कहने को तो ‘बंदिनी’ फिल्म का किरदार भी महज़ एक काल्पनिक कलम से रचा गया पात्र था लेकिन उसकी तड़फ, विवशता को जिस तरह से ‘नूतन’ ने अपने भीतर रचा-बसा लिया तो फिर देखने वाले को उसमें कोई
आभासी गढ़ा हुआ चरित्र नहीं बल्कि उस नारी का चेहरा नज़र आया जिसने यदि अपने बढ़ते
कदमों को रोक लिया, अपने दिल की आवाज़ को नकार दिया तो फिर वो कभी भी अपने
प्रियतम से न मिल पायेगी... जो भी हैं बस, वो इसी
पल हैं और अभी ही उसे निर्णय लेकर अपनी जीवन नैया की पतवार को अपने मांझी के हाथों
में सौंप देना चाहिये और जिस तरह से वो बेचैनी से दौड़कर उसका दामन थामती हैं हर
किसी की आँख नम हो जाती हैं । सिर्फ ये एक नगमा देखकर ही आप उस अभिनेत्री के अभिनय
की गहराई और ऊँचाई का अंदाज़ा लगा सकते हैं जिसने पहल-पहल इस चलती-फिरती तस्वीरों
की दुनिया को अभिनय की नई इबारत से परिचित करवाया और यदि पूरी फिल्म देखेंगे तो
बेशक, उसके मुरीद हो जायेंगे क्योंकि ‘नूतन’ भले ही कहने को सिनेमा की
नायिका थी लेकिन उसने कभी अभिनय किया नहीं या किया भी हो तो हमें नज़र नहीं आया यदि
हम किसी और के विषय में ऐसा कहे तो लोग सोचेंगे कि जब अभिनय किया ही नहीं तो काहे
की अभिनेत्री तो उनकी जानकारी के लिये बता दे कि फिल्मों में वे जो भी करती थी उसे
रटा-रटाया ‘अभिनय’ कहकर हम उसकी उस
स्वाभाविकता को कम कर के नहीं आंक सकते जो उन्होंने हमेशा अपने निभाये हर एक पात्र
की त्वचा में उतरकर उसका वो खोल पहनकर इस तरह से साकार किया कि देखने वाले को कभी
भी उसमें कोई बनावटीपन नजर नहीं आया ।
मैंने विशेष तौर पर इसी
गाने का जिक्र इसलिये किया क्योंकि जो ‘नूतन’ को नहीं भी जानते-पहचानते हो वो इस गाने से तो जरुर परिचित
होंगे और साथ ही ये भी ज़ाहिर करना था कि केवल चंद मिनट के नगमे को जो अपनी अदाकारी
से अमर कर सकती हैं उसके अभिनय का स्तर कितना ऊंचा होगा अतः उस बुलंदी को समझने के
लिये ये एक बेहतर मिसाल साबित होगी । वैसे तो उनके लहू में ही अभिनय घुला था
क्योंकि उनकी माँ ‘शोभना समर्थ’ भी अपने
ज़माने की न केवल एक अद्वितीय सुंदरी बल्कि अभिनेत्री भी जानी-मानी थी और ‘राम-राज्य’ में उनके द्वारा किया गया ‘सीताजी’ के अभिनय ने इतनी ख्याति
पाई थी कि कहते हैं यही वो एकमात्र फिल्म थी जिसे आधा-अधूरा ही सही ‘महात्मा गांधीजी’ ने देखा
था । ऐसे में उन्हें अपने घर में ही
फिल्मों का माहौल बना-बनाया मिला फिर उनकी किस्मत की वो भी अपने बेमिसाल सौन्दर्य
की वजह से ‘मिस इंडिया’ का
ख़िताब पा गई और इस तरह उनकी मंजिल भी अपने-आप निर्धारित हो गई और बस, उनके कदम भी अपनी माँ की उसी अभिनय जगत की बनी-बनाई लीक पर
चल पड़े और ऐसे चले कि कभी डगमगाये नहीं कभी भूल से भी अपने पेशे को शर्मिंदा नहीं
किया जो भी जैसा भी किरदार मिला सबको अपनी सहजता-सरलता से जीवित किया तभी तो हर एक
ख़िताब और पुरस्कार अपने नाम किया सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के इतने ज्यादा सम्मान
शायद, ही और किसी अभिनेत्री को मिले हो जितने उनके निभाये गये रोल
के लिये उनको दिये गये हैं । ऐसा इसलिये संभव हो पाया कि उन्होंने जब भी किसी भी
फिल्म में कोई रोल किया तो उसके लिये पूरी तरह से तैयारी की उसे समझा और फिर पर्दे
पर साकार किया इसलिये जब हमने उसे देखा तो हमें उसमें कहीं नकलीपन दिखाई नहीं दिया
ये होती हैं काम के प्रति लगन और अपूर्व समर्पण जिसने उन्हें इस सिने-जगत की
बेहतरीन अभिनेत्री का दर्जा दिलाया और हर एक अभिनेता ने उनके साथ काम करना अपनी
खुशनसीबी माना और इस तरह लगभग सभी स्थापित कलाकारों के साथ उन्हें काम करने का
अवसर मिला ।
वे केवल संजीदा किरदार ही
नहीं करती थी बल्कि उन्होंने हल्के-फुल्के और कॉमिक रोल्स भी किये जिसने उनको ऐसी
बहुमुखी अदाकारा बना दिया जो हर रोल के लिये फिट पाई गई और इस तरह की फिल्मों को
भी बहुत पसंद किया गया... संभवतः नूतन ही ऐसी पहली अभिनेत्री हैं जिन्होंने समय की
धारा को भांपकर अपने आपको नायिका की भूमिका से सीधे चरित्र भूमिकाओं में ढाल लिया
और वहां भी झंडे गाड़ सहनायिका के अवार्ड अपनी झोली में कर लिये मतलब कि उम्र के हर
पड़ाव में जो भी किरदार उन्हें दिया गया उन्होंने उसके साथ न्याय किया... वे केवल
एक संवेदनशील अभिनेत्री ही नहीं बल्कि कलम की धनी भी थी इसलिये कविता और गज़ल भी
लिखती थी उनके इस पक्ष से ये पता चलता हैं उनके अंदर सोचने की भी अद्भुत क्षमता
थी... और शायद, ये अंदरूनी खलिश ही थी कि वो केंसर से पीड़ित होकर आज ही के
दिन २१ फरवरी १९९१ को हम सबको अलविदा कर चली गई... आज उनकी पुण्यतिथि पर उस
स्वाभाविक अभिनय की धनी कलाकार को नमन... अपने जिये पात्रों में सदा जिंदा रहेगी
नूतन.... :) :) :) !!!
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२१ फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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