नाम वही
जो पूरा करें अर्थ
काम वही
जो न हो कभी व्यर्थ
धाम वही
जो बनाये जीवन सार्थक
तब ही तो बलिदान न होता
निरर्थक ॥
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मित्रों...,
एक चौदह साल का बालक जो
कहने को तो कमउम्र और किशोर समझा जाता हैं लेकिन जब देश की हवाओं में गुलामी की
गंध हो लोग बिना जंजीरों के भी खुद को हर पल बंधन में महसूस करते हो और अपने मन से
न तो जी सकते हो न ही कुछ कर सकते हो तो ऐसे हालातों में कभी-कभी मूक बेबस जानवर
भी हिंसक हो जाता या प्रतिकार को तड़फ उठता फिर बात जब जीते-जागते सामर्थ्यवान और
सोचने-समझने की क्षमता रखने वाले इंसान की हो वो यदि चुप रह जाये तो उसे लड़ने से
पहले ही हार मानकर बैठ जाने वाला मजबूरियों से समझौता करने वाला कायर के सिवा और
क्या कहा जायेगा लेकिन परतंत्रता के उस दम तोड देने वाले सख्त नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त
और जीने के लिये हर तरह से प्रतिकूल वातावरण में क्या छोटा क्या बड़ा हर कोई
फिरंगियों को अपनी जमीन से बेदखल कर देने को तत्पर हो उठा । इसलिये जब १९२० में ‘महात्मा गांधीजी’ ने ‘असहयोग आंदोलन’ छेड़ा तो
ये कमसिन ‘चंद्रशेखर’ भी उसमें शामिल हो गया
क्योंकि उसके अंदर का लहू भी उबल रहा था जो किसी भी हाल में ख़ुद को और अपने
भाई-बहनों को स्वतंत्र कराना चाहता था इसलिये उसने भी अपने आपको इस लड़ाई का हिस्सा
बनने में देर न लगाई और इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करने लगे फिर वही हुआ जो
होना था एक दिन अंग्रेजों ने उन्हें धरना देते पकड़ लिया और कर दिया अदालत में
हाज़िर फिर शुरू हुआ सवाल-जवाब का दौर मजिस्ट्रेट ने उस बहादुर लड़के से जब पूछा
कि---
तुम्हारा नाम क्या हैं ?
तो निडरता भरा जवाब आया ‘आज़ाद’ ।
उसके बाद पिता के नाम को
जानना चाहा तो
एक और बेखौफ़ उत्तर ‘स्वाधीन’ ।
अंत में जब घर का पता तलब
किया गया तो
सर उठाकर बोले ‘जेल’ ।
एक बच्चे के इस हौसले भरे
प्रतिउत्तर से उसके अंदर के जोश और हिम्मत का अंदाज़ा आसानी से लगता हैं कि किस कदर
वो ब्रिटिश शासकों के पिंजरे में कैद अपनी ‘भारतमाता’ को स्वतंत्र कर खुली फिजाओं में तिरंगा फहराते देखना चाहता
था इसलिये अपना नाम ही ‘आज़ाद’ रख लिया था और फिर जब तक
जिंदा रहे इस नाम की लाज रखी और जब वक़्त आया दुश्मनों ने चारों और से घेर लिया तब
भी खुद को जीते-जी उनके हवाले करने की बजाय अपनी पिस्टल की अंतिम गोली को खुद के
सीने में उतार लिया लेकिन उनकी गिरफ़्त में नहीं आये इस तरह जो नाम उन्होंने स्वयं ही चुना था उसे अपनी जान देकर
भी निरर्थक न होने दिया । तभी तो इतने बरस बाद भी हम उनकी इस शहादत को विस्मृत नहीं
कर पाये क्योंकि जब कोई अफ़साना स्याही की जगह लहू से लिखा जाता हैं तो वो फिर किसी
भी तरह नहीं मिटता चाहे काल बदल जाये या दुनिया या फिर इतिहास वो उसी तरह सुर्ख
रहता और सदियों तक आने वाली पीढ़ियों को शहीदों की दास्तां कहता जिसने उसे जाने के
बाद भी अमर कर दिया ।
‘पंडित चंदशेखर आज़ाद’ का
व्यक्तित्व व कृतित्व हर एक नवजवान के लिए प्रेरक और संदेशप्रद हैं जिसे पढ़कर और
सुनकर वो खुद के लिये भी इस तरह जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ सकते हैं...
उनका छोटी-सी जीवन गाथा में इतने सारे उत्साहवर्धक जोश से भरे प्रसंग हैं कि कोई
भी उसे पढ़कर अपने अंदर भी उस ऊर्जा को अनुभव कर सकता हैं तो फिर आज २७ फरवरी उनके पुण्यदिवस पर उनको
शत-शत नमन... कोटि-कोटि प्रणाम जिन्होंने हम लोगों को स्वतंत्र जमीन-आसमान देने के
लिये अपने आपको पुर्णतः समर्पित कर दिया... वंदे मातरम्... इंकलाब जिंदाबाद... का
नारा बोल-बोलकर इस धरा को अपने कर्मों से गर्वित किया... नमन... :) :) :) !!!
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२७ फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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