शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

सुर-५९ : "राष्ट्रीय विज्ञान दिवस... करें न इसे विस्मृत...!!!"


गर,
होता न
‘ज्ञान’ और
उसे परखने वाला
सिद्धांत से भरा ‘विज्ञान’
तो न होती नई खोजों की पहचान

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मित्रों...,

‘भारत’ देश में सदियों से अनगिनत चीजों का अविष्कार और खोजें हुई हैं लेकिन कुछ तो लापरवाही और कुछ उसकी महत्ता से अनभिज्ञता की वजह से लोगों ने अपने मूल्यवान शोध को न तो ‘पेंटेंट’ कराया न ही उसके प्रति वो जागरूकता रही अतः वो तो बस, उसका उपयोग कर उसे लोगों में प्रचारित करते जिसके कारण बहुत से अभुतपूर्व अनमोल साधन जिन्हें की बड़ी मेहनत से खोजा गया था वो किसी और ने अपने नाम से सुरक्षित करा लिये और हम देखते ही रह गये इसी कारण सन १९८६ में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद’ तथा ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ ने ये निर्णय लिया कि लोगों को ‘विज्ञान’ विषय की महत्वपूर्ण सार्थक बातों की न सिर्फ़ जानकारी हो बल्कि वो इसके महत्व को समझे और इसके प्रति उनका नजरिया बदले जिससे वो जागरूक होकर खुद को इस क्षेत्र से जोड़कर सही तरह से अपने काम को दिशा दे सके जिससे कि उनकी खोजों का वास्तविक मूल्यांकन हो और उसके जाँच-पड़ताल एवं अथक कोशिशों का उसे ज़ायज हक मिल सके इस तरह २८ फरवरी को ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया ताकि साल दर साल सभी इस दिन अपनी वैज्ञानिक गतिविधयों का आकलन कर उसे सबके सामने प्रस्तुत कर सके और इसे प्रोत्साहन देने के लिये शोधार्थी को सभी आवश्यक सुविधायें व आर्थिक मदद भी दे जाने लगी जिससे कि उसके काम में कोई अड़चन न आये बस, तब से आज के दिन सभी विद्यालयों, महाविद्यालयों, वैज्ञानिक संस्थानों और प्रशिक्षण शालाओं में विज्ञान से सम्बंधित विभिन्न प्रतियोगितायें, सेमीनार, संगोष्ठी और प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता जहाँ पर सभी विद्यार्थी अपने-अपने बनाये गये चार्ट, मॉडल्स व बनाई गई वस्तुओं को सबके सामने प्रदर्शित करता

सरकार ने इस दिवस को मनाने के लिये ‘२८ फरवरी’ का ही दिन इसलिये निश्चित किया कि सन १९२८ में आज ही के दिन हमारे देश के गौरव और महान वैज्ञानिक ‘प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर रमन’ ने ‘रमन प्रभाव’ की खोज की थी जिसके लिये उन्हें और इस देश को भौतिकी का प्रथम ‘नोबल प्राइज’ भी हासिल हुआ चूँकि उन्होंने इसी दिन इसकी खोज की थी इसलिये उनकी स्मृति में आज का दिन ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में जाना जाने लगा तब से आज तक निरंतर आज के दिन सभी खोजकर्ताओं को उनकी विशेष ख़ास उपलब्धि के लिये किसी सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित किया जाता और साथ ही पुरस्कारों की घोषणा कर उन सभी के उत्साह को भी बढ़ाया जाता जिन्होंने कि दिन-रात की लगातार मेहनत और समर्पण से किसी नयी वस्तु को इज़ाद कर देश और समाज के स्तर को बढ़ाने और लोगों का जीवन सुखी बनाने के लिये अपने अनमोल समय के अलावा वो सामान भी दिया जिससे कि वो आगे बढ़ सके । इसके अलावा ‘विज्ञान’ में हो रहे नये-नये अविष्कारों और खोजों के प्रति लोगों को ज्ञानवर्धन करने के लिए हमारे देश में साइंस सिटीभी स्थापित की गयी है और फिलहाल हमारे यहाँ लगभग चार ‘सांइस सिटी’ हैं जो कि इन चार महानगरों ‘कोलकाता’, लखनऊ’, अहमदाबाद’ और ‘कपूरथला’ में है इन ‘साइंस सिटी’ में विज्ञान के क्षेत्र में नित होने वाली नवीनतम प्रगति और वैज्ञानिकों द्वारा की जाने वाली क्रियाकलापों का प्रदर्शन किया जाता हैं है और यहां पर ‘विज्ञान’ से जुड़ी 3डी फिल्में भी दिखायी जाती हैं और साथ-साथ ही देश के अन्य क्षेत्रों जैसे कि ‘गुवाहटी’ और ‘कोट्टयाम’ में भी इसका निर्माण किया जा रहा है

एक पल को ही सोचे यदि ये ‘विज्ञान’ और ‘वैज्ञानिक’ न होते तो वो सब कुछ भी न होता जिनके माध्यम से आज हम दिन-ब-दिन सफ़लता के सौपान चढ़ते जा रहे हैं और तकनीक के मामले में दूसरे देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलाने का प्रयास कर रहे हैं फिर भी ये कहने में थोडा भी हिचक का अनुभव नहीं होता कि इतना कुछ होते हुये भी अब भी लोगों में इसको लेकर उस दर्जे का उत्साह नहीं हैं जितना कि होना चाहिये तथा हम लोग अभी भी उस श्रेणी का अविष्कार नहीं कर पा रहे हैं जैसा कि हम सबको करना चाहिये ऐसे में ये जरूरी हैं कि हम लोग इस दिन का प्रचार करें और उन सभी को जो कि इसमें अपना कैरियर बनाना चाहते हैं इसकी जानकारी दे प्रेरित करें जिससे कि वो भी इसके बारे में जान सके और यदि उनकी रूचि हैं तो वो समर्थन पाकर आगे बढ़ सके... तो आज इस ‘राष्ट्रिय वैज्ञानिक दिवस’ में देश के सभी वैज्ञानिकों और खोजकर्ताओं को बधाई जिन्होंने अपनी खोजों से हम सबके जीवन को सुख-सुविधा पूर्ण बनाकर हमें ये नेमतें बख्शी हैं... ये विज्ञान का चमत्कार हैं कि आज हम सब आपस में इतने दूर-दूर और एक-दुसरे से अनजान होते हुये भी जुड़े हुये हैं... ऐसे में ‘विज्ञान’ को सलाम जिसने दिये वैज्ञानिक अपार... जिनसे हुआ मुश्किलों का पुल पार... बधाई सबको फिर एक बार... :) :) :) !!!     
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२८ फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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