रविवार, 8 फ़रवरी 2015

सुर-३९ :"लव पैकेज का द्वितीय दिवस..." !!!

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मित्रों...,

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‘इज़हार-ए-मुहब्बत’
अपनी चाहत का इकरार
सिर्फ़ अपने ‘प्रियतम’ से ही नहीं...
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हर उस बंदे से करो
जिस किसी को भी आप चाहते हो
ये अहसास बस, दिल में छुपाकर रखो नहीं ।।
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आज ‘लव पैकेज’ का दूसरा दिन यानी कि ‘प्रपोज डे’ बोले तो ‘इज़हार-ए-मुहब्बत’ के लिये बाज़ारवाद की तरफ से मुकर्रर किया गया दिन हैं... हमें तो खैर, ये समझ में नहीं आता कि पहले दिन ‘गुलाब’ दो और दूसरे दिन ‘इकरार’ करो मतलब कि गुलाब देते समय कुछ न कहो सामने वाले को केवल अंदाज़े लगाने दो और यदि उस पूरे दिन वो आपको सही-सलामत छोड़ दे तो फिर अगले दिन जो भी आप उसे कहना चाहते हो बिंदास कहो और कहना क्या हैं उसके लिये भी तनिक परेशान न हो क्योंकि ये भी आपको ‘मार्केट’ में रेडीमेड मिलेगा जैसा भी और जो भी आप चाहते हैं हर तरह का ‘माल’ पहले से ही तैयार कर के सजाकर आप जैसे लोगों के लिये ही दुकान पर रखा गया हैं जो इस साप्ताहिक कार्यक्रम को इसी तयशुदा दिन के अनुसार मनाते हैं आजकल मार्किट ने आपकी इस तरह की सारी जिम्मेदारियां अपने सर पर ले ली हैं यहाँ तक कि आपके दिलों दिमाग पर भी वही काबिज़ हैं जो उसने इस दिन विशेष के लिये पहले से ही बना रखा हैं और तरह-तरह से विज्ञापनों के जरिये आपके ‘जेब’ या ‘बैगों’ में उसे ठूंसने के लिये बड़े ही आकर्षक तरीके से पेश कर कर रहा हैं जिससे कि यदि आप उससे कम कुछ सोचे तो आपको खुद को अहसास-ए-कमतरी हो कि य़ार, हमें तो फलां कंपनी का ढिकाना ‘प्रोडक्ट’ ही खरीदना हैं और जो न ले पाये तो लानत हैं हमारे अहसास को जो उस सामान से सस्ता निकला इस उत्सव की यही बातें हैं जो इसे नकारात्मक रुख देती हैं क्योंकि जहाँ सिर्फ़ दिखावे को ही ‘प्रेम’ समझा जाता हो और ज़ज्बातों को महज़ <3 के कोरे अरमान जिसकी कोई कीमत नहीं क्योंकि आप इसे खुबसूरत मनभावन रंगबिरंगे कागजों में लपेटकर पेश नहीं कर सकते भले ही वो सबसे अनमोल हो लेकिन यदि ‘मार्किट’ ने ये प्रचारित कर दिया कि इस अवसर पर यदि आपके प्रेमी ने आपको ये वाली ‘डायमंड रिंग’ न दी तो उसका आपके प्रति प्यार खालिस नहीं, तो फिर बच्चू कितना भी जोर लगा लो और कितने ही कोमल-नरम अल्फाज़ों को अपनी पुरकशिश मखमली आवाज़ में प्रस्तुत करो वो खारिज़ कर दिये जायेंगे यही इस युग की प्रायोजित मानसिकता हैं जिसमें आज का युवा वर्ग पिसा जा रहा हैं     

हम ये नहीं कहना चाहते कि आज की पीढ़ी की चाहत में कमी हैं या उसके भीतर की भावनायें नकली हैं लेकिन जो लोग केवल इन ख़ास दिनों पर ही इसे महसूस करते हैं और उसके हिसाब से ही अपने आपको ढाल लेते हैं फिर महज़ रस्मी तौर पर इसका प्रदर्शन करते हैं वो जरुर सही नहीं कहा जायेगा क्योंकि जिस तरह कोई पर्व या उत्सव एकरसता को भंग कर मन को नये जोश नई उमंग से भरता हैं और उदासीनता को दूर भगाकर जीवन में क्षणिक ही सही ख़ुशी की लहर ला देता हैं वैसे ही ये दिन भी यदि प्रेमियों और जोड़ों को अपने प्रवाह में लेते हैं तो कोई बुराई नहीं क्योंकि ज़माने की भागदौड़ में जबकि आदमी मशीन बन जाता हैं संवेदनाओं से दूर होता जाता हैं और ऐसे में जब ये सब हो तो उसके अंदर का भावुक इंसान न सिर्फ जिंदा रहता हैं बल्कि उसकी जिंदगी चंद रोज़ और बढ़ जाती हैं क्योंकि ये सिर्फ एक संवेदनशील व्यक्ति ही समझ सकता हैं कि उसका जीवन सिर्फ़ सांसों से या धड़कन से या फिर भोजन से नहीं बल्कि मुहब्बत के रसायन से चलता हैं जिसकी कमी उसे ‘ऑक्सीजन’ की तरह महसूस होती हैं और उसका दम घुटने लगता हैं लेकिन जैसी ही प्रेम की बयार चलती हैं उसकी साँसे वापस आ जाती हैं । वास्तव में सच्चे प्यार की अनुभूति ऐसी ही होती हैं जो रगों में लहू, दिल में धड़कन और सीने में सांस की तरह समा जाती हैं जिसके बिना आदमी का जीना दूभर हो जाता हैं लेकिन जिस तरह से आज की ‘यंग जनरेशन’ हर दिन, हर पल ‘लिंकअप’ और ‘ब्रेकअप’ कर रही हैं उसने इस खुदाई रहमत की विश्वसनीयता, इसकी पाकीज़गी पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिये हैं और फिर ये युवा ही हमसे सवाल करते कि क्यों हमारे ‘इश्क़’ को ‘विश्क़’ कहा जाता क्यों हमारी  नीयत को खराब समझा जाता हैं और क्यों पुराने समय के लोगों को लगता कि हम प्रेम के नहीं वासना के पुजारी हैं । वो इस बात को तभी समझ सकेंगे न जब वो किसी के लिये ऐसे दीवाने हो कि उसके सिवा न कोई दिखाई दे, न ही कोई और अच्छा लगे लेकिन यहाँ तो आज ‘ब्रेकअप’ कल नया ‘अफ़ेयर’ कोई मलाल नहीं कोई दर्द नहीं न ही उसका इंतज़ार । माना कि ये अच्छा हैं कि आज के प्रेमीजन ‘देवदास’ नहीं बनते पर ये क्या कि एक साथ एक ही समय में कई लोगों से रिश्ता कायम रखते और किसी के भी प्रति वफ़ादार नहीं होते । जहाँ कोई नया पसंद आया पुराने को छोड़ उसके पीछे हो लेते और ये सब कोई अतिश्योक्ति नहीं बड़ी ही सामान्य बातें हो जो आये दिन युवा वर्ग में देखी जा रही हैं जिसकी वजह से उनके लिये सबकी ऐसी सोच विकसित हो रही हैं इनमें ऐसे भी होंगे जो सिर्फ़ एक बार की मुहब्बत में यकीन करते होंगे लेकिन वो सिर्फ उतने जितनी की हाथों में उँगलियाँ या उससे भी कम भले ही फिर वो कितने भी तर्कों से अपनी उस अनगिनत ‘लव फीलिंग’ को जायज़ ठहरा ले पर, जब तक वो ‘रूहानी अहसास’ से नहीं गुज़रते जिस्म से परे नहीं सोच पाते हैं ।     

आज ‘प्रपोज डे’ पर हमारा तो यही कहना हैं कि यदि ये अपने चाहनेवाले को ये दर्शाने का दिन हैं कि आप उससे कितना प्यार करते हैं तो फिर सिर्फ़ उस एक को ही नही बल्कि हर एक को जिसे भी आप अपने प्यार के काबिल समझते हैं या जिससे भी आप प्यार करते हैं उन सबको ही जताये कि आप उनके प्रति कैसा महसूस करते हैं क्योंकि ‘प्यार’ सिर्फ़ ‘प्रेमी’ और ‘प्रेमिका’ के मध्य निर्धारित संबंध तो नहीं बल्कि ये तो हम अपने हो या पराये सबके लिए ही दिल के किसी कोने में कोई अलग-सा जज्बा महसूस करते हैं तो फिर आज के दिन सिर्फ उस अकेले को ही क्यों इसका हिस्सेदार बनाते हैं... माना कि वो सबसे ख़ास हैं... <3 के सबसे ज्यादा पास हैं... पर, सिर्फ उससे ही तो आपको प्यार नहीं और भी तो इसके हकदार हैं तो फिर उनसे क्यों नहीं करते इज़हार हैं... बोलो... बोलो... हमसे नहीं उनसे... कि हाँ मुझे तुमसे प्यार हैं... इस संदेश के साथ सबको ‘प्रपोज डे’ की शुभकामना... :) :) :) !!!   
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०८ फरवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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