गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

सुर-३६ : "रफ़्तार संभाल कर... जीवन न जाये गुजर...!!!"


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मित्रों...,

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जाते तो
सब ही हैं
जाना ही हैं
आखिर तो इक दिन...
.....
लेकिन,
इस तरह
अचानक असमय
हाथ छुड़ाकर भी तो
जाता नहीं कोई
कि जीना ही मुश्किल लगे
उसके... बिन... सच... ।।
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इस सदी ने बच्चों को बहुत अधिक समझदार, जानकार और समय से पहले ही बड़ा कर दिया हैं और बचपन की उम्र भी घटा दी हैं जिसकी वजह से अब वो हर बात में हर चीज़ में बड़ों के साथ न सिर्फ बराबरी से हिस्सा लेते हैं बल्कि उनकी बातों में भी बड़ों की ही तरह शरीक होते हैं और आज के इस उन्मुक्त माहौल ने उनके भीतर की मासूमियत और बचपना भी कम कर दिया हैं जिसके कारण बच्चे-किशोर और किशोर-युवा की तरह व्यवहार करने लगे हैं शायद यही वजह हैं कि वो खुद को 'छोटा' या 'बच्चा' कहलाना भी पसंद नहीं करते हैं । इसके जहाँ कुछ सकारात्मक लक्षण दिखाई दे रहे हैं वही बहुत से नकारात्मक चिन्ह भी दिखाई दे रहे हैं और वो ऐसे हैं कि उसकी वजह से कई पालक को एकाएक ही अपनी ही संतान के दर्दनाक विछोह की कष्टप्रद स्थितियों का आजीवन सामना करना पड़ता हैं । आजकल के कमउम्र बच्चे समझते हैं कि उन्होंने सब कुछ जान लिया हैं और वो इतने समझदार हो चुके हैं कि अपने सारे फ़ैसले खुद ले सकते हैं इसलिये अक्सर वो ऐसे जोखिमपूर्ण कदम उठा लेते हैं जिसका खामियाज़ा उनके माता-पिता को झेलना पड़ता हैं । इसमें कहीं न कहीं आंशिक रूप से वे भी जिम्मेदार होते हैं जो उनके एक बार मांगने से उन्हें सब कुछ और कई बार तो जरूरत से ज्यादा दे देते हैं ताकि वो इन सब सुविधाओं में डूबकर उनकी किसी कमी की और ध्यान न दे सके या उनसे बेवजह के सवाल न पूछ सके लेकिन ये नहीं सोच पाते कि उनका ये अँधा प्रेम एक दिन उनके ही घर के चिराग को मौत के भयावह दलदल में भी धकेल सकता हैं ।

ये लिखते हुये मुझे बेहद तकलीफ़ हो रही हैं लेकिन ये भी आज का एक कटू सत्य हैं कि हमारी भावी पीढ़ी जिसे देश का जिम्मेदार नागरिक बन अपनी मातृभूमि और माँ-बाप के प्रति कर्तव्यों का पालन करना चाहिये वो इस तेज रफ़्तार दुनिया को पीछे छोड़ आगे निकलने की जुगत में अपने ही जीवन की गाड़ी में सदा के लिये ब्रेक लगा रही हैं । जी हाँ, जिस तरह से ये कच्ची उमर पक्की सड़कों पर आजकल गाड़ियाँ दौड़ा रही हैं वो एक पल को भले ही किसी से आगे निकलने का आनंद ले ले लेकिन अगले ही पल उसे नहीं पता कि कौन उसकी इस विजय यात्रा को हमेशा-हमेशा के लिये विराम दे दे । आये दिन युवा और किशोर कानून की नजरों में धूल झोंककर न सिर्फ बड़ी आसानी से ड्राइविंग लायसेंसप्राप्त कर लेते हैं बल्कि उतनी ही चालाकी से अपने अपराधों पर भी पर्दा डाल लेते हैं लेकिन कोई ये नहीं सोचता या समझता कि जिंदगी कोई हंसी-मज़ाक या खेल नहीं उस रब की नेमत हैं जिसे दुनिया की कोई भी ताकत या धन-दौलत फिर वापस नहीं ला सकती । हम सब जब तक जीते हैं तो यही समझते हैं कि हमारी जीवन डोर हमारे हाथ में हैं और हमें तो एक लंबा जीवन जीना हैं तभी तो न जाने कितने लंबे भविष्य के 'प्लान्स' तक बना लेते हर दिन नई-नई उमगों के साथ जागते और रात को अगले दिन की तैयारी कर निश्चिंत होकर सो जाते सोचे भी क्यों कि कल हम रहेंगे या नहीं आखिर ऐसा सोचना कोई आशावादी सोच तो नहीं कहलायेगी पर, इस सोच से परे होकर जो कर गुजरते हैं वो तो बड़ा भयानक हैं ।

आप सबने पता नहीं गौर किया या नहीं लेकिन मैंने तो कई बार देखा कि इन बच्चों की अधाधुंध चलती गाड़ीयों की वजह से कभी वे स्वयं तो कभी कोई और ही निशाना बन जाता हैं अभी दो दिन पूर्व ही हमारे यहाँ राजमार्ग से गुज़रती तीन नवजवानों की फुल स्पीडगाड़ी ने 'वाहनों का गुंडा' कहलाने वाले 'ट्रक' से पंगा ले लिया अब इससे उस विशालकाय भारी-भरकम वाहन को तो कुछ भी होने से रहा लेकिन वे तीनों घटनास्थल पर ही दम तोड़ गये अब आप सोच सकते हैं कि जब ये खबर उनके घर तक पहुंची होगी तो क्या हुआ होगा । इस घटना ने सोचने पर मजबूर किया कि बच्चों में अब इस बात की जागरूकता भी जरूरी हैं कि वो सिर्फ ये जाने कि इस तरह अपनी ही  जिंदगी का नहीं नहीं बल्कि एक साथ कई लोगों के अरमानों का गला घोंट रहे हैं अतः सही समय पर सही स्पीड में ही अपनी गाडी चलाये सडक पर अपनी बहादुरी दिखाने की कोशिश न करें न ही किसी से रेस लगाये न ही दूसरों के सामने ये प्रदर्शित करें कि वो कितने बड़े बाईकरहैं । वे पालक भी सावधान हो जाये तो कभी बच्चों की जिद या कभी खुद से ही उनके हाथ में मौत की गाडी की चाभी थमा देते हैं और फिर सारी उम्र रोते-रोते काटते हैं कि एक पल में किस तरह उनका संसार वीराना हो गया... माना कि ये कुछ तूफानी कर गुजरने वाली जोशीली उमर हैं लेकिन ये भी तो देखे कि कहीं वो तूफ़ान आपको ही तो तबाह नहीं कर रहा... इसलिये जब भी गाड़ी चलाये तो अपने माता-पिता या अपने चाहने वालों को जरुर याद कर ले जो घर पर आपका इंतज़ार कर रहे हैं... चलना जीवन हैं... दौड़ना भी जरूरी हैं... उड़ना भी अच्छा हैं लेकिन जीवन गाड़ी के एक्सीलेटरको मजबूती से थामकर... फिर देखो कैसा लुत्फ़ आता हैं सफ़र का... :) :) :) !!!     
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०५ फरवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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