शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

सुर-५१ : "किताबों का खेला... विश्व पुस्तक मेला...!!!"

हर
बरस
आता मेला
कलम और किताब का
दिखाता सच किसी ख़्वाब का
चलो पूछे हाल कैसा हैं जनाब का... :) ॥

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मित्रों...,

विश्व पुस्तक मेला’... हर कलमकार के लिये ये किसी 'कुंभ' से कम नहीं जिसका वो पूरे साल इंतजार करता और जिसके लिये जमकर तैयारियां भी करता कि कब वो आये क्योंकि अपनी कठोर साधना से अर्जित ज्ञान को किताब शक्ल में तो उसने ढाल दिया लेकिन पाठकों तक उसे पहुँचाने के लिये इससे बेहतर न तो मंच हैं न ही माध्यम जहाँ देश-विदेश से सब लोग दौड़े चले आते हैं ।  हर जगह विविध तरह की पुस्तकों के अनेक स्टाल सज जाते छोटे-बड़े सबके लिये हर तरह की हर एक विषय की किताब उपलब्ध होती जिसे भी जो चाहिये वही ले ले याने कि ये एक ऐसा जलसा जिसमें प्रकाशक, किताबें, लेखक, पाठक और प्रशंसक सब एक साथ एक जगह एकत्रित होते हैं और एक दूसरे से उनका मिलन होता । अब तो इस तकनीकी युग में इसका महत्व और भी अधिक बढ़ गया हैं क्योंकि पहले तो कोई-कोई ही लिखता था और सब पढ़ते थे लेकिन अब तो सब लिख रहे हैं और उसे बांचने वाला कोई-कोई ही बचा तो उसे ही ढूँढने के लिये भी ये बड़ा काम आता हैं । आजकल हर तरफ इसी के चर्चे हैं रोज न जाने कितने विमोचन कितने नये-पुराने लेखकों का उदय होता और हर कोई आपस में भी एक-दूसरे को अपनी किताब बाँट रहे क्योंकि यहाँ तो लिखने वालों की भरमार हैं ।

इसके अलावा कवि / कवयित्रियों को कविता पाठ के लिये भी सजा-सजाया मंच और सुनने वाले इतने लोग एक साथ मिल जाते बोले तो सबके लिये ही सुनहरा अवसर किसी को भी निराश होने की जरूरत नहीं फिर क्यों न कोई वहां जाना चाहे जहाँ उसके स्वप्नों की ताबीर मिलती हो उसके पंखों को परवाज़ ही नहीं उड़ने के लिये विशाल आकाश भी हासिल होता हो जिसकी न जाने कब से उसे तलाश थी । 'सोशल साइट्स' और 'मीडिया' की वजह से लेखन को जितना प्रोत्साहन और दबी-छूपी प्रतिभाओं को उभरने का बेमिसाल मौका मिला हैं ऐसा पहले न तो किसी ने सोचा था न ही इतना आसान था कि कोई लिखे और उसे हाथों-हाथ लिया जाये बल्कि अच्छे-से-अच्छा कमाल का लेखन सब डायरियों और पन्नों में  लिखा का लिखा खाक और राख हो जाता पर इस जगह हर किसी को मान दिया जा रहा हैं । गर, उसकी कलम में गहराई और उसके पास ज्ञान का खज़ाना हैं तो बस, अब अपने किसी भी हुनर को छुपाने की जरूरत नहीं हर तरह की कला और कलाकार के लिये यहाँ अपना व्यक्तिगत कोना और अपने मित्रों का सीमित दायरा हैं । ये केवल आपको खुद को मांजने और निखारने का ही जरिया नहीं हैं बल्कि यदि आप में कोई अद्वितीय कौशल हैं तो उसके लिये भी कद्रदान और मार्गदर्शक हैं जो उसे प्रस्तुत करने का जोखिम उठाने के लिये सदा आपके साथ हैं जिसकी जानकारी भी आपको इस  स्थान पर आने के बाद हो जाती हैं ।

हम भी हर बरस बस दूर से उसके चर्चे सुनते, उसकी तस्वीरें देखते और अपने सभी मित्रों के जरिये वहां के हाल-चाल जान पाते जिसे देख-सुनकर यही सब अब तक जान पाये हैं कि जो भी लिखता हैं उसके लिए ये वरदान हैं और उसे इस मेले के पहले ही कलम को विराम देकर अपने अल्फाजों को बुक में तब्दील कर लेना चाहिये और यदि आपको किसी प्रकाशक की मदद चाहिये तो अब उसके लिये भी भटकने की जरूरत नहीं क्योंकि वो भी यही इसी नेट की आभासी-दुनियामें उपलब्ध हैं... फिर भी जो लोग इस दुनिया को गलत कहते या इसकी बुराई करते ये उनका अपना नजरिया या अनुभव हो सकता हैं लेकिन अपन ने तो यही महसूस किया कि यहाँ भी हर-तरह के लोग मौजूद हैं केवल अपने रूचि और मिज़ाज के साथी मिल जाये तो फिर आपका भी मन लगेगा और आप भी अपने कीमती समय में से कुछ समय इसके लिए स्वतः ही निकाल पायेंगे... और यदि गलत 'कनेक्शन' जुड़ गया तो फिर दूसरों की तरह अंगूर खट्टे ही बताओगे... तो फिर सोच बदलो समय के साथ चलो... तकनीक को दोस्त बनाओ... सपनों को सच करो... ये कोई कोरी गप नहीं हकीकत हैं... हकीकी दुनिया के सपने अब आभासी-दुनिया के माध्यम से भी साकार होते हैं... नहीं मानते... मान जाओगे... जब आज़माओगे... सच... :) :) :) !!!
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२० फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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